आधुनिक परिवेश – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  बहू क्या भेष बना कर रहती हो,आधुनिक जमाने की हो तो कुछ तो मॉडर्न बनो,ये दकियानूसी पन छोड़ो।

     वो-वो माजी,माँ ने बताया था कि शादी के बाद अपने दूसरे घर मे मर्यादा के साथ रहना।सिर पर पल्लू रखना,धीमी आवाज में बोलना,सबका आदर करना।

       तो बेटा कुछ गलत शिक्षा तो दी नही थी,मर्यादा में तो रहना ही चाहिये,सबका आदर भी करना चाहिये।पर इसमें आज का परिवेश कहाँ गायब हो गया, बहू?

       पार्वती अपने एकलौते बेटे मनु के लिये एक समझदार संस्कारवान बहू चाहती थी।उसे शालू एक ही नजर में भा गयी थी। पार्वती ने  कह दिया था कि शालू ही उसकी बहू बनकर आयेगी।उसे दहेज आदि कुछ भी नही चाहिये,ईश्वर की कृपा से उनके घर मे सबकुछ है।शालू की मां की आंखों में तो आंसू ही आ गये थे,उसकी बेटी के भाग से उसे ऐसा सम्पन्न और प्रगतिशील परिवार मिल रहा है।मनु के पिता तो थे नही,जो कुछ थी माँ ही थी।वही सबकुछ थी।

मनु छोटा ही था कि उसके पिता का साया उसके ऊपर से उठ गया था।पार्वती ने पति का कारोबार भी संभाला और मनु की परवरिश भी की।रिश्तेदारों ने पार्वती को समझाया भी था कि पहाड़ सी जिंदगी कैसे बिन साथी कटेगी, शादी कर ले।पर पार्वती ने साफ मना कर दिया और कह दिया मनु के सहारे जीवन व्यतीत कर देंगी।अजीब जीवट वाली थी पार्वती,घर संभाला, पति का कारोबार भी संभाला और मनु की अच्छे से परवरिश भी की।

       मनु ने बिजनेस मैनेजमेंट का कोर्स पूरा करके माँ के साथ ही कारोबार में लग गया।पार्वती अपने पति के कार्य को स्वयं ही संभाल रही थी कि अब बेटे का साथ मिल गया तो कारोबार में और उन्नति होने लगी।

      इधर पार्वती मनु में कुछ परिवर्तन महसूस कर रही थी।वह कुछ खोया खोया रहने लगा था।आवाज देने पर वह चौक पड़ता। पार्वती के पूछने पर वह कुछ नही बताता,बल्कि टाल देता।पार्वती इससे परेशान रहने लगी थी,आखिर मनु को हो क्या गया है?

   पार्वती के यहां ही एक पुराने मुलाजिम दुर्गा दास थे,वो एक दिन पार्वती से बोले,मैडम एक बात कहनी थी,बुरा ना माने तो।

हाँ हाँ बोलो दुर्गा दास जी,क्या बात है,आप तो हमारे पुराने सेवक हो।कुछ जरूरत हो तो बताओ।असल मे मैडम जी मुझे भी कल ही पता चला,सुनकर मेरा   सिर चकरा गया और आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया।पार्वती बोली दुर्गा दास जी साफ साफ बताओ ना क्या बात है?ऐसे पहेली मत बुझाओ।

मैडम मेरी एक बेटी है शालू,जिसने ग्रेजुएट कर लिया है,वह अपने मनु साहब के साथ ही पढ़ती थी।हमे पता ही नही चला,उनका लड़कपन कब प्रेम में तब्दील हो गया?शालू ने कल अपनी मां से यह बात बतायी।सुनकर हम तो हक्के बक्के रह गये।हम सूरज की ओर देखने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं?मैडम मैं नौकरी छोड़ कही ओर चला जाऊंगा।इस उम्र में दूसरी जगह दूसरी नौकरी मिलने में कठिनाई तो आयेगी, फिरभी कुछ भी हो हम इसी हफ्ते इस शहर को छोड़ देंगे।

        दुर्गा दास के रहस्योद्घाटन पर पार्वती को मनु की उदासी के कारण का पता चल गया।लेकिन दुर्गादास अपने स्तर का नही था,ऐसे में उससे रिश्तेदारी कैसे जोड़ी जा सकती है?उन्होंने दुर्गादास को कुछ नही बोला और चुपचाप उठकर दूसरे कमरे में चली गयी।काफी सोच विचारने के बाद वे मनु की केबिन में खुद चली गयी।मनु माँ को देखकर चौका, क्योकि मां पहली बार उसके केबिन में आयी थी,अन्यथा वे ही उसे अपने केबिन में काम होने पर बुला लेती थी।

मनु के पास आ पार्वती ने सीधे ही बोला मनु तुम्हारा अपने दुर्गादास की बेटी शालू से क्या रिश्ता है,साफ बताओ?अचकचा कर मनु चुप हो  अपने पैरों की ओर देखने लगा,उसे कोई उत्तर ही नही सूझा, मां को क्या कहे?मनु को चुप देख पार्वती बोली बड़े कायर हो मनु,तुमसे बहादुर तो शालू निकली जिसने सब कुछ अपनी माँ से बता दिया और तुम घुटते रहे पर अपनी मां को कुछ नही बताया।माँ–माँ कहते कहते मनु पार्वती से चिपट गया,उसकी आँखों से बहते आँसुओं ने सारी कहानी और उसकी भावनाये प्रदर्शित कर दी थी।

        अगले दिन सुबह ही पार्वती मनु को साथ लेकर स्वयं दुर्गादास के घर बिना पूर्व सूचना के पहुंच गयी।उन्हे देख दुर्गादास के घर मे हलचल मच गयी।अनजानी आशंका से ग्रस्त दुर्गादास केवल हाथ जोड़कर रह गया।पार्वती बोली दुर्गादास जी हम आज आपके यहाँ शालू के हाथ की चाय पीने आये हैं।सुनकर दुर्गादास भावविभोर हो उनको अंदर ले आया।सहमती सी शालू चाय लेकर आयी तो पार्वती को वह एक नजर में ही भा गयी।पार्वती ने शालू को अपने पास बिठाकर उसके गले मे अपनी सोने की चैन निकाल कर पहना दी,और बोली दुर्गादास जी शालू आज से हमारे घर की बहू हो गयी।

     शुभ मुहर्त में मनु और शालू की शादी सम्पन्न हो गयी।दोनो खुश थे,उनके प्यार को मंजिल मिल गयी थी।पार्वती महसूस कर रही थी कि शालू कुछ हीन भावना से ग्रस्त है,उसके मन मे भय बना रहता है कि उसके किसी व्यवहार से उसकी सास नाराज न हो जाये। गरीब घर से आयी थी सो उसी प्रकार रहनसहन की आदि थी शालू।

पार्वती चाहती थी कि बहू मर्यादा में तो रहे पर आज के परिवेश को नही अपनायेगी तो सदैव ही हीन भावना से ग्रस्त रहेगी।इसी कारण पार्वती शालू से कह रही थी,बेटा संस्कार, मर्यादा ,आदर सत्कार ये तो होने ही चाहिये जो तुम में है पर आज के जमाने मे तुम्हे कोई इन गुणों के कारण कमतर आंक ले,ये भी तो उचित नही।तुम इस घर की मालकिन हो शालू हो,ठसके से रहो, बेटा।

     शालू देख रही थी अपनी सास को टुकुर टुकुर।

बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित।

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