‘चीख’ (भाग 6) – पूनम (अनुस्पर्श): Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : गुस्से से वह मज़दूर बाहर आया और कहने लगा- बताओ क्या पूछना है? अभी अभी काम से थका हुआ आया हूँ।  चैन से पानी भी नहीं पीने दिया। अगर तुम मांगने वाले हो तो मेरे पास कुछ नही है देने के लिए।  वैसे हैं कौन हो तुम लोग?

मज़दूर की बातें सुनकर महेश बोला–

भाई आप कहाँ काम करते हैं?

महेश के ऐसा पूछने वो मज़दूर फिर गुस्से में बोला–क्यूं बताऊँ कहाँ काम करता हूँ। तू है कौन ये पूछने वाला। और क्या काम है तूझे मुझसे।

भाई, हम बडे परेशान है। मेरी एक बेटी है। जो मिल नहीं रही है। पीछे जो मकान बन रहा है वहाँ उसका कुछ समान पडा मिला। मुझे लगा कि कहीं आपने तो उसे अपने पास न बिठा रखा हो ताकि उसे कोई ढूंढता हुअ आये और आप उन्हें सौंप सको। 

यह सुनकर उस मज़दूर के चेहरे के भाव बदल गये। वह बडा ही शातिर था। बात को बदलते हुए बोला–कैसी दिखती थी।

छह- सात साल की है। थोड़ी सांवली है। पर बहुत प्यारी है। क्या आपने कहीं उसे देखा है?

रे नहीं भई, मुझे नहीं पता । यहाँ कोई बच्ची-वच्ची नहीं आई। भागों यहाँ तुम लोग। 

भाई एक बार अपनी पत्नी से भी पूछ लो क्या पता उन्होंने देखा हो। 

अरे भई कोई पत्नी-वत्नी नहीं है। मैं अकेला ही रहा हूँ। तुम लोग जाओ यहाँ से। इतना अच्छा मूड था। खराब कर दिया, आ जाते हैं पता नहीं कहाँ कहाँ से, बुड़बुड़ाता हुआ वह झोंपड़ी के अंदर चला गया।

महेश और रानी हताश से वहाँ से जाने लगे तो अंदर से कुछ गिरने की आवाज़-सी आई।

महेश को उस पर थोड़ा शक हुआ–

आप तो अकेले रहते हैं फिर ये आवाज़ कैसी?

तुम लोग यहाँ से जाओगे या नहीं? अभी पुलिस को फोन करता हूँ कि तुम मेरी झोंपड़ी में चोरी कर रहे थे।

उसकी बात सुनकर दोनों डर गये। और वहाँ से चलने लगे । उन्होंने देखा कि झोंपड़ी से थोड़ी दूर एक बूढ़ा आदमी बैठा हुआ था। जिसके एक हाथ में चिलम थी और वह दूसरे हाथ से कुछ इशारा कर रहा था। उन्हें लगा कि शायद वह किसी को बुला रहा है। परंतु जब उन्होंने इधर-उधर देखा तो वहाँ कोई भी नहीं था। तब वह उसके पास गये शायद उसके मदद चाहिए हो-

बताओ बाबा कुछ मदद चाहिए क्या?

वह बार-बार उसी झोंपड़ी की ओर इशारा कर रहा था।

कांपती सी आवाज़ में वह कह रहा उंई है़….. उंई हैं…..बार-बार वह यही बोले जा रहा था।  सही से समझ तो नहीं आ रहा था, परंतु हर बार बोलते हुए  झोंपड़ी की ओर इशारा ज़रूर कर रहा था।

महेश को उस मज़दूर पर शक हुआ मैं तुरंत उस झोंपड़ी ओैर दौडा। कई आवाज़ लगाने पर भी कोई बाहर नहीं आया तो वह अंदर चला गया। वहाँ देखा कोई नहीं था। चुल्हे को पानी को बुझा दिया गया है देखकर लग रहा था कि अभी अभी कुछ समय पहले ही झोंपड़ी से चला गया है। मन में संदेह बढता जा रहा था। अंदाजा लगाने लगा कि कितनी दूर गया होगा। कुछ कुछ दूरी पर और भी झोंपड़ी थीं। परंतु इस झोंपड़ी से वह कब गया। पता ही नहीं चला। लगता है बूढ़ा बार बार जो इशारा कर रहा था। वह यही बात थी। महेश दौड़ कर वापिस उस बूढे के पास गया। उससे पूछने लगा-

बाबा क्या आप उस मज़दूर के भागने की बात कर रहे थे क्या। उसके साथ छोटी बच्ची भी थी क्या?

