अब जाकर आंखें खुली हैं!!-  पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आंगन में पड़ी तख्त पर ढेर सारे सामान,सजे पड़े थे। अर्पिता के भैया अंकित अभी – अभी राखी बंधवा कर गए हैं!

 यूं तो भैया अपने काम में बहुत व्यस्त रहते हैं… और इस बार तो बोला भी था, मुझे बिजनेस के काम से कहीं निकलना था, तो शायद रक्षा बंधन पर ना आ पाऊं.. और अर्पिता ने तो अपने मन को समझा भी लिया था, कोई बात नहीं,हर बार तो भैया आते हैं। शुरू शुरू में तो अर्पिता ही चक्कर लगा आती थी मायके का.. फिर धीरे धीरे दो नन्ही परियों  ने उसकी जिंदगी में कदम रखा.. फिर बच्चों की व्यस्तता और उनके स्कूल जाने के कारण,हर बार मायके पहुंचना बहुत कम होता  गया।

फिर महामारी के चलते कई वर्ष हो गए मायके गए।

 अब किया भी क्या जा सकता है

 इतनी दूर बेटी ब्याहने का नतीजा। उसके पापा तो कभी इतनी दूर ब्याह ना करते, मगर जन्म कुंडली के एक दोष के कारण, जिससे कुंडली मिली  वो इस सुदूर प्रांत का बंदा ठहरा।

 वो नानी जी के छोटे भाई ने यह रिश्ता बताया और संजोग देखो जो इतनी बढ़िया कुंडली मिली कि कुछ पूछो ही मत

 और ऐसा राजघराने जैसा ससुराल कि बस सबके मुंह से यही निकला

 बताओ भला ऐसे परिवार में रिश्ता हुआ और सालों से भटक रहे थे..

 अब ऊपर वाले ने जिसका जोड़ा जिसके साथ लिखा हो, वहां पहुंचा ही देता है!

 हां कभी-कभी वहां पहुंचने का रास्ता जरा लंबा हो जाता है

 और उस लंबे रास्ते को तय करने में माता पिता के पसीने ही छूट जाते हैं,

 सब कुछ अच्छा है बस ससुराल जरा दूर मिली

 अब ये भली कहीं..

 यूं ही आसान नहीं होता ऐसी दूर वाली ससुराल से रिश्ता निभाना

 बहुत सारे रीति रिवाज, लेन देन ,अलग-अलग होते हैं

 अब अर्पिता की ससुराल को ही ले लो

 हर छोटे-बड़े काम, पूजा पाठ, तीज़ त्योहार पर भर भर कर मायरा ( मतलब मायके से सबके लिए सौगातें), भर भर कर आती हैं।

( मतलब लगती हैं भले ही, उसे पूरा करने की सामर्थ्य लड़की के मायके वालों में हो या ना हो)

 ना ना अपनी अर्पिता के ऐसा कुछ ना है

 पिता का बड़ा बिजनेस जिसे भाई संभाल रहा है… यूं तो अर्पिता की बड़ी जिठानी उसके मायके से आए सामानों के लिए ताने देने से शुरूआत हुई और पता नहीं कैसे पारिवारिक कलह तक जा पहुंची,

 अरे इतनी कि उसे मायके से बुलाने का नाम ही ना लेवे हैं

 मतलब कि बगैर कानूनी कार्रवाई के तलाक ही समझो

 सुना है अब तो वहीं मायके में किसी स्कूल में पढ़ाती है और अपने दोनों बच्चों का पालन पोषण कर रही है।

 लो बताओ भला कैसे मायके वाले हैं?

 हमें क्या?

 हम तो अपनी अर्पिता की बात कर रहे थे

 दुनिया भर की पंचायत  से  हमारा क्या लेना देना??

 अपनी अर्पिता के मायके वाले तो खूब लेना देना करें हैं!!

 आखिर मां बाप की चिंता भी कोई चीज होवे है कि नहीं?

 एक तो इतनी मुश्किल से ब्याह  तय हुआ

 जिस पर इतना बड़ा घराना मिला

 तो बेटी का मान बढ़ा रहे ससुराल में

 उसकी बड़ी जिठानी जैसा हाल ना हो

 फिर उन्हें पैसों की कौन कमी है??

 अर्पिता तो झूम झूम कर सबको सामान दिखाती फिरती है!!

 बड़े ही गर्व से सिर ऊंचा कर।

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 मां ये अपने काम के सिलसिले में जा रहे हैं, थोड़ा सा रास्ता बदल लेंगे तो  मैं घर हो आऊंगी और सबसे मिल आऊंगी, फिर रिद्धि सिद्धि की भी छुट्टियां हैं…

 अर्पिता ने अपनी सासू मां से पूछा तो उन्होंने भी अपनी सहर्ष अनुमति दे दी।

 लौटते वक्त ढेर सारे उपहार लेकर आएगी बहू, मन ही मन कल्पना करके मुस्कुरा उठीं।

 सुनिए जी किसी को बताइएगा नही घर में… अचानक पहुंच कर सरप्राइज दूंगी।

 कई साल हो गए घर गए, पहले महामारी, फिर सासू मां की तबियत नासाज थी… हालांकि सबने कोई कमी ना रखी… हर तीज त्यौहार पर कभी पापा, कभी भाई आता जाता रहा… ढेर सारे उपहारों के साथ… मगर सबसे मिलने, अपने घर को आंखों से देखने की ललक लिए अर्पिता, गाड़ी में पति ( विक्रांत) की बगल में बैठी हुई कब नींद लग गई पता ही नही  चला..

