आख़िरी इच्छा : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “ बाबूजी ये दवाई खा लीजिए…आराम मिल जाएगा ।” काँपते हाथों से कनक अपने ससुर को दवा पकड़ाते हुए बोली

दीनानाथ जी बहू के हाथ से दवाई ले कर खाने को हुए तो एक पल को रूके फिर जल्दी से दवाई गटक ली

कनक दवा देकर कमरे से जाने को हुई ही थी कि दीनानाथ जी ने कहा,” बहू मुझे माफ कर देना।”

कनक ये सुनकर पल भर को पलटी और सिर झुकाकर वहाँ से निकल गई

दरवाज़े के बाहर खड़ा उसका पति महेश ये सुन कर कनक के चेहरे पर दुख और ख़ुशी का सम्मिलित रूप देख कर बस हल्के से मुस्कुरा दिया ।

“ बाबूजी सब कुछ ठीक से सम्पन्न हो गया है… माँ की आख़िरी इच्छा पूरी करने का वक्त आ गया है .. आप बताइए क्या कहते हैं?” महेश कमरे में जा बाबूजी को देख कर पूछा

“ जो तेरी माँ ने कहा था वही हुआ और मुझे लगता है उसकी इच्छा का मान करना चाहिए ।” कहते हुए दीनानाथ बेटे के आगे हाथ जोड़कर फफक पड़ा

“ ये क्या कर रहे हैं बाबूजी..हमें माफ़ कर दीजिए… पर आप माफ़ी मत माँगिए ।” कहते हुए महेश बाबूजी के गले लग गया

तस्वीर से सुरेखा जी मुस्कुराते हुए बाप बेटे का मिलन देख रही थी….ऐसा लग रहा था मानो कह रही हो… मेरे जीते जी इन्हें माफ कर देते तो आज मैं भी इस का हिस्सा होती ।

“ सच कहती थी तेरी माँ तुने कनक से ब्याह कर हमारा नाम ना डूबोया बेटा बल्कि उसके साथ रह कर तुमने हमारी सारी ज़िम्मेदारी दूर रह कर भी वहन किया… दूसरी बिरादरी जाति,धर्म के चक्कर में मैं कितना कुछ सुना गया था… कैसे कह रहा था… उस बिरादरी में आज तक हमारे कुल से किसी ने ब्याह ना किया तू हमारा नाम डूबाने में लगा है….अरे ये लड़कियाँ बस पैसा देख लड़का फँसा लेती है देखना ये भी तुम्हें छोड़ कर रफ़ूचक्कर हो जाएगी पर कनक ने तो हारी बीमारी सब में अपनी सास का दूर रह कर भी साथ दिया चाहे मैंने उसे कितना ही धिक्कारा हो… बेटा सच कहूँ आज मैं तुम सब का गुनहगार बन गया…तुम्हें घर निकाला कर तेरी माँ से उसका बेटा छिना …बहू के होते हुए उसे सास के सुख से वंचित रखा और पोते पोती का मुख देखने को तरसते हुए तेरी माँ को जाते देखा..अब उसकी आख़िरी इच्छा यही थी ना कि वो ना रहेगी तो मैं तुम दोनों के साथ राज़ी ख़ुशी रहूँ तो अब वही होगा।” दीनानाथ जी अफ़सोस करते हुए बोले

 

महेश माँ की मृत्यु सुन पर पहली बार पत्नी और बच्चों को साथ इस घर की चौखट के भीतर डरते सहमते कदम रखा था अंदर से वही पुराना डर था बाबूजी कहीं फिर कनक को देख बिदक ना जाए पर इस बार बाबूजी शांत थे शायद माँ के जाने का गम या बेटे बहू का आकर सब कुछ सँभाल लेना उन्हें भीतर तक कचोट गया होगा तभी तो आज दस साल बाद फफक पड़े थे।

रश्मि प्रकाश

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