पूत कपूत तो क्या धन संचै?,पूत सपूत तो क्या धन संचै! –  पूर्णिमा सोनी: Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “विमला काम पूरा हो गया हो तो,चल चाय बना लो, यहीं बाहर लेकर आ जाना ”  सुशीला जी ने आवाज देते हुए विमला से कहा।

# बस लाई दीदी”, दरअसल चाय तो उसने आंगन की धुलाई करते समय ही धीमी आंच पर चढ़ा दिया था। ये रोज का ही काम है। सुशीला जी और साहब शाम को बाहर बाउंड्री में बैठ कर आने जाने वाले लोगों को देखते हुए चाय पीते हैं। विमला को भी बोल देते हैं कि वो भी चाय बना कर बाहर आ जाए और साथ में वो भी पी लें। यूं तो विमला कई घरों में काम करती है, मगर इतनी आत्मीयता से उसे खाने पीने को कोई नहीं कहता। कभी कभी तो दोपहर को काम करने आती तो सुशीला  जी उसका मुंह देख कर ही समझ जाती 

” देखो डिब्बे में रोटियां रखी हैं पहले खा लो फिर  काम करना”

 कैसे समझ जाती हैं मालकिन कि वो आज सुबह से भूखे ही काम कर रही थी?

 जिंदगी बीत गई विमला की सुशीला  जी के घर काम करते – करते। सुशीला जी की दो छोटी ननदें ब्याह गई। दोनों की शादी में विमला ने सारा काम बखूबी संभाला। हर आने-जाने वाले ने कहा ” सभी रिश्तेदार तो बहुत दूर दूर हैं, ऐन वक्त पर ही आ पाए, मगर विमला से बिल्कुल तुम्हारी छोटी बहन जैसा सब कुछ संभाल लिया।

 सही बात भी है। ननदों की विदाई के बाद सुशीला जी जिस अनकही उदासी के सागर में डूब गई थीं, उससे विमला ने ही उन्हें बाहर निकाला। विमला ने मालकिन का हारमोनियम जो जाने कब से स्टोर रूम में पड़ा धूल खा रहा था, झाड़ पोंछ कर उनके सामने ला कर रख दिया।

” इसे बजाया कीजिए ना दीदी, मैंने देखा है आप जब बेटा छोटा था, तो चुपके चुपके इसे बजाया करती थीं। और कहती थीं बहुत शौक था मुझे मगर गृहस्थी से कभी फुर्सत ही नहीं मिली… अब तो फुर्सत  ही फुर्सत है…. आपका मन भी लगा रहेगा।

 और सच!, सुशीला जी फिर से शुरू हो गई, ऊपर दुछत्ती पर पड़ी गानों के नोट्स की कापियां भी ढूंढ़ निकाली…. आगे वाले कमरे में बैठ कर ऐसा बजाती थी कि आने जाने वाले रुक कर भजन सुनते ही रह जाते थे।

रिटायरमेंट  के बाद दोनों प्राणियों की जिंदगी बस आगे के दो कमरों तक सिमट गई थी। बेटा घर आता तो पीछे के कमरों की भी सफाई करवाती… जब तक रहता घर में चहल-पहल बनी रहती, उसके जाने के बाद दोनों प्राणी पुनः आगे के दो कमरों तक सीमित  रह जाते।

विमला की एक ही बिटिया थी। पति जब बिटिया छोटी सी थी , तभी छोड़ कर भाग गया था। विमला की जिंदगी तो बस उसे पालते पोसते हुए बीत रही थी।

 सुशीला जी की भी बड़ी मदद रही, उसकी बेटी की परवरिश में। विमला कहीं और काम पर जाती तो नन्ही पूनम सुशीला जी के घर पर खेलती रहती।। बड़ी हुई तो उनके बेटे की पुरानी कापियां किताबें उसका बहुत बड़ा सहारा  रहीं। बहुत मेहनत और लगन से पढ़ने वाली बच्ची रही है, आगे ईश्वर के हाथ में है।

 सच है कभी किसी की मदद,चाहे कितनी छोटी क्यूं ना हो परन्तु वो बहुत बड़े भविष्य की नींव रख देती है।

 सुशीला जी का बेटा ( अमित)  शुरू से ही बाहर कहीं रह कर पढ़ाई करता था। बड़े आदमी हैं बहुत पैसा खर्च कर रहे हैं बेटे की पढ़ाई पर… तभी  तो एक दिन वो भी बड़ा आदमी बनेगा।

 जब जब सुशीला जी का बेटा घर आता, विमला से कह कर तरह-तरह की चीजें बनवाती। जाते समय भी लड्डू, मठरी… ना जाने क्या क्या बनवा कर पैक करवाती… मगर घर के माहौल में एक तनाव सा पसरा रहता।… ना जाने क्यूं?। भले ही उसे लगता था कि सुशीला जी उसे छोटी बहन जैसा मानती हैं, मगर थी तो घर की नौकरानी ही। सारी बातें ना उसे पता होती ना पूछ सकती थीं।

 विमला की बेटी पूनम बहुत मन लगाकर पढ़ती थी। मां के संघर्ष को बचपन से ही देख रही थी।

 अब पढ़ाई पूरी करके नौकरी ढूंढ रही है।

 कहती है, मां जब मैं सर्विस करने लगूंगी आपको कोई काम नहीं करने दूंगी। मैं आपके लिए बहुत बड़ा सा घर खरीदूंगी, बिल्कुल वैसा ही जैसे घर में आप काम करती हैं।

