परंपराएं कुछ कहती हैं – कमलेश राणा

नीशू बेटा एक बार और जाकर देख तो आ बेटा कुसमा ताई की गाय ने गोबर किया या नहीं। 

सुबह से दो बार हो आया कभी कोई ले जाता है कभी कोई गोया कि गोबर न हुआ अशर्फी हो गई। पड़ोस की सुषमा दादी और पार्वती दादी भी तो वहीं डेरा डाले बैठी हैं इसके लिए भी नम्बर लग रहे हैं कुसमा ताई की तो अचानक ही पूछ परख बढ़ गई है सीधे मुँह बात ही नहीं कर रही किसी से। 

चला जा मेरा राजा गुड्डा.. गूलरी नहीं बनेंगी तो होली कैसे पुजेगी अब जो परंपराएं चली आ रही हैं वह तो निभानी ही पड़ेंगी न। 

जब आपको मुझसे गोबर मंगाना होता है तभी मैं आपका राजा गुड्डा बन जाता हूँ वरना तो हमेशा मेरी बुराई ही करती रहती हो.. सारे दिन टी वी में घुसा रहता है, पढ़ता नहीं है, कोई काम नहीं करता जब कोई नहीं सुनता आपकी तो बस.. आय हाय मेरा राजा गुड्डा मेरा काम कर दे न.. एक तू ही तो है मेरा प्यारा बच्चा.. पर दादी अब मैं बड़ा हो गया हूँ सब समझ आता है मुझे। 

अच्छा अब ज्यादा भाव मत खा चला भी जा.. कोई रोज रोज थोड़े ही न भेजती हूँ तुझे साल में एक बार ही तो जरूरत पड़ती है उस पर कितने नखरे दिखाता है तू.. अब जा जल्दी। 

ठीक है जाता हूँ.. और क्या कह रही थी आप साल में बस एक बार??? मुझे तो हर त्योहार पर ही गोबर लेने भेजती हैं आप …कभी दौज बनानी होती हैं आपको, दीपावली पर गोवर्धन बनाना होता है, होली पर गूलरी बनानी होती हैं मुझे तो शर्म आने लगी है अब तो गोबर मांग मांग कर.. 

थोड़े दिन पहले भाभी को बेटा हुआ तो भी आपने नेग मिलने का लालच देकर सतिये रखने के लिए गोबर मंगाया था मुझसे जब यह इतना जरूरी है तो एक गाय आप खुद ही क्यों नहीं पाल लेतीं वैसे भी किसान परेशान हैं गोवंश के कारण.. 

बात तो तूने बिल्कुल कांटे की कही है बेटा शायद ये परंपराएं हमें गौ पालन का ही संदेश देती हैं तभी तो हर शुभ काम और त्योहार पर गोबर का महत्व बताया गया है ताकि हमारा ध्यान उनकी उपयोगिता की तरफ आकर्षित हो साथ ही शुद्ध घी दूध भी खाने को मिले हमें। 

सच में परंपराएं कुछ कहती हैं हमसे बस हम ही उनकी अनसुनी करते रहते हैं और उसका परिणाम भी भुगत ही रहे हैं जो मंहगाई के कारण न तो बच्चों को पेटभर दूध पिला पाते हैं और न ही खुद मन भर के घी खा पाते हैं अगर हर व्यक्ति इस तरफ ध्यान दे तो कई सारी समस्याएं एक साथ सुलझ सकती हैं। 

प्रकृति और जीव जंतुओं से मिलकर ही हमारा पर्यावरण बनता है जब तक यह रिश्ता सुचारु रूप से चलता रहेगा सारी व्यवस्थाएं ठीक रहेंगी हमारी परंपराएं इनको महत्व देकर हमें यही समझाने प्रयास करती हैं। 

#एक_रिश्ता

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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