‘चीख’ (भाग 2) – पूनम (अनुस्पर्श): Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : -अच्छा बाबा तू ही बता दे, क्या करती है?

रानी पानी का गिलास महेश को देते हुए वहीं पलंग पर पसर गयी और शामली के सारे दिन की दिनचर्या का पिटारा खोल कर बताने लगी-

 तुम्हारी लाडली जैसे ही स्कूल से आती है बाहर ही बस्ता ही फेंक कर कालू के साथ खेलने भाग जाती है। ये कालू तो एक नम्बर का बदमाश है न तो खुद पढता है और न ही उसे पढने देता है। खुद तो दिमाग का इतना तेज है कि हर साल कक्षा में दूसरे तीसरे नम्बर पर तो आ ही जाता है। ये जो तुम्हारी लाडली है न इसे न तो खाने की सुध है और न ही पढ़ाई लिखाई की। बस स्कूल से आते ही बाहर भाग जाती है स्कूल के कपडे़ तक नहीं बदलती। आवाज़ लगाओ तो बस अभी आई मां।  यहाँ मैं खाना लगा कर बैठी रहती हूँ कि अभी आ रही होगी दोनों साथ में ही खा लेंगे।  काफी समय के बाद जब नहीं आती तो फिर खुद ही जा कर बुलाती हूँ। सारा दिन यही चलता रहता है।  जरा सा डाँट तो बस रोने लगती है। धमकी देती है वो अलग कि  आपसे मेरी शिकायत कर देगी। और तो और धमकी देती है कि शाम को जब बाबा आएंगे तो उनसे पिटवाउंगी। 

रानी की बातें सुनकर महेश जोर-जोर से हंसते हुए कहने लगा-

तो सारा दिन तुम मां-बेटी का ये ड्रामा चलता रहता है।

महेश को यूं हंसता देख रानी बोली-हाँ हाँ हंस लो और दूसरी तरफ मुँह फुला कर बैठ गयी।

महेश उसे मनाते हुए बोला–

अरे तुम तो बुरा मान गयी। अच्छा उसे आने दो मैं उसे डाँटूंगा।

महेश ने रानी को मनाते हुए अपनी तरफ खींचा। 

-देखो जी कहे देती हूँ। बहुत सपने संजो रखे हैं मैंने इसके लिए। 

अपनी ज़िंदगी तो गुजर गयी जैसे-तैसे। मां-बाप की इतनी हैसियत न थी कि अपनी बेटियों को वो पढ़ा सकते पर, हम चाहे तो अपनी बच्ची को पढ़ा-लिखा कर इसकी ज़िंदगी संवार सकते हैं। कुछ पढ-लिख जायेगी तो इसी की ज़िंदगी संवर जायेगी। मेरे जैसे घरों में बर्तन तो नहीं मांजने पडेंगे। सौतेली ही सही पर अब तो मैं ही इसकी माँ हूँ न। मैं परवाह नहीं करूँगी तो कौन करेगा? और फिर दुनियां वाले क्या कहेंगे। यही न-सौतेली है इसलिए इसका ध्यान नहीं रखती। 

कहते-कहते रानी की आँखें भर आयी।

-अरे तू भी न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाती है। सब जानता हूँ रानी। तू इसकी बहुत परवाह करती है।  और रही बात दुनियां वालों की तो उनकी परवाह नहीं करता। जब मेरा बुरा समय था तो कुछ ही मेरे अपनों के सिवाय कोई मेरे साथ खड़ा नहीं था। जबकि दुनियां तो इतनी बड़ी है। भाग्यशाली है वो जिसे तेरे जैसी माँ उसे मिली। 

तुम्हें तो मैंने बताया ही था इसके पैदा होने के समय सरस्वती और शामली दोनों को ही जान का खतरा था।  डाक्टर ने पहले ही कहा था दोनों में से किसी को कुछ भी हो सकता है। 

सरस्वती की तबीयत ज़्यादा ही खराब हो गयी। बडे अस्पताल ले जाने के पहले ही वो छोड़ गयी।

उस समय लोगों ने कैसे कैसे ताने नहीं मारे इस नन्हीं सी जान को। ‘पैदा होते ही माँ को खा गयी। मनहूस है और भी न जाने क्या क्या कहा।’ इतना ही नहीं ननिहाल वाले तो देखने तक नहीं आये, कहलवा दिया कि जब हमारी बेटी ही नहीं रही तो नाती के साथ कैसा रिश्ता। पता है रानी वह समय मेरे लिए बडा ही कठिनाई से भरा था। मेरा अपना यहाँ कोई नहीं था। परिवार में ले देकर एक भाई और उसका परिवार है वो भी दूर गाँव हैं। 

इस नन्हीं सी जान को कैसे अकेला छोड़ता। दो महीने तक तो मंडी भी नहीं जा पाया था। 

सारी जमा पूंजी तो सरस्वती की बीमारी में लग गयी थी। गाँव से रमेश भाई आ नहीं सकते थे ,भाभी का नौंवा महीना जो चल रहा था। उनकी भी मजबूरी थी। हालांकि भाभी की जिद्द के कारण वो सरस्वती की क्रिया में शामिल होने आये पूरी रात मेरे साथ रहे। मुझे किसी भी प्रकार की चिंता न करे ऐसा दिलासा देते रहे, मेरी हालत के बारे में तो उन्हें अंदाजा था ही सो वो गाँव से ही पैसे भेजते रहे। ताकि इस नन्हीं-सी जान को कोई दिक्कत न हो।

बहुत ही बुरा वक्त था। 

महेश की बात सुनकर रानी बीच में ही बोली-

वैसे जेठ जी हैं बहुत अच्छे। हमेशा इतने स्नेह से बात करते हैं। शामली को भी कितना प्यार करते हैं। जब भी आते हैं ढेरों चीजें उसके लिए लाते है।

हाँ रानी, उस कठिन दौर में रमेश भाई और शामू भाई दोनों के बडे अहसान हैं चाह कर भी कभी उतार नहीं पाउंगा। इतना ही नहीं कल्याणी बहन ने भी मुझ पर बडे उपकार किये।

मुझे और शामू को सुबह ही मंडी के लिए निकलना होता था तब इसे कल्याणी बहन ही संभालती थी। 

अच्छा! हैरानी से आँखें बड़ी करते हुए रानी ने कहा।

-हाँ । 

कल्याणी बहन शामली का ख्याल बिल्कुल  अपनी बेटी की तरह ही रखती थी। शामली का नाम भी उन्होंने ही रखा था। उन्हें इतना लगाव और फिक्र थी कि जहाँ भी जाती शामली को अपने साथ ही रखती। कालू के बाद कोई संतान नहीं हुई। उनकी इच्छा थी कि उनकी भी एक बेटी हो।

– रानी, तुझे एक बात और बताता हूँ। 

-तनिक ठहरों जरा दाल की कडछी घूमा कर आती हूँ। 

आज तो रानी को महेश की बातों में बडा ही मजा आ रहा था। आज दोनों बड़ी ही फुर्सत से जो  बैठे थे।

रानी, दाल में कडछी घूमा कर फिर धम्म से आकर पलंग पर बैठ गयी।

-हाँ तो बताओ। क्या बात बताने जा रहे थे। 

कल्याणी भाभी और शामू भाई ने एक दिन मुझ से कहा कि जब शामली का ब्याह हो हम ही उसका कन्यादान करें, इतना अधिकार आपसे चाहते हैं। -फिर आपने क्या कहा?

उनकी बात सुनकर मैं थोड़ा चुप हो गया ।

फिर उन्होंने ही चुप्पी तोडते हुए कहा-‘अगर आप को मेरी बात बुरी लगे तो मुझे माफ कर दीजिएगा। शामली आपकी इकलौती बेटी है। उस पर आपका ही हक है।

महेश की बात सुनकर रानी फिर तापाक से बोली-

-तो फिर आपने क्या कहा?

-रानी, उस समय मैंने उनकी आँखों में शामली के प्रति वात्सल्य और उनके चेहरे की उदासी का देखकर मैं उन्हें मना ही नहीं कर पाया। वैसे भी पैदा करने वाले से ज़्यादा हक पालने वाले का होता है। वो अगर उस समय शामली का ध्यान नहीं रखती तो पता नहीं शामली का क्या होता। 

इसलिए मैंने उन्हें ये वचन दे दिया। हो सकता है, तुम्हें ये सुनकर बुरा लगा होगा। क्योंकि इस पर तुम्हारा ही हक होना चाहिए। परंतु उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि तुम मेरी ज़िंदगी में आओगी। 

-आपने उन्हें यह हक देकर बहुत ही अच्छा निर्णय लिया। आपका यह वचन कभी नहीं टूटेगा। शामली के ब्याह का कन्यादान वो दोनों ही करेंगे।  

भावुक होकर रानी अपनी आँखें पोंछती हुई बोली। मुझे आज भी वो दिन याद है जब आपने पहली बार उसे मेरी गोद में डाला। तब वह मात्र पाँच महीने की थी। उसे कहाँ पता मैं उसकी सगी माँ नहीं हूँ। उसे तो केवल माँ का प्यार चाहिए था। वही कल्याणी भाभी ने भी दिया। जिस समय बच्चे को जन्म देने वाली माँ उसके सबसे नज़दीक होती है उस समय कल्याणी बहन ही शामली के सबसे नज़दीक थीं। इसीलिए कन्यादान के लिए सबसे पहला हक तो उन्हीं का बनता है। 

रानी, सच कहूं तो सरस्वती के जाने के बाद दूसरी शादी का कोई इरादा भी नहीं था। क्योंकि मैं हमेशा इस बात से डरता था पता नहीं दूसरी शादी करने के बाद भी इसे माँ का प्यार मिलेगा या नहीं । दूसरी औरत इसे अपनायेगी या नहीं?  बडे सारे सवाल मन में आते थे। भइया, रिश्तेदार और पड़ोसी बहुत दबाव डालते थे कि दूसरी शादी कर ले, शामली को माँ की ज़रूरत है। लडके तो पल जाते हैं। लड़की जात है। कैसे पालेगा। आजकल का समय सही नहीं है। इसके सर पर एक माँ की छाया होनी ज़रूरी है। पर डरता था पता नहीं शादी के बाद शामली का भविष्य कैसा होगा। बहुत दुविधाएँ मन में दौडती थीं।

एक दिन अचानक ही तुम्हारे बाबा मेरे ठेले के पास बेहोश होकर गिर पडे़। मैंने उन्हें पानी पिलाया। डाक्टर को दिखाकर घर छोड़ दिया। इसके बाद तो वो मंडी में जब भी आते मुझे ढूँढ़ते और मुझ से बाते किया करते। मुझे भी उनमें अपने बाबा की छवि दिखाई देती इस कारण उनसे बातें करना अच्छा लगता। धीरे धीरे हमारी दोस्ती इतनी गहरी हो गयी कि जब तक एक दूसरे से मिल न ले दिल को सुकून नहीं मिलता। जिस दिन नहीं मिलते या काफी दिन हो जाते तो एक दूसरे के  घर ही पहुँच जाते खैर ख़बर लेने।  

एक दिन वो तुम्हारे लिए इतने परेशान थे कि मेरे सामने ही रो पडे़।

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