और एक दिन वो भी दिन आ गया। उसकी बिटिया एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर चयनित हो गई। उसी शहर में ही ज्वाइन किया। घर आते ही मां के सामने ऐलान कर दिया बस,अब आपका काम करना बंद। कल ही आप जाकर अपनी मालकिन सुशीला जी को बता कर आ जाइए।

 अरे ऐसे ही थोड़े ना जाउंगी… सुबह उठकर विमला ने नहाकर पास वाले मंदिर में जाकर दर्शन किया, , तेज़ क़दमों से सुशीला जी के घर की ओर बढ़ी जा रही थी… जब मैं मालकिन को बताउंगी सच्ची कितना खुश होंगी… मैं किसी और को उसके घर पर काम पर लगा दूंगी… उनसे कह दूंगी, हालांकि अब मैं काम ना करूं, ऐसा बेटी चाहती है, फिर भी जब उन्हें ज़रूरत होगी बिल्कुल छोटी बहन की तरह उनके काम आउंगी।

 विमला ने मुख्य द्वार खोला

 अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही हैं। इतने ऊंचे स्वर में तो कभी किसी से बात नहीं करते। अमित बेटा भी आया हुआ है शायद..

 चल बाहर निकल इस घर से… अमित ने तेज़ आवाज़ के साथ सुशीला जी को बहुत जोर से धक्का दिया।

और वो बहुत तेज लड़खड़ाई मगर.. मगर आगे बढ़ कर विमला ने उन्हें अपनी बाहों में थाम लिया।

 अमित चिल्लाते हुए और अपशब्द बोलते हुए बाहर निकल चुका था।

 आज मालकिन और नौकरानी के बीच जो अनकही दीवार थी वो टूट चुकी थी।

 सुशीला जी ने सुबकते हुए बताया.. अमित ने चालाकी से सारी प्रापर्टी अपने नाम करा लिया है। बाहर रह कर ग़लत संगत में पड़कर बिगड़ता चला गया। हमें कुछ पता ही नहीं चला कब इसने कागजात पर साइन ले लिए।… अब कहता है मेरा घर है, मैं इसे बेचूंगा।

 मेरा बेटा ऐसा संस्कारहीन निकलेगा… कहां पता था।

विमला ने किसी तरह चुप कराया और अपने घर चली गई।

 घर आकर उसने अपनी बेटी को सारी स्थिति बताई.. दोनों मां बेटी बहुत देर तक सोचती रही और बात करती रहीं, उन्होंने तय किया…..

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 विमला बड़े से मिठाई के डिब्बे के साथ घर में प्रवेश करती है। सुशीला जी को बताती है पूनम आफिस गई है शाम को आप लोगों का आशीर्वाद लेने आएगी।

 ऐसा समय है कि  तुम्हारी बेटी की सफलता पर ठीक से खुश भी नहीं हो पा रही हूं… अमित जल्दी ही घर बेचकर हम लोगों को बेघर कर देगा

 ” बस, वही तो बताने आई हूं, मेरी बिटिया ने तय किया है कि वो इस मकान को लोन करा कर खरीद लेगी… अमित ऐसा संस्कारहीन निकलेगा इसका तो पता नहीं था…. मगर उसे पैसे चाहिए ना… तो उसे मिल जाएंगे… हम कहीं और घर ले लेते, मगर बिटिया कह रही है इस घर को बचाना बहुत जरूरी है जिसके साथ  आपकी, सुशीला जी की यादें जुड़ी हैं।

 चलो अच्छा हुआ, तुम्हारी बिटिया इस लायक तो है, मकान किसी बाहरी के हाथ नहीं जाएगा… तुम्हारे लिए हम खुशी-खुशी घर खाली कर देंगे,इनकी पेंशन है, कहीं भी किराए पर घर ले लेंगे।

 कैसी बात कर रही हैं दीदी, जिंदगी भर मुझे छोटी बहन जैसा प्यार दिया इतना भी नहीं समझीं… मैंने और बेटी ने तय किया है आगे के दो कमरों में आप लोग जैसे रहते हैं वैसे ही रहेंगे… हमेशा पूरे अधिकार के साथ… मेरी पूनम को भी तो आपने अपनी बेटी ही माना है, कितनी बार उसकी फीस भरी है… इस घर में हम सब मिलकर रहेंगे,बस दुआ कीजिए मेरी पूनम की नौकरी और अच्छी होती जाए.. जिससे वो आसानी से लोन चुका सके।

 विमला जी की  बेटी उन्हें झोपड़ी से उठा कर महल तक ले आई। जबकि उसके पास कुछ भी जमा पूंजी नहीं थी। सुशीला जी और उनके पति के सम्मान की भी रक्षा की।

 सच ही कहते हैं किसी की मदद करके आप एक चक्र की शुरुआत करते हैं जो घूम कर आप तक लौट आता है।

 आगे पूनम जैसी बेटी का साथ रहा तो सुशीला जी और उनके पति अपने बेटे पर धोखाधड़ी का मुकदमा भी दर्ज करेंगे।

 आज तो एक बेटी ने सबका मान बचा लिया।

 संस्कारहीन संतान से संस्कारित बेटी ज्यादा भली जो विषम परिस्थितियों की आंच में तपकर खरा सोना बन गई थी।

 ऐसे ही नहीं कहा गया है

 पूत कपूत तो क्या धन संचै, पूत सपूत तो क्या धन संचै!!

 पूर्णिमा सोनी

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 # संस्कार हीन, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक – पूत कपूत तो क्या धन संचै, पूत सपूत तो क्या धन संचै!!

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