बेनाम रिश्ता – संगीता त्रिपाठी

पता नहीं वो कौन सा रिश्ता था जो सौम्या न चाहते भी खिची चली आती थी छत पर, एक दिन भी  दिखाई न दें तो चैन नहीं मिलता था।

    एक दिन कॉलेज के लिये हड़बड़ी में निकलते हुये सामने आते शख्स से टकरा गई, “दिखाई नहीं देता क्या, या लड़की को देख जबरजस्ती टकराने की कोशिश कर रहे हो “गुस्से में अपनी नोटबुक उठाते हुये बोली,  

“मैडम हर लड़का बुरा नहीं होता, दूसरे को दोष देने से पहले अपनी गलती देख लेनी चाहिए, आप गलत साइड से आ रही थी… “तीखे स्वर में प्रतिवाद किये जाने पर सौम्या ने सर ऊपर उठाया तो सन्न रह गई…।

साँवले -सलोने उस चेहरे में और उसकी आँखों में न जाने क्या कशिश थी, जो सीधे सौम्या के दिल में उतर गया…।अपने ही शब्दों की कडुआहट, सौम्या को कहीं बेध गई..। सर झुका वहाँ से आगे बढ़ गई, पर कुछ पीछे ही छूट गया।

         सौम्या अनमनी सी थी, आज कॉलेज में भी मन नहीं लगा, कॉलेज से घर जल्दी आ गई, माँ चाय बना कर ले आई, ये समय वो माँ के साथ गप -शप में बिताती थी, पर आज उसका मन कहीं और था,।

“पता है सौम्या, सामने वाले घर में नये किरायेदार आ गये, बहुत दिनों से घर खाली था, चलो अब मुझे भी कंपनी मिल जायेगी..”माँ अपने रौ में बोलती जा रही थी, सौम्या की हाँ -हूँ सुन, बोली “क्या बात है सौम्या, तबियत ठीक है..।”

   “हाँ माँ, बस थोड़ा सर दर्द हो रहा “सौम्या ने जवाब दिया।

    “ऐसा कर तू आराम कर, तब तक मै खाना बना लेती हूँ, नये पड़ोसी को भी रात के खाने पर बुलाया है “कह माँ अपने काम में लग गई और सौम्या अपने कमरे में आ लेट गई…, तनाव से सर दर्द बढ़ा हुआ था, सौम्या आँख बंद कर लेट गई, कब नींद आ गई, पता नहीं चला।

   बैठक से आती आवाजो से उसकी नींद खुली, ध्यान से सुनने की कोशिश की, अचानक चौंक गई, एक आवाज कुछ परिचित सी लगी। बैठक में पहुंची तो एक सरप्राइज उसके लिये था, सामने वही सुबह वाला लड़का बैठा था…।

      “अच्छा हुआ सौम्या तू आ गई,ये पारिजात है सामने जो अंकल -आंटी आये है उनका बेटा है।ये आर्मी में है, दो महीने की छुट्टी पर आया है…,आंटी को तबियत ठीक नहीं लग रही थी, वो नहीं आ पायेंगी,पारिजात बताने आया था, मैंने रोक लिया, खाना पैक करके दें दूंगी, जब भूख लगे, खा लेंगे, तू बैठ कर पारिजात से बात कर मै तब तक खाना पैक कर देती हूँ…”कह माँ खाना पैक करने चली गई…।

     पारिजात भी सुबह वाली बत्तमीज लड़की को देख हैरान था। दोनों चुपचाप बैठे थे। “अरे तुम लोग चुप क्यों हो,”तब तक माँ भी खाना पैक कर आ गई…।

    “कुछ नहीं आंटी जी, अब मै चलता हूँ “कह खाना ले चला गया। न जाने क्यों सौम्या को रोना आ गया, सौम्या खुद भी समझ नहीं पाई ये आँसू पारिजात की बेरुखी से है या खुद के व्यवहार से उपजी ग्लानि से है।

           आते -जाते दोनों टकराते , पारिजात दूसरी तरफ मुँह कर लेता था,उसकी ये हरकत सौम्या को दुख पहुंचाती थी।अब तक दोनों परिवारों में खूब दोस्ती हो गई, पारिजात की बहन पंखुड़ी, सौम्या की अच्छी दोस्त बन गई।

     सौम्या किसी का दिल नहीं जीत पाई, वो पारिजात था, जो उसे घमंडी और बत्तमीज समझता था।

    शाम पारिजात छत पर जरूर टहलता था, सौम्या भी किताब ले छत पर आ जाती, नजरें पारिजात पर रहती, ये बात पारिजात को समझ में आ गया..।

     कई दिनों से पारिजात छत पर नहीं दिखाई दिया…. परीक्षा में व्यस्त रहने के कारण सौम्या पंखुड़ी से भी नहीं मिल पा रही थी, कहीं पारिजात की तबियत तो नहीं खराब हो गई, आज सौम्या से रहा नहीं गया, पारिजात के घर पता लगाने चली गई।




    “भैया तो बॉर्डर पर चले गये, अचानक फोन आया, उनकी छुट्टियां कैंसिल हो गई,”पंखुड़ी ने बताया।सौम्या उदास हो गई ये कैसा रिश्ता उसने जोड़ लिया, एकतरफा प्रेम का,…।

   सौम्या की परीक्षा खत्म हो गई, उसके विवाह के लिये योग्य वर देखा जाने लगा। सौम्या ने शादी से मना कर दिया, माँ के बहुत पूछने पर पारिजात के संग अपना एकतरफा प्रेम जाहिर कर दिया।

    “तू चिंता मत कर, कल मै पारिजात की मम्मी से बात करुँगी, वो तो तुमको बहुत पसंद करती गई “

     बात करने की नौबत ही नहीं आई, अलसुबह सामने वाले घर से रोने की तेज आवाज ने कुछ अनहोनी का संकेत दें दिया…। सब भागे पारिजात के घर पहुंचे, पता चला, आतंकियों का मुकाबला करते वो उनकी गोली का शिकार बन गया, हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत से जूझ रहा, पारिजात की मम्मी -पापा और पंखुड़ी चले गये,उनलोगो की कोई खबर नहीं थी। सौम्या डर, तनाव से जूझ रही थी.. अचानक सामने वाले घर में रोशनी दिखाई दी।

     . सौम्या भाग कर गई, दरवाजे पर ही गिरते बची, सामने पारिजात की बड़ी सी तस्वीर पर माला चढ़ा हुआ था, सौम्या बर्दाश्त नहीं कर पाई, होश खो बैठी…। जब होश आया, “भैया की जेब से ये फोटो मिली थी “गीली आँखों से पंखुड़ी ने कहा।

   छत पर बाल सुखाती उसकी ये तस्वीर कब ली गई, उसे पता ही नहीं चला… न इकरार न इंकार… न जाने कैसे ये एक रिश्ता, बेशकीमती बन गया….।

       समय के साथ सौम्या भी जिंदगी में आगे बढ़ी पर उसकी अटैची में उसकी वो तस्वीर आज भी सुरक्षित है, बेनाम रिश्ते की…”

                              —संगीता त्रिपाठी

                           @अप्रकाशित और मौलिक 

   #एक रिश्ता

2 thoughts on “बेनाम रिश्ता – संगीता त्रिपाठी”

  1. सच्चा और पहला प्यार जीवन की अमूल्य धरोहर होती है।

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