‘चीख’ (भाग 5) – पूनम (अनुस्पर्श): Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर दूसरी गली की ओर चल पड़े । दोनों की आयु दस से भी कम थी। दोनों ही अच्छे दोस्त थे। दोनों के बाबा एक साथ जो सब्जी का ठेला लगाते थे। 

दूसरी गली में भी दुकान बंद मिली तो  शामली फिर से निराश हो गयी।

कालू ने सोचा क्यों ने पीछे के रास्ते से देख आऊँ कई बार छोटा शटर खुला होता है।

वह पीछे देखने चला गया। साथ ही शामली को बोला तू यहीं रुक मैं अभी आया।

शामली ने कालू की बात सुनी ही नहीं थी। वह उदास मन से घर की तरफ चल पडी। आँखों में आंसू लिये कोका कोला के लिये ही सोचती जा रही थी। 

कालू ने देखा पीछे का शटर खुला हुआ था। वह खुशी के मारे चिल्लाया और शामली को आवाज़ लगाने लगा। जब उसे शामली की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी तो उसके आगे आकर देखा वहाँ उसे शामली कहीं नज़र नहीं आई। वह जिस गली से आया था, वहीं दौड़ कर जाने लगा। उसे लगा वो घर की ओर न निकल गयी हो। अब उसे ढूँढ़ते हुए वह भी काफी दूर तक निकल आया पर शामली उसे दिखाई न दी।

इधर शामली सुबकती जा रही थी। दिमाग में केवल कोका कोला ही चल रहा था जिसके कारण उसे पता ही नहीं चला कि वह गलत रास्ते पर पहुँच गयी। उसने देखा चारों तरफ बडे बडे मकान थे। कुछ बन रह थे, कुछ बने हुए थे। लोग ज़्यादा वहाँ नज़र नहीं आ रहे थे। 

शायद वह कोठियों वाली गली में आ गयी थी। यहाँ ज़्यादातर मकान खाली हैं। अभी यहाँ लोगों की इतनी बसावत नहीं थी। जहाँ वह खड़ी थी वहीं एक मकान में मज़दूर काम कर रहे थे। अनजान जगह देखकर वो जोर जोर से रोने लगी। उसका शोर सुनकर एक मज़दूर बाहर आया। रोने का कारण पूछा। शामली कुछ भी बता पाने में असमर्थ थी। मज़दूर उसे रोता देख अपने साथ अंदर ले आया। ताकि उसे पानी पिला कर शांत करा सके और फिर उससे पूछा कि वहाँ रहती है। निर्माणाधीन मकान में दो-तीन मज़दूर और भी थे। जो शामली को अजीब तरीके से देख रहे थे। उनकी आँखें बूढे मज़दूर ने पढ़ ली थी। चेतावनी के साथ बोला। छोटी बच्ची है। 

अरे तो बुढूउ हमने तो कुछ कहा ही नहीं।

उम्र का तकाजा है। इस दुनियां को देखते हुए 60 साल हो गये। तुम जैसे लोगों को मैं अच्छे से समझता हूँ।

ख्वामाखाह कुछ भी बके जा रहे हो।

ए बढुए तू अपना काम कर। थोड़ी देर में सेठ आने वाले हैं। जल्दी सीमेंट तैयार कर। ये वाली दीवार आज ही करनी है।

हाँ हाँ पता है। खुद को कुछ करता नहीं। सेठ का चमचा है। बस हुक्म देता रहता है ……. बूढ़ा बुड़बुड़ाता हुआ वहाँ से चला गया।

ऐ लड़की बता कहाँ रहती है।

पता नहीं। रास्ता भूल गयी। कालू के साथ आई थी लड़की बोलते बोलते जोर जोर से रोने लगी।

अच्छा ये गला फाड़-फाड़ कर मत रो। चल वहाँ कोने में जाकर बैठ जा। बहुत काम पडा है। शाम को देखते हैं क्या करना है तेरा।

ऊपर किसी के आने की आहट हुई।

अरे सेठ आओ, आओ।

क्या बे चंदन । अभी तो दीवार का काम पूरा नहीं हुआ। क्या करते रहते हो तुम सारा दिन। नशा करके पडे़ रहते हो क्या?

