सुबह-सुबह दरवाज़े पर दस्तक हुई तब मिसेस कपूर ने दरवाज़ा खोला। गंदे मैले कपड़े पहने हुई एक स्त्री जिसके चेहरे से वह
काफ़ी शालीन दिखाई पड़ रही थी, उसके साथ ही एक छोटी-सी नन्हीं गुड़िया उसकी गोद में थी, मालूम होता था मानो 1
या 2 दिन की ही बच्ची है।
कांपती आवाज़ में उसने कहा नमस्ते मैडम।”
उसे जवाब देते हुए ही मिसेस कपूर ने पूछा कौन हो तुम और मुझसे क्या चाहती हो? कुछ पैसे चाहिए हैं क्या, मैं तुम्हें देती
हूँ। लेकिन जवान हो, शरीर से भी स्वस्थ लगती हो, फिर क्यों कहीं काम नहीं कर लेतीं, इस तरह से भीख मांगना बिल्कुल
ठीक नहीं और यह बच्ची किसकी है, कहीं किसी की बच्ची चुरा कर तो नहीं ले आई? एक ही सांस में मिसेस कपूर ने कई
सवाल कर डाले।
जी नहीं मेरा नाम राधा है, मैं पास ही के गाँव की रहने वाली हूँ और यह किसी और की नहीं मेरी ही बेटी है। अभी दो दिन
पहले ही मैंने इसे जन्म दिया है किन्तु मेरे पति और परिवार वालों ने बेटी को जन्म देने की वज़ह से नाराज़गी दिखाई और
मेरी फूल जैसी कोमल-सी बच्ची को जान से मारने की योजना बनाने लगे। मेरे लाख मिन्नतें करने के बावज़ूद भी जब उनका
रुख नहीं बदला तो मैं रात को चुपके से घर से निकल गई। बड़ी ही मुश्किल से मैं अपनी बच्ची की जान बचा पाई हूँ।
मुझे पैसे नहीं चाहिए, आपका इतना बड़ा बंगला और गाड़ियाँ देखकर ही मैं यहाँ बड़ी ही उम्मीद लेकर आई हूँ कि इतने
बड़े घर में कुछ ना कुछ काम तो मुझे अवश्य ही मिल जाएगा। मैडम मुझे दया नहीं चाहिए किसी तरह की कोई भीख भी
नहीं चाहिए, मुझे अब अकेले ही अपनी बेटी को बड़ा करना है, पढ़ाना है और उसे अपने पैरों पर खड़ा करना है।
उसकी बातें सुनकर और प्रभावशाली ढंग देखकर मिसेस कपूर ने उसे काम पर रख लिया।
यूं तो मिसेस कपूर के घर में कई नौकर चाकर थे किन्तु वह स्वभाव से बेहद दयालु थीं, पढ़ी लिखी समझदार तथा एक
आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थीं। उन्होंने सोचा कुछ ना कुछ काम तो इसे दे ही दूंगी और वैसे भी उन्हें बेटियों से बहुत लगाव
था। उनकी स्वीकृति मिलते ही राधा के चेहरे पर इत्मीनान की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी।
मिसेस कपूर ने उसे घर के अंदर बुलाया, कुछ खाने पीने को दिया और उसके बारे में सब कुछ जानना चाहा। तभी राधा ने
उन्हें अपनी कहानी सुनाई
मैं पास के गाँव में रहने वाले सरपंच की बहू हूँ, घर में रुपये पैसे की कोई कमी नहीं। इज़्जत भी बहुत है, मेरी शादी को दो
वर्ष हुए हैं। शादी के एक वर्ष के पश्चात ही मैं गर्भवती हो गई। घर में बेहद ख़ुशी का माहौल था, मेरी देख रेख में कोई कसर
नहीं थी। देखते ही देखते नौ महीने बीत गए और फिर मैंने एक कन्या को जन्म दिया।"
बेटी होने की बात सुनते ही मानो पूरे घर को सांप ही सूंघ गया हो। सभी निराशावादी की तरह मौन व्रत ले चुके थे। कोई
मेरे पास तक नहीं आया। उसी दिन रात को मेरे कानों में बुदबुदाने की आवाज़ें आईं, मैंने कान लगाकर सुना तो मैं चौंक गई।
वहाँ तो मेरी बेटी को मार डालने की योजना बनाई जा रही थी। बस मैडम मौका मिलते ही मैं अपनी बच्ची को लेकर वहाँ से