उस बूढे ने गर्दन हिलाकर हाँ कहा। 

महेश के पैरो तले जमीन खिसक गयी। वो सिर पकड़ कर बैठ गया। 

महेश को ऐसा देखकर रानी ने थोड़ा साहब जुटाया और बोली- शामली के पास ऐसे सिर पकड़ कर बैठने से कुछ नहीं होगा। जल्दी यहाँ से चलो क्या पता वो ज़्यादा दूर नहीं गया होगा।

तीनों वहाँ से बदहवास से भागने लगे। तभी दूर से एक चीख कानों को चीरती हुई निकल गयी। जो किसी छोटी बच्ची की और जानी पहचानी सी लग रही थी। आवाज़ मानों दूर किसी झोंपड़ी से आ रही थी। वो तीनों भागते हुए उस झोंपड़ी के पास पहुँचे उनका अंदाजा सही साबित हुआ। अंदर के किसी बच्चे के सिसकने की आवाज़ आ रही थी। साथ में उसी मज़दूर की आवाज़ थी। वह कह रहा था। मेरा कहना अगर नहीं मानेगी तो इसी चूल्हे में तुझे जला दूँगा।

महेश ने आव देख न ताव झट से झोंपड़ी के अंदर गया । जो उसके देखा उसके होश उड गये। उसकी गुडिया शामली जमीन पर अर्धनग्न अवस्था में पडी थी। वो मज़दूर उसे मार रहा था। यहाँ तक कि हाथ में जली हुई लकडी थी। उसे उसने शामली के हाथ पर लगाया होगा जिसके कारण वो चीखी होगी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था क्योंकि शामली का हाथ जला हुआ था जिसे पकड़ का वो रोये जा रही थी।

शामली की ऐसी हालत देख कर हम तीनों उसके ऊपर भूखे भेडियों की टूट पडे़। मार मार कर उसे अधमरा कर दिया। 

आस-पास की झोंपडियों से निकल कर लोग जमा हो गये, ये देखने के लिए कि यहाँ पर क्या हो रहा है। उन्हीं लोगों से किसी ने पुलिस को इत्तला कर दिया जल्द ही मौके पर पुलिस भी  आ पहुँची थी। उसे गिरफ़्तार  कर अपने साथ ले गयी। शामली को रानी ने अभी तक अपने सीने से चिपका रखा था  और फूट फूटकर रोये जा रही थी। कुछ देर शांत होने के बाद पुलिस वाली महिला ने उसे शामली के साथ थाने आने को कहा।  वह पुलिस वाली उन्हें गाडी से नज़दीक के थाने ले गयी। वह व्यक्ति भी वहीं था। जिसे देखकर शामली फिर से सहम सी गयी। वह व्यक्ति उसे घूरे जा रहा था। पुलिस वाले की नज़र पडी तो वहीं आव देखा न ताव दो-चार घूंसे उसके मुँह पर जड दिये और वहीं जेल में डाल दिया। फिर एक पुलिस कर्मचारी को आदेश देकर बोला कि इस बच्ची को मेडिकल करा कर लाओ जल्दी से।

शामली को हास्पीटल ले जाते हुए रानी और महेश के मन और मतिष्क में तूफान चल रहा था। भगवान से यही दुआ कर थे कि उसके साथ कुछ गलत न हुआ हो। चाहे तो ईश्वर हमें इस दुनियां से उठा ले पर उसके साथ कुछ भी गलत न हो।

खैर इसे ईश्वर की कृपा ही माने कि रिपोर्ट में कुछ भी गलत होने की पुष्टि नहीं थी। दोनों हाथों से गोद में उठाकर रानी शामली को ऐसे चूमे जा रही थी मानों भूखे भेडिये के आगे से बच कर आई हो।

पुलिस वाली की आँखे नम हो आई। कहने लगी- आपकी बेटी पर ईश्वर की कृपा रही जो उस भूखे भेडिये के आगे से