सेठ अभी एक घंटे में ये दीवार बन जायेगी। सामान देर से आया। सो इस कारण से माल नहीं बना।

पीले-पीले दांत दिखाता हुआ वो मज़दूर जोर जोर से हंसते हुए अपनी सफाई देने लगा। 

सेठ थोड़ा आगे बढ़ा। 

ये बच्ची तेरी है।

अरे इस बिचारी को यहाँ किसलिए लाया है। धूल मिट्टी में। 

नहीं सेठ मेरी नहीं है। पता नहीं कहाँ से घूम फिरकर आ गयी। कहती है रास्ता भूल गयी।

अरे अरे बेटा यहाँ आओ।

रोओ मत । बताओ कहाँ रहती हो। चलो मैं छोड़ देता हूँ।

याद नहीं अंकल।

शामली जोर जोर से रोने लगी।

तब वह मज़दूर उसके पास आया। उसे चुप कराते हुए बोला, सेठ मैं जानता हूँ ये कहाँ रहती है। काम ख़त्म करके इसके घर छोड़ दूँगा।

अच्छा ठीक है। पहले अच्छे से काम ख़त्म करना। 

इधर, कालू भागता हुआ शामली के घर पहुँचा और जोर-जोर से आवाज़ लगाने लगा-

शामली ओ शामली बाहर आ। जल्दी आ वो कोने वाली दुकान खुली है। चल जल्दी।

महेश और रानी कालू की आवाज़ सुनकर जल्दी से बाहर आये।

अरे क्या हुआ। क्यों गला फाड़ रहा है। 

काकी शामली को बोलो बाहर आये वो कोने वाली दुकान खुली है। वहाँ से उसे कोका कोला मिल जायेगा।

रानी ने कालू से कहा-

अरे वो अंदर नहीं है। वह तो तेरे साथ गयी थी न? शामली को उसके साथ न देखकर, हैरानी से पूछा कि शामली कहाँ है? तेरे साथ ही तो गयी थी।

रानी की बात सुनकर कालू जोर-जोर से रोने लगा।

कालू को रोता देखकर रानी और महेश घबरा गये। तब महेश बोला–

अरे कालू बेटा क्या हुआ। शामली कहाँ है?

कालू रोते रोते बोला–

काका मैंने शामली को कहा था कोने वाली दुकान देखकर आता हूँ तू यहीं आगे की तरफ रुक। जब मैं देख कर आया तो वो वहाँ नहीं थी। मुझे लगा कि वो घर आ गयी है।

नहीं बेटा वो तो घर नहीं आई।

तो फिर कहाँ गयी। मैं सारे रास्ते देखता आया हूँ मुझे नहीं दिखाई दी।

इतना सुनते ही, रानी और महेश उसे लेकर दुकान की तरफ भागे सारे रास्ते देखते आये। शायद शामली कहीं दिख जाये। शाम हो चली। अजीब अजीब शंकाएं मन में पैदा हो रही थीं। 

रह रह कर भगवान से प्रार्थना करने लगी- हे भोल नाथ मेरी बच्ची की रक्षा करना। उसे कुछ न हो। सही सलामत हो। मेहर रखना हे माता रानी। सारे भगवानों को याद कर रही थी। इस समय तो उसे केवल यही लग रहा था कि भगवान ही उसकी रक्षा कर सकते हैं। रानी इस शंका से कि कहीं कोई उसे उठा तो नहीं ले गया। फिर यकायक जो सब्र का बांध अभी तक बांधे हुई थी। काफी समय की  मशकत के बाद भी जब शामली नहीं मिली तो वो बांध टूट गया और रानी किसी अनहोनी की आशंका को सोच कर जोर-जोर से रोने लगी।

जी तो महेश का भी घबरा रहा था। पर उसने रानी को चुप कराया-

रानी तू चिंता मत कर वो मिल जायेगी। तू अगर रोयेगी तो मैं भी टूट जाऊँगा। तुझे देखकर तो मुझे हिम्मत आती है। रो मत चुप हो जा। ये समय रोने का नहीं है। जल्दी जल्दी उसे ढूँढते हैं। इतनी छोटी सी बच्ची है। कहीं रास्ता भूल गयी होगी तो कैसे घर पहुँचेगी। शाम होने का आ रही है। रात होने से पहले ही उससे ढूंढना होगा। नहीं तो मुश्किल हो जायेगा। इतना सुनते ही रानी को थोड़ा हौंसला हुआ और वो थोड़ी हिम्मत जुटा कर बोली-

