Moral Stories in Hindi : आज तो शामली की खुशी का ठिकाना न था। बाबा ने मंडी से आते ही दस रुपये का नोट जो उसके हाथ में रख दिया। जिसके लिए वह कई दिनों से जिद्द कर रही थी।
ये देखकर रानी महेश से कहने लगी।
– हाँ, हाँ बिगाड़ लो। लाड-प्यार में हर बात मानोगे तो एक दिन जिद्दी हो जायेगी।
रानी की बात सुनकर महेश तुनक कर बोला–
-रानी, कैसी बातें करती है। अरे इसे बिगाडना नहीं प्यार कहते हैं।
प्यार तो रानी भी शामली से कम नहीं करती थी, परन्तु महेश की ऐसी प्रतिक्रिया देख वह भी चिढ़ सी उठी। इसी कारण वह तिलमिला हुई बोली-
-अच्छा तो ये बात है। बच्चों को पैसे देकर ही लाड़ लड़ाया जाता है क्या? इसका मतलब ये हुआ कि जो माता-पिता अपने बच्चों को पैसे नहीं दे सकते वो उनसे प्यार ही नहीं करते।
-रानी का बात का जवाब देते नहीं बना तो महेश चुप-सा हो गया और शौचघर की तरफ जाने लगा तो रानी पलंग पर से ही तेज आवाज़ में बोली ताकि महेश उसकी बात सुन सके।
क्यों शामली के बाबा? चुप क्यों हो गये। अंदर कहाँ शौचघर में घुसे जा रहे हो।
अरे, आया भागवान, तनिक ठहर जा। जोर की लगी है।
कुछ देर बाद महेश शौचघर से निकला।
-हाँ अब बोल क्या कह रही थी।
-मैं कह रही थी कि बच्चों को क्या पैसे से ही लाड लडाया जाता है?
-रानी तू भी न कैसी बात कर रही हैं। कौन-सा बच्चों की फौज है, अरे एक ही तो बिटिया है और एक ही तो बीवी है हमारी। सब कुछ तुम लोगों के लिए तो करता हूँ।
बस बस बातें बनाना तो कोई तुमसे सिखे।
अच्छा, तूने देखा नहीं उसे। जब मैंने उसके हाथ में पैसे दिये तो वो कैसे चहकती हुई मेरे गले से लिपट गयी। उसकी इसी खुशी को देखने के लिए तो मैं इतनी मेहनत करता हूँ।
महेश रानी के नज़दीक आया और उसके गले में हाथ डाल कर बोला–
मैं तुम्हें और शामली को दुनियां की सारी खुशियां देना चाहता हूँ।
तुम दोनों के अलावा मेरा है ही कौन?
-तभी तो शामली के बाबा बेटी को इतना लाड़ लड़ाने से डर लगता है। कल को दूसरे घर जायेगी तो कैसे रहेंगे इसके बिना ?
-मैं नहीं भेज रहा उसे किसी पराये घर। हमेशा मेरे पास रहेगी। बताये देता हूँ। मैं कोई उसकी शादी वादी नहीं करने वाला। यहीं अपने पास रखूँगा। और हाँ करूँगा भी तो लड़का भी साथ ही रहेगा। मैं उसका भी खर्चा उठा लूंगा।
रानी माथे पे हाथ मारती हुई बोली-ये लो कर लो बात। अरे रीति-रिवाज़ नाम की भी कोई चीज होवे है के न। तुम तो बेटी में मोह में अंधे होय जाओ। शादी के बाद लड़कियाँ अपने ही ससुराल में अच्छी लगती हैं। बस भगवान से हाथ जोड कर यही विनती है कि हमार बिटिया को अच्छा घर ससुराल मिल जावे तो हम गंगा नहाय लये।
-रानी ऐसी बात नहीं है कि मैं शामली की शादी नहीं करूँगा या उसके लिए घर-जमाई रखूँगा। पर पता नहीं क्यों जब कोई बिटिया की शादी की बात करता है तो न जाने एक अजीब-सा डर पैदा होने लगता है।
-बात तो तुम सही कह रहे हो। अंदर से तो मैं भी डर जाती हूँ जब भी कभी शामली से दूर होने की बात आती है। अजीब सा डर लगने लगता है। शायद हर माँ-बाप को भी ऐसे ही डर लगता होगा?
सही कहा तूने रानी। अच्छा सुन मैं क्या कहता हूँ। हम न अपनी बेटी को खूब पढ़ाडेंगे-लिखाएंगे। उसे इस काबिल बनाएंगे ताकि वो किसी पर भी निर्भर ही न रहे। और रही बात इसकी शादी तो उस में अभी बहुत वक्त पडा है। जब समय आयेगा तब देखेंगे। अभी तो कम से कम मैं इसे इसके अपने घर में उसके हिस्से की खुशियां दे दूं। अभी वो केवल छह-सात साल की ही तो है। कहाँ उसके ब्याह की चिंता में पड रही हो अभी से। खेलने कूदने की उम्र है अभी तो उसकी।
-तुमसे से जिरह करना ही व्यर्थ है। मैं भी तो यही चाहती हूँ कि ये स्कूल जाकर कुछ पढे लिखे ताकि इसकी ज़िंदगी संवर जायें। नहीं तो कहीं हमारी तरह इसका ही इसका भी भविष्य कहीं गरीबी की अंधी गलियों में ही ख़त्म न हो जाये।
हाँ रानी तुम्हारी बात सही है।
ये जो तुम्हारी शामली हैं न ये तो स्कूल के नाम से ही रोने लगती है।
-आपको पता भी है। कभी जानने की कोशिश भी की है कि वो स्कूल से आकर सारा दिन वो क्या करती है, बस ठेला उठाए और चल दिये मंडी। कभी घर-भार की ख़बर भी रख लिया करो।
-तेरे रहते मुझे क्या ज़रूरत है। मुझे पता है तू घर और शामली को अच्छे से संभाल सकती है।
-अच्छा तो ये बात है। ज़्यादा भ्रम में न रहो। अरे मेरे सुनती कहाँ है। अभी आये तो पूछना सारा दिन क्या करती है।
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