Moral Stories in Hindi : – सुबह का निकला महेश दोपहर को घर पहुँचा अब भूख से आंते कुलबुलाने लगी तो हंसता हुआ बोला–
मेरी प्यारी रानी अब सारी दोपहरी बातों में ही निकाल देगी। खाना तो खिला दे। कब से चूहे दौड़ लगा रहे हैं।
हे भगवान मैं भी कितनी बुद्दू हूँ। पति छह बजे का घर से गया अब लौटा है। मैं हूँ कि शिकायतें लेकर बैठ गयी। माफ करना शामली के पापा। अभी लाती हूँ।
रानी को कुछ याद आया और बुड़-बुड़ करने लगी-हे भगवान चूल्हे पर दाल रख कर आयी थी। कहीं पतीले से न लग गयी हो।
आज तो दोनों बड़ी ही तसल्ली से बातों में लगे हुए थे। जाने कितने दिनों बाद मिले हों। सच बात तो यह है कि आजकल हर किसी की ज़िंदगी इतनी व्यस्त हो गयी है कि एक ही छत के नीचे रहते हुए भी एक-दूसरे के लिए समय निकालना कठिन हो जाता है।
खैर कहानी को आगे बढ़ाते हुए।
इधर शामली तो दस का नोट मिलते ही यह कहकर भाग गयी कि बाबा मैं शामू की दुकान पर जा रही हूँ। कालू को भी साथ ले जाऊँगी।
शामू की दुकान पिछली गली में ही थी। सारे बस्ती के लोग उसी से राशन की चीजें जैसे दाल, चावल, आटा और भी खाने-पीने का सामान शामू की ही दुकान से लिया करते थे।
बहुत दिनों बाद आज बाबा ने उसे दस रुपये जो दिये थे। दस रुपये मिलते ही भाग कर सामने वाले घर में अपने दोस्त कालू को साथ में चलने के लिए उसने आवाज़ दी।
-कालू ओउउउ कालू जल्दी बाहर आ।
कालू उसका पक्का दोस्त जो था। पूरे दिन में कई बार एक-दूसरे को आवाज़ लगाते रहते थे। कभी खेलने के लिए। कभी एक-दूसरे से कुछ चाहिए तो उसके लिए। एक ही स्कूल में पढते भी दोनों। पूरी गली में उनकी दोस्ती मशहूर थी। इसके अलावा दोनों के परिवारों में अच्छे संबंध भी थे।
उसकी एक आवाज़ सुनकर कालू जल्दी से बाहर आया।
शामली क्या हुआ?
ये देख।
कालू अपनी छोटी-छोटी आँखों को बड़ा करते हुए बोला–‘अरे ये तो दस का नोट है। किसने दिया, कहाँ से मिला। किसी का गिर गया था क्या?’
शामली इठलाती हुई बोली-’बाबा ने दिया। आज फलों की अच्छी बिक्री हुई। इसीलिए बाबा ने खुश होकर मुझे ये दस का नोट दिया।
और पता है बाबा मेरे लिए लाल रंग की फ्रॉक भी लेकर आये हैं। अब तू जल्दी से अपनी चप्पल पहन के आजा फिर हम शामू की दुकान से कोका कोला लेकर आते हैं।
-लेकिन इसमें तो एक ही बोतल आयेगी।
-ये देख मेरे पास दस रुपये की चिल्लर भी है। एक तू पीना और एक मैं।
-वाह मजा आ जायेगा। कितने दिन हो गये हैं कोका कोला पीये हुए। मेरे बाबा का तो काम ही छूट गया। उन्होंने मुझे कहा है जब काम मिल जायेगा वो भी मुझे पैसे देंगे। तब मैं भी तुझे दूँगा।
हाँ ठीक है। तब तू पिला देना। अभी तो चल । कहीं दुकान न बंद हो जाये।
तू रुक में अभी आया।
कालू फटाफट अपनी टूटी हुई चप्पल पहनकर बाहर आ गया।
-जल्दी चल न । कितनी देर लगा दी।
-अरे आ तो रहा हूँ।
कितनी देर लगाता है तू। दुकान बंद हो गयी तो।
सही कहा दुकान बंद हो सकती है। दुपहरी में वो बंद कर देता है। फिर भी चल कर देखते हैं। कई बार ज़्यादा भीड़ होती है तो देर तक भी खुली रहती है।
कालू के ऐसा बोलने पर शामली थोड़ी उदास और चिंतित हो गयी और बोली-
-कालू ऐसे मत बोल। इतनी मुश्किल से तो पैसे मिले हैं। और तू है कि ऐसे बोल रहा है।
फिर भगवान से विनती करने लगी- ‘हे माता रानी शामू की दुकान खुली ही हो।
इसी चिंता में कि कहीं दुकान बंद न हो जाये। जल्दी जल्दी कदम बढ़ा रहे थे। पर शामली से कहाँ सब्र हो रहा था वो कालू का हाथ छोड़ दौड़ने लगी ताकि जल्दी से जल्दी दुकान पर पहुँच जाये। कालू उसे पीछे से आवाज़ लगाता रहा ताकि साथ-साथ चल सकें।
दोनों शामू की दुकान की ओर दौड़ने लगे। शामली कालू से तेज दौडती थी। शामली उसे पीछे छोड़ काफी आगे निकल गयी थी । दोपहर का समय था। पूरी गली सुनसान पडी थी। जून की गर्मी, कौन ऐसे में खुद को जलाए। इसी कारण एक परिंदा भी पर नहीं मार रहा था। बस्ती में ज़्यादातर घरों में काम करने वाली औरतें और सब्जी के ठेले लगाने वाले थे। बहुत कम संख्या में फैक्ट्ररियों में काम करने वाले मज़दूर रहते थे। आज तो वैसे भी रविवार था। आजकल टीवी का बस्तियों में होना आम बात हो गयी है। कुछ घरों से टीवी का शोर भी सुनाई दे रहा था।
दोपहर के तीन बजे थे। शामली दुकान पर पहुँची। दुकानकार दुकान बंद करके जा चुका था। यह देख वह निराश हो गयी। हालांकि उसकी दुकान घर में ही खुली हुई थी। उसने सोचा आवाज़ लगाने पर शायद कोई बाहर आ जाये। परंतु ऐसा नहीं हुआ। क्योंकि घर का दरवाजा भी बंद किया हुआ था। रूंआसी सी होकर इधर-उधर देखने लगी। कालू भी अभी दूर ही था। दुकान के सामने जड़वत-सी खड़ी रही।
कालू ने पहुँचते ही कहा- ‘इतने जोर जोर से तुझे आवाज़ लगा कर यही तो कह रहा था कि शामू की दुकान बंद हो गयी। वो देख लीलू भी यहीं से गया है उसी ने बताया।’
उसकी बात सुनकर वह रोने ही लगी ।
उसे रोता देख कालू उसे चुप कराते हुए बोला– अच्छा तू रो मत यहीं दूसरी गली में एक और दुकान है, वहाँ चलते हैं। लेकिन तू साथ साथ ही चलना। कहीं आगे पीछे हो गयी तो रास्ता भूल जायेगी।
अच्छा ठीक है।
शामली खुशी से चहकते हुए बोली-चल जल्दी जल्दी चल।
हाँ हाँ चल।
गली थोड़ी तंग है। ध्यान से चलना।
तू मेरा हाथ पकड़ लेना।
अगला भाग