सही कहा, शामली के पापा। 

दोनों बेसुध से भागते जा रहे थे। जोर जोर से शामली को आवाज़ लगा रहे थे ताकि आवाज़ सुनकर शामली मिल जाये।

करीब एक घंटा हो चला उसे तलाशते हुए। जिस दुकान पर दोनों बच्चे गये थे। वहाँ भी पूछा था परंतु वहाँ से भी तो कुछ पता नहीं चला। तभी महेश के दिमाग में एक ख्याल आया। उसने कालू से पूछा-

कालू तू और शामली से इस दुकान से कहाँ गये थे। 

काका हम घर की ओर जा रहे थे। शामली भागती जा रही थी। फिर मुझे काफी दूर दिखने लगी। मेरी चप्पल टूट गयी थी। तो मैं भाग नहीं पा रहा था। फिर जब मैंने देखा तो काफी दूर हो गयी है तो मैं चप्पल उठाकर भागने लगा इतने में वो पता नहीं कौन सी गली में खो गयी। मैंने यहाँ से एक -एक गली में ढूँढ़ा पर वो कहीं नहीं दिखी। इसलिए घबरा कर मैं आपको बताने आ गया।

अच्छा, ये बता। जब तू यहाँ खड़ा था तो यहाँ से कितनी दूर दिखी।

काका आप मेरे पीछे चलो मैं बताता हूँ।

करीब दस गलियाँ छोड़ कर कालू ने महेश को वह जगह दिखायी जहाँ से शामली खो गयी थी।

अब हम उसे यहाँ से हर गली में ढूँढेंगे। रानी चुप हो जा। शामली मिल जायेगी। 

इधर अंधेरा होते-होते सारे मज़दूर चले गये।

चंदन के दिमाग में शामली को देखकर बहुत ही गलत-गलत विचार आ रहे थे। शामली के पास जाकर उसके गालों पर हाथ फेरा और पूछने लगा-अरे क्या खिलाते हैं तेरे माँ-बाप, जो इतने चिकने-चिकने गाल है, हाथ ही फिसरे जात हैं।

इतनी छोटी बच्ची उसके दिमाग की गंदगी से अंजान थी। उसे इतनी समझ ही नहीं थी। वो क्या कहना चाहता हैं।

काका, मेरी माँ रोज मुझे दूध और मक्खन देती है। ताकि मैं जल्दी बड़ी हो जाऊँ।

हें…..हें…..हें…..जल्दी बड़ा तो होना ही पडे़गा। 

चल अब जल्दी से खड़ी हो जा तुझे तेरे घर छोड़ देता हूँ।

शामली ये सुनकर खुश हो गयी कि वो अंकल उसे उसके घर छोड़ देंगे। परंतु वह उसकी नीयत से अन्जान थी। उसे जल्दी से उस मज़दूर का हाथ पकड़ लिया और वे सीढि़याँ उतरने लगे।

उस मज़दूर की झोंपड़ी इस घर के पीछे ही थी। आस-पास ज़्यादा झोंपडियां तो थी नहीं। जो थीं वो भी दूर-दूर ही थीं।

शामली को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते महेश और रानी उस मकान तक तो आ पहुँचे जहाँ पर काम चल रहा था।

तभी कालू को शामली की चप्पल दिखाई दी। उसने चिल्लाते हुए कहा-काका…. काका ….जल्दी आओ। देखो शामली की चप्पल।

रानी ने थोड़ी राहत की सांस ली।

चलो-चलो जल्दी से ऊपर चलकर देखें कहीं वो डर के मारे यहीं छुपकर न बैठी हो।

सबने मिलकर पूरा मकान देख लिया परंतु शामली कहीं नहीं दिखी। किंतु वहाँ पर शामली की माला जिसे वह हमेशा पहने रहती थी। वो पडी मिली।

तब महेश को कुछ अनहोनी की शंका होने लगी। वह तेजी से नीचे उतरा। बदहवास से भागता हुआ इधर उधर ढूँढ़ने लगा। मकान के पीछे तरफ गया तो देखा एक झोंपड़ी दिखाई दी। उसने बाहर से ही आवाज़ लगाई। 

कोई अंदर है क्या,?

अंदर से आवाज़ आयी कौन है?

आप बाहर आइये। हमें कुछ पूछना है।

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