खाली हाथ निकल पड़ी। सब कुछ होते हुए भी आज मेरे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन मेरे पास मेरी बेटी है और एक उम्मीद
है। उसका जीवन बचा लिया है, तो उसका भविष्य भी मैं ज़रूर ही बना लूंगी।
उसकी आप बीती सुन कर मिसेस कपूर का दिल भर आया तथा उन्होंने उसे अपनी रसोई का काम सौंप दिया। वैसे भी
मिसेस कपूर बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ योजना के तहत काफ़ी सामाजिक गतिविधियों से जुड़ी हुई थीं। उन्होंने राधा को
अपने बंगले के पीछे बने हुए कमरों में से दो कमरे का घर रहने के लिए दे दिया।
राधा ने दूसरे ही दिन से काम शुरु कर दिया। वह काफ़ी स्वादिष्ट खाना बनाती थी और सारा काम सफ़ाई से करती थी।
मिसेस कपूर उससे काफ़ी प्रभावित थीं। रोज़ रात को वह देखती थी कि राधा के कमरे की लाइट काफ़ी देर तक जलती
रहती है। यह देखकर उन्हें यह जानने की जिज्ञासा होती थी कि इतनी देर तक यह क्यों जागती है।
इसी कश्मकश में एक रात वह नीचे आईं और चुपके से आहट लेकर सुनने और जानने की कोशिश करने लगीं कि अंदर क्या
चल रहा है। किन्तु कोई आवाज़ सुनाई नहीं देने के कारण उन्होंने दरवाज़े पर धीरे से दस्तक दे डाली। राधा ने दरवाज़ा
खोला तो देखकर दंग रह गई।
अरे मैडम जी आप, क्या कुछ काम था, बोलिये मैं अभी कर देती हूँ।
नहीं, नहीं कुछ काम नहीं है, तुम क्या कर रही हो, तुमसे बात करने की इच्छा थी इसलिए मैं आ गई, मिसेस कपूर ने
कहा।
;जी आइये, बैठिये, राधा ने विनम्रता से कहा।
मिसेस कपूर ने कुर्सी पर बैठते हुए देखा कि राधा के कमरे में कुछ किताबें रखी हैं, जो शायद उसने अपने पहले वेतन से
खरीदी होंगी।
तभी वह राधा से पूछ बैठीं, यह किताबें!
और मिसेस कपूर ने कुछ किताबें उठाकर पन्ने पलटाना शुरू किया तो वह दंग रह गईं, क्योंकि वह हिन्दी और अंग्रेज़ी की
कहानियों की किताबें थीं।
तभी उन्होंने राधा से पूछा क्या तुम पढ़ी लिखी हो?
राधा ने तब उन्हें बताया, जी हाँ, मैंने एम. ए. किया है, किन्तु इतनी जल्दी मैं नौकरी कैसे ढूँढती
तभी उसकी बात काटते हुए मिसेस कपूर बोल उठीं अरे तुमने पहले क्यों नहीं बताया। मैं आज से ही किसी अच्छे स्कूल में
तुम्हारे लिए बात करती हूँ।
राधा ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी। कुछ ही दिनों में एक अच्छे स्कूल में हायर सेकेंडरी की टीचर के पद पर काम करने
लगी।
धीरे-धीरे वक़्त निकलता गया, उसकी बेटी अनुराधा भी बड़ी हो रही थी। वह भी अपनी माँ की ही तरह शालीन, सरल
स्वभाव वाली व काफ़ी आकर्षक थी। मिसेस कपूर हमेशा उन दोनों का ख़्याल रखती थीं, उनका साथ था इसलिए राधा को
कोई डर नहीं था। धीरे-धीरे अनुराधा की पढ़ाई का ख़र्च बहुत अधिक बढ़ने लगा।
राधा उसकी पढ़ाई को लेकर चिंतित रहने लगी थी। उस को चिंतित देख मिसेस कपूर ने चिंता का कारण पूछा
तब राधा ने कहा मेरी बेटी अनुराधा को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया है परन्तु वहाँ की फीस बहुत ज़्यादा है। मैं इस
बात को लेकर बहुत परेशान हूँ कि यह सब मैं कैसे कर पाऊंगी?
