बेटी के जन्म की दुगुनी खुशियां मनानी चाहिए – निशा जैन : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जानकी जी अपने पति कैलाश जी से बोली सुनिए जी इस बार कहे देती हूं हमारे आकाश और आरती के बच्चे के जन्म की बहुत बड़ी दावत देंगे हम सबको, भगवान  बड़ी मुश्किल से चार सालों बाद हमे दादा दादी बनने का सुख देने जा  रहे हैं। हां हां क्यों नहीं जरूर अपनी खुशी सबके साथ बांटने से तो खुशी और भी दुगुनी हो जायेगी और सब लोगों का आशीर्वाद भी मिलेगा हमारे बच्चे को, तुम जो चाहोगी वैसे ही होगा। 

कैलाश जी और जानकी जी हॉस्पिटल में बैठे हुए बात ही कर रहे थे तभी नर्स ने आकर बताया कि आरती को प्यारी सी बेटी हुई है आप जाकर मिल सकते हैं उससे।

जानकी जी के तो  जैसे पर लग गए सुनते ही, दौड़ी दौड़ी पहुंची आरती के रूम में  पीछे से कैलाश जी बोलते रहे धीरे जानकी धीरे… पर वो कहां सुन रही थी उनकी आवाज और अपने पोती को जैसे ही देखा उनके आंखो से खुशी के आंसू बह निकले । आरती को ढेरों शुभकामनाएं देते हुए उसे अपने गले लगा लिया। 

जानकी जी को कोई बेटी नही थी बस एक बेटा था आकाश  पर आकाश की शादी के बाद आरती के रूप में उनको बेटी मिल गई थी और आरती भी अपने सास ससुर का मां बाप की तरह सम्मान करती। अपने सास ससुर की सोच पर बहुत गर्व था आरती को जो बहू को बेटी बनाकर रखते थे।

 

3 दिन बाद आरती को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई और जानकी जी अपनी जान से ज्यादा प्यारी पोती को ले आई अपने घर। 

           सबने बात करके निश्चय किया कि कुआं पूजन का कार्यक्रम सवा महीने बाद रखा जायेगा और तभी सबको पोती के जन्म की दावत भी दे देंगे। 

           कैलाश जी जानकी जी के साथ अपने बड़े भाई महेश जी और उनकी पत्नी सुमित्रा के पास विचार विमर्श के लिए गए लेकिन जैसे ही उन्होंने  दावत के बारे में सुना  सुमित्रा जी बोली कैलाश भाई साहब पोती के जन्म की दावत कौन देता है, हां पोता होता तो अलग बात होती। 

           अरे भाभी कैसी बातें कर रही हैं आप,  पता नही किस जमाने  में जी रही हैं आप ?

वो जमाना गया अब जब बेटे बेटी में भेद किया जाता था

 बेटा बेटी सब एक समान हैं हमारे लिए , पोता हो या पोती …है तो हमारा वंशज ही न और पोती मे भी तो हमारे खानदान का ही खून है फिर फर्क कैसा? महेश जी ज्यादा कुछ नही बोल पाए ।

           जानकी जी भी सारी बातें सुन रही थी पर वहां बड़ों के सामने बोलना उचित नही समझा तो चुपचाप अपने घर आ गई पर उनके मन में अभी भी ये बात चल रही थी जो सुमित्रा जी ने कही

“पोती के जन्म की इतनी बड़ी दावत कौन देता है? पोता होता तो कुछ अलग बात होती”

           उन्होंने घर आकर अपने पति को बोला कि खुशी हमारी है, हम चाहे जैसे व्यक्त करें । भाभी को ऐसा नही बोलना चाहिए था।  हां हां तुम करो जो तुम्हारा मन है , भाई साहब _भाभी  की बातों को दिल से न लगाओ महेश जी ने जानकी जी के बढ़ते गुस्से को यह कहकर कुछ कम करने का प्रयास किया।

           सवा महीने बाद उनकी पोती का नामकरण और कुआं पूजन का फंक्शन एक साथ रखा गया। पोती का नाम खुशी रखा जानकी जी ने, बड़ी खुश जो थी वो आजकल उसके आने के बाद से।