 गाड़ी झटके के साथ दरवाजे पर रूकी

 रूकने के साथ ही झटका लगा

 दूकान के नाम का बोर्ड कहां गया?.. ज़रूर भैया ने नए तरीके से बनवाने को दिया होगा

 ये भाई भी ना!!

 बड़ा शौक है नए तरीके का टीम टाम बनाए रखने का

 दुकान का शटर आधा खुला था.. ऊपर के हिस्से में सब रहते थे

 अर्पिता अंदर घुसी

 दुकान का सारा सामान कहां  गया?

 अब और बर्दाश्त नहीं हो रहा

 ऊपर भाग कर पहुंची.. भाभी दोनों बच्चों को रात की रोटियां खिला रही थी.. नन्ही गुड़िया पूछ रही थी, मम्मी टीचर स्कूल में डांट रही थी कि फीस कब जमा करोगी, तुम्हारे मम्मी पापा तीन महीने से टाल रहे हैं,इस महीने नाम कट जाएगा।

 अर्पिता ने भाग कर गुड़िया को गोद में उठा लिया

 अरे अर्पिता तुमने तो सरप्राइज दे दिया.. पहले से बता कर रखना था तो मैं कुछ इंतजाम करके रखती

 भाभी सरप्राइज तो आप सबने दे दिया… इतना पराया कर दिया.. कैसे हो गया इतना सब कुछ..?

 अर्पिता ने रोते हुए पूछा

महामारी  में दुकान ठप्प ही थी.. सालों में मां के और मेरे जेवर बिकते गए… सारा सामान भी बर्बाद होता गया… पापा और मम्मी जी की दवाओं  में बहुत पैसा लगता गया.. भाभी ने आंचल से आंसू पोंछते हुए कहा

 और बड़ी सी  नई गाड़ी… जिससे भैया मेरे घर आते थे?

 अरे पगली, वही तो हमारा सहारा है… तुम्हारे भैया राॅय साहब की गाड़ी चलाने लगे ना.. यही तो राज है जिसे हम सब छुपा रहे थे तुमसे.. हम सबको उम्मीद थी कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा

 और मेरे घर इतना सामान लेकर क्यूं आते थे??

 क्योंकि पापा कहते थे, अर्पिता की ससुराल में ऐसा ही चलता है.. तो किसी तरह पूरा करो.. कहीं उसकी बड़ी जिठानी जैसा उसका भी हाल ना हो जाए… कितनी मुश्किल से शादी हुई है..

 परेशान मत हो बेटा.. धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा

 थक कर आई हो थोड़ा सो लो… मां ने कहा

अब तक सो ही तो रही थी मां… अब जागी हूं… अब और नहीं सोना… अब बहुत कुछ करना है

 अर्पिता ने अपने हाथों में पड़े सोने के कंगन और गले में पड़ी मोटी सी चेन उतार कर भाभी के हाथों में रख दिया

 भैया से कहिएगा सारा सामान खरीद कर दुकान फिर से शुरू करें… मैं और पैसे भी भेजूंगी.. क्यूं विक्रांत?… विक्रांत ने भी सहमति में सिर हिलाया

 मां से कहा, ज्यादा रुकूंगी नहीं,बस भाभी के हाथों का खाना खाकर निकलूंगी… एक जरूरी काम और निपटाना है… बड़ी  दीदी जिठानी) के घर जाना है, उन्हें पूरे सम्मान से वापस लाना है… उनका अधिकार उन्हें दिलाना है

 और हां..

 अब ये मायके  की सौगात, कहीं से नहीं आएगी,ना मेरे मायके से ना बड़ी दीदी ( जिठानी) के मायके से

 मायके में लेन देन बस उतना ही होना चाहिए ना किसी का दिल दुखे,ना किसी की कमर झुके.. ना ही किसी का मन छलनी हो

 कैसी बात कर रही है बेटा.. ये तो रीति होती है… कहीं तेरी सासू मां नाराज़ ना हो जाएं…  मां ने घबराते हुए कहा

 मैं आत्मग्लानि  के बोझ से दबी जा रही हूं मां…. मैंने पहले ही समझने में देर कर दी.. अब और नहीं 

 बस ये रीति बदलनी है…. अपनी दोनों बेटियों  (रिद्धि सिद्धि), नन्ही गुड़िया… और सभी बेटियों के लिए.. ये शुरुआत करनी है मुझे!

 अब जाकर आंखें खुली हैं!!

 स्नेह और परस्पर प्रेम का आदान-प्रदान होना चाहिए, ना कि इन बोझिल नियमों का… धूल उड़ाते हुए अर्पिता की गाड़ी निकल चुकी थी… माता पिता के गले में पड़ी बेड़ियां काटते हुए.. अपने अगले सफर की ओर… अपनी जिठानी के घर की ओर।

 स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

 पूर्णिमा सोनी

 # आत्मग्लानि, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक — अब जाकर आंखें खुली हैं!!

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