मिसेस कपूर तो बेटियों की प्रगति के लिए हमेशा ही तैयार रहती थीं, उन्होंने तुरंत ही उसकी फीस की ज़िम्मेदारी भी उठा
ली।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और अनुराधा की पढ़ाई पूरी हो गई और वह एक बहुत बड़े अस्पताल में डॉक्टर के रूप में
कार्यरत हो गई। अनुराधा बहुत ही मेहनत और लगन से काम करने वाली लड़की थी और अपने मरीज़ों का बहुत ख़्याल
रखती और बड़े ही प्यार से उनके साथ रहती थी। अस्पताल में वह सभी की प्रिय थी।
अचानक एक दिन उनके अस्पताल में एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति भर्ती हुआ, जो काफ़ी कमज़ोर लग रहा था, शायद किसी
बड़ी बीमारी ने उसे अपनी चपेट में ले लिया था। ख़ून भी शरीर में काफ़ी कम हो गया था उसे देखने तथा उसका इलाज़
करने की जवाबदारी डॉक्टर अनुराधा को सौंपी गई थी। वह उस इंसान से मिली, उसकी तबीयत का हाल चाल भी पूछा
तथा उसका इलाज़ शुरू कर दिया।
ख़ून की अत्यधिक कमी की वज़ह से सबसे पहले उन्हें ख़ून चढ़ाना था लेकिन उनके ख़ून से मिलता ख़ून मिल ही नहीं पा रहा
था। किन्तु जैसे ही अनुराधा ने उनका ब्लड ग्रुप देखा वह ख़ुशी से झूम उठी, बोली यह तो मेरा भी ब्लड ग्रुप है मैं इन्हें
अपना ख़ून दे सकती हूँ।
तुरंत ही उसने अपना रक्त दान कर दिया। मरीज़ के शरीर में रक्त पहुँचते ही उसमें थोड़ी-सी ताकत आई। उन्होंने डॉक्टर
अनुराधा को बुलाया और कहा बेटी मैं तुम्हें धन्यवाद देना चाहता हूँ। तुम बहुत ही अच्छी हो तुम्हारे माता पिता ज़रुर ही
तुम पर नाज़ करते होंगे।
बाबा आप आराम करिये,” कहकर अनुराधा वहाँ से चली गई।
उसे डर था कि कहीं वह इंसान उससे उसके पिता के बारे में ना पूछ ले, क्योंकि वह अपने पिता के बारे में सब जानती थी।
अचानक उसी दिन राधा की तबीयत ख़राब हो गई और मिसेस कपूर उन्हें अस्पताल ले आईं। राधा को उस मरीज़ के बाजू
वाले पलंग पर ही लिटाया गया। वह बेहोशी की हालत में ही थीं। अनुराधा लगभग दौड़ते हुए माँ-माँ की आवाज़ लगाते हुए
आई।
तभी बाबा ने भी करवट बदली और अनुराधा को चिंतित देख पलंग से उठ बैठे, पूछा क्या हो गया अनुराधा बेटी?
अनुराधा ने अपनी माँ की तरफ़ इशारा करते हुए कहा देखो ना बाबा मेरी माँ की भी तबीयत बहुत ख़राब हो गई है। उनके
लिए आप भी भगवान से प्रार्थना करिये।
बाबा ने जैसे ही उसकी माँ की तरफ़ देखा तो उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अरे …यह तो राधा है। तो क्या अनुराधा
मेरी बेटी है? उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी, मन बेचैन था, घबराहट हो रही थी। वह भी राधा के होश में
आने का इंतज़ार कर रहे थे। कहीं राधा ने दूसरी शादी तो नहीं कर ली। नहीं-नहीं वह ऐसा नहीं कर सकती।
तभी राधा को होश आने लगा, उससे पहले कि राधा पूरी तरह होश में आए, वह उसका सामना करने के ख़्याल तक से डर
गए।
तभी उन्होंने अनुराधा से कहा बेटा तुम्हारे पिताजी को बुला लो
किन्तु उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं थी वैसा जवाब अनुराधा ने दिया "बाबा मेरी माँ और पिता दोनों की जवाबदारी मेरी माँ
ने अकेले ही उठाई है। जिस दिन मेरा जन्म हुआ था उसी दिन मेरे पिता मेरी माँ के लिए मर चुके थे। मेरी माँ के पास दो ही
विकल्प थे उन्हें मुझमें और मेरे पिता में से किसी एक को ही चुनना था और वह एक मैं थी।
क्योंकि मेरे पिता को अगर चुनतीं तो मैं मार दी जाती और मेरी माँ मुझे ज़िंदा रखना चाहती थी। इसलिए मेरी माँ ने
पिता के ज़िंदा रहते हुए भी अपनी मांग का सिंदूर मिटा दिया था और मैं एक विधवा की बेटी हूँ पिता के होते हुए भी। यही
सिखा कर मुझे मेरी माँ ने बड़ा किया है।
उनकी बातें चल ही रही थी कि राधा ने पूछा अनुराधा बेटा कौन है
तभी बाबा ने अपना मुंह छिपा लिया और बिना बताये ही चुपके से अस्पताल से चले गए। वह तन से तो ठीक हो गए थे
किन्तु मन से बीमार होकर गए।
और अनुराधा सोच में पड़ गई कि आख़िर बाबा बिना बताये क्यों चले गए?
-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)