           बहुत से रिश्तेदार, पड़ोसी, परिवार वाले  कार्यक्रम की व्यवस्था देखकर प्रशंसा कर रहे थे तो कुछ ऐसे भी थे जो आपस में बातें कर रहे थे जानकी जी को क्या जरूरत थी पोती के जन्म की इतनी बड़ी दावत देने की, पोता होता तो कुछ और बात थी।

           आते जाते जानकी जी के कानों में भी पड़ गई ये बात और ये ही बात वो पहले भी सुन चुकी थी तो अब उनसे रहा नही जा रहा था बिना कुछ कहे। 

           थोड़ी देर बाद जानकी जी के संबोधन ने सबका ध्यान आकर्षित किया…. “आप सभी लोगों का मैं तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूं के आप सबने मेरी खुशी को आशीर्वाद देने के लिए अपना कीमती समय दिया और कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई पर साथ ही सबसे एक विनती भी करना चाहती हूं कि बार बार ये कहना बंद करें कि पोती के जन्म की दावत कौन देता है,  पता नही किस  ज़माने में जी रहे हैं आप लोग?

अरे मैं कहती हूं कि पोता हो या पोती ,है तो हमारा वंशज ही न।दादा दादी तो दोनो ने ही बनाया है हमे, दोनो में ही हमारे ही बच्चो का अंश है तो फिर फर्क कैसा।

           सब कहते हैं कि बेटा कुल का नाम रोशन करता है पर मैं कहती हूं कि बेटा तो बस एक ही कुल का नाम रोशन करता है जबकि बेटियां दो दो कुलों का नाम रोशन करती है अपने पिता और अपने पति के कुल का। इसलिए बेटी के जन्म की तो बल्कि दुगुनी खुशियां मनानी चाहिए ।”

अब आप सब ही बताइए मैं क्या झूठ बोल रही हूं?जो लोग पहले ये बातें कर रहे थे वो ही अब जानकी जी की बातों से सहमत नजर आ रहें थे। 

           क्या बेटी की शादी के बाद मां बाप का नाम बदल जाता है? नही न । पहचान तो उसकी हमारे नाम से ही है ना… ससुराल वाले बोलेंगे कि फलाने की बेटी तो बहुत समझदार है, बहुत संस्कारी बहु है तो हमारे कुल का ही नाम रोशन होगा ना, और बेटी की प्रशंसा होने पर सबसे पहले मां बाप का सर ही गर्व से ऊंचा होता है, आप सब भी गवाह हो इसके, आपके भी तो बेटियों की प्रशंसा आपको गर्व से भर देती होगी न। तो  आप सबसे मेरी यही विनती है कि पोता है या पोती ये न सोचकर , सोचो ये हमारी संतान है और इस से ही हमारी पहचान है। पता नही किस जमाने में जी रहे हो आप लोग जो सोचते हैं बेटी वंश नही चला सकती ।

 आधुनिक युग में जहां बेटी माता पिता की अर्थी को कंधा देकर मुखाग्नि दे सकती है तो क्या वंश नही चला सकती?

उनकी ऐसी परवरिश करो, संस्कार दो जिससे वो आपका सीना गर्व से चौड़ा कर दे। जमाना बदल चुका है तो अपनी सोच भी हमे बदलनी चाहिए

           जानकी जी का ये रूप देखकर जहां सब लोग अचंभित थे वहीं आकाश ,आरती और कैलाश जी  जानकी जी का ये रूप देखकर गर्व से फूले नहीं समा रहे थे ।

 

 

दोस्तों बेटा हो या बेटी, पोता हो या पोती ….हमे उनका पालन पोषण लड़का और लड़की के भेद के साथ करने के बजाय ये सोचकर करना चाहिए कि दोनों हमारी ही संतान हैं और उनसे ही हमारी पहचान है। दोनों को समान शिक्षा और संस्कार देना  ही हमारा सबसे पहला कर्तव्य होना चाहिए ।

आप मेरे विचारों से सहमत हैं तो मेरा मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन करना ना भूले

धन्यवाद

 

निशा जैन

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