‘चीख’ (भाग 3) – पूनम (अनुस्पर्श): Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

तब मेरे मन में एक बात आई कि शायद कहीं भगवान ने हम दोनों को इसीलिए तो नहीं मिलाया। सच पूछो तो हम दोनों की ही ज़रूरतें एक-दूसरे से जुडी थीं। उन्हें तुम्हारा दूसरा घर बसाना था। और मुझे शामली के लिए एक माँ को लाना था। जब तुम्हारे बाबा ने कहा कि तुम शादी के बाद मेरी बेटी को अपना लोगी। तो मैं शादी के लिए तैयार हो गया । सोचा जो इसकी किस्मत में होगा देखा जायेगा।

-तो अब क्या राय है तुम्हारी मेरे बारे में, रानी ने चुटकी लेते हुए पूछा।

महेश कौन सा कम था।

हूं इतनी भी बुरी नहीं हो।

रानी ने फिर नाराज होते हुए मुँह बनाया तो महेश जोर जोर से हंसने लगा।

जाओ मैं तुमसे बात नहीं करती।

अरे तुम्हारी यहीं नाराजगी तो मुझे अच्छी लगती है। कहते हुए महेश ने रानी का हाथ बडे प्यार से अपनी ओर खींच लिया।

रानी भी शर्माती हुई बोली-बडे खराब हो तुम।

रानी, वैसे शामली है बड़ी किस्मत वाली।

मेरे लिए ये लक्ष्मी माँ से कम नहीं है। जब से पैदा हुई है तब से कभी भी किसी चीज की कमी नहीं हुई। भगवान ने एक माँ को छीना तो दूसरी दे दी। साथ ही इसके आने के बाद तो मेरे काम में और भी बरकत आ गयी। जहाँ एक फल का ठेला था वहाँ दो लगने लगे। ये तो अभी कुछ दिनों से मंडी वालों की हड़ताल से थोड़ा ढीला हिसाब किताब हो गया नहीं तो इस दीवाली पर तेरे लिए झुमकियाँ बनवाता। 

महेश की बात सुनकर रानी थोड़ी भावुक सी हो गयी-

कैसी बातें करते हो महेश।

मेरे लिए झुमकियां नहीं तुम और शामली सब कुछ हो। काम अच्छा हो जायेगा तो इसके नाम से बैंक में एक अकांउट खुलवाकर हर महीने थोड़ा-थोड़ा पैसा इसकी पढ़ाई के नाम से डालना होगा। ताकि कभी कोई दिक्कत आये तो इसकी पढ़ाई पर कोई असर न पडे़। 

रानी ये तो मेरे दिमाग में कभी आया ही नहीं। इसीलिए तो पढना लिखना कितना ज़रूरी है ये तेरी समझदारी देखकर समझ में आ गया। ये तो तेरी किस्मत खराब थी जो मेरे जैसा अनपढ तेरे गले पड़ गया।

महेश ये कैसी बातें करते हो। जो पढ़ा लिखा होकर भी किसी की भावनाओं को न समझे वो तो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं है। केवल तुम्हीं ने मेरी भावनाओं को समझा और और मेरी कद्र की। रही बात शामली की तो ये तो एक माँ का फर्ज है। बल्कि अहसान तो आपके रहेंगे। इस जन्म में तो क्या, अगले सात जन्मों में भी तुम्हारे जैसा पति मिले यही भगवान से प्रार्थना करती हूँ। 

मुझे और मेरे बूढे माँ बाप को तुम ही ने तो संभाला। ससुराल से निकाले जाने के बाद भाई और भाभी ने भी तो घर के दरवाजे बंद कर दिये थे। मेरे साथ-साथ मेरे माँ और बाबूजी को भी घर से निकाल दिया। आमदनी कुछ थी नहीं। बाबूजी ने सब्जी का ठेला लगाना शुरू किया। जिसमें मैं और माँ मदद करते थे परंतु मंडी से सब्जियाँ लाना बाबूजी के लिए इतना भी आसान नहीं था। मंडी में एक तुम ही तो थे जो बाबूजी की मदद किया करते थे। बाबूजी अक्सर तुम्हारी बातें करते थे। एक बार कई दिन तक तुम जब मंडी नहीं आये तो बाबूजी पता पूछते-पूछते तुम्हारे घर पहुँचे । वहीं उन्हें तुम्हारे बारे में पता चला। तभी उन्होंने मुझ से पूछा कि क्या मैं तुम से विवाह करना चाहूँगी। बिन माँ की बच्ची को अपना सकती हो तो मैं महेश से बात करूं।  

तुम से विवाह करने के बाद पता चला, परिवार क्या होता है। राकेश ने तो मुझे कभी पत्नी की तरह रखा ही नहीं। उसके लिए तो मैं केवल मात्र नौकरानी थी। सास-ससुर भी तो किसी से कम न थे। बेटे को कभी नहीं समझाया कि वो मेरे साथ गलत व्यवहार क्यों रखता है। गरीब माँ बाबूजी उनकी इच्छानुसार दहेज जो न दे सके थे। जब उसे पता चला कि वो कभी बाप नहीं बन सकता तो मुझ पर ही इल्जाम लगा कर घर से निकाल दिया। ताकि उसके पुरुषत्व को ठेस न पहुँचे। 

कहते-कहते रानी भावुक सी हो गयी।

-अरे क्यों पुरानी बातें याद करके खुद को दुख पहुँचाती हो। भूल जाओ जो हुआ। वो बदनसीब रहा होगा जो तुम जैसी सुशील औरत की परख न कर सका। मैं केवल इतना जानता हूँ कि एक दिन सभी को अपने कर्मों का हिसाब यहीं देकर जाना है। 

सही कहा जी। अब आप ही दोनों मेरी दुनियां हो। बोलते-बोलते रानी की आँखें फिर भर आयी जिन्हें अपनी साड़ी के पल्लू से बड़ी सफाई से छुपा गयी।

तू देखना रानी तुझे और शामली को सारी दुनियां की खुशी दूँगा। अभी मेरे पास दो ठेले तो हो गये। ईश्वर ने चाहा तो अगले साल शामली के जन्मदिन पर एक और ले लूंगा। खूब मेहनत करूँगा। ये कहते हुए महेश ने उसे आलिंगबद्व कर लिया।

-अरे छोड़ो भी कोई देख लेगा।

कोई नहीं है। 

दाल जल जायेगी।

नये नये बहाने बना कर रानी ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की पर महेश ने उसे कस के प्यार से आलिंगबद कर लिया।  

रानी को छेडते हुए महेश बोला– 

-अच्छा एक बात बता। शामली जो भाई की जिद्द करती रहती है। उसका क्या सोचा है । ये सब्जी का ठेला क्या मैं बुढ़ापे में भी चलाता रहूँगा।

महेश की बात सुनकर रानी शर्माती हुई बोली । कुछ चीजें समय पर ही छोड़ देते हैं। 

ये तो तूने सही कहा।

सच कहूं तेरा प्यार और ममता को देखकर मैं निश्चित हो जाता हूँ। कल को अगर मुझे कुछ हो गया तो मेरी शामली अनाथ नहीं होगी।

ये तुम कैसी बातें कर रहे हो। कुछ नहीं होगा तुम्हें। ऐसा सोच ही क्यों रहे हो।

बस ऐसे ही मन में ख्याल आ गया। दीनू को जानती हो?

-हाँ वो जो पिछली गली में रहता है।

-हाँ हाँ वहीं। चार दिन पहले एक गाडी वाले ने उसकी रेहडी में ऐसी टक्कर मारी कि बेचारा हवा में उछल कर पटरी पर जा गिरा। सिर पर गहरी चोट आयी है। अभी हॉस्पिटल में पडा है। दस साल का बेटा है। उसकी बीवी और बेटा दोनों हस्पताल के चक्कर लगा-लगाकर थक चुके हैं। डाक्टर ने कहा है पचास हजार रुपये लगेंगे आपरेशन के लिए। 

-ये तो बडे ही दुख की बात है।

-सो तो है। अपनी झोंपड़ी भी बेच दे तो भी इतनी रकम नहीं ला सकता। 

हम्म, बात तो सही है। हालांकि गलती दीनू की ही थी। गलत साइड से रेहडी जो ला रहा था। पुलिस ने तहकीकात की है। सब कैमरे में रिकार्ड है। गलती दीनू की होने के बावजूद भी गाडी वाले ने उसकी हालत देखकर उसको  बीस हजार रुपये की आर्थिक मदद की ताकि वो अपना इलाज करा सके।

हम सब रेहडी वाले उसके लिए कुछ करने की सोच रहे है। ताकि उसकी जान बचाई जा सके नहीं तो उसका परिवार भूखो मर जायेगा। 

-सही किया। शाम को उसके घर जाकर कुछ राशन रखवा आते हैं।

हम्म़ 

अच्छा मैं क्या कहती हूँ एक अकांउट आप अपने नाम का भी खुलवा लो और उसमें जब भी ज़्यादा कमाई हो वो हिस्सा बैंक में जमा करवाओ । एक अच्छी रकम होने पर किराये पर यहीं फल की दुकान खोल लेना ताकि सारा दिन मारा मारा न फिरना पडा। इतनी अच्छी मार्किट बगल में ही है। कितने ही फल वालों की यहाँ दुकानें हैं। दोनों मिलकर चलाएंगे। दुकान से ज़्यादा आदमनी होगी। फिर शामली को भी अकेले घर में नहीं रहना पडेंगा। 

-हाँ सही कहा रानी। आजकल का माहौल भी कितना खराब है। 

 

-देखना रानी, मैं इसे खूब पढ़ाउंगा-लिखाउंगा। पायलट बनाउंगा अपनी शामली को। आसमान में जहाज उडायेगी। तू देखना एक दिन मेरी बेटी बहुत बड़ी अफसर बनेगी और वो अपनी किस्मत खुद बनायेगी। 

हाँ महेश सही कह रहे हो। पर इतनी सी आमदनी में यह संभव नहीं है इसीलिए मैंने भी सोचा है कि मैं दो-चार घरों में और काम पकड़ लेती हूँ। ज़्यादा पैसे आएंगे तो किसी बड़े स्कूल में दाखिला करवा सकें। वहाँ की फीस भी तो ज़्यादा होती है। सरकारी स्कूल में पढेगी तो बस दसवीं ही कर पायेगी। वैसी भी सरकारी स्कूल में कहाँ से ढंग से पढ़ाते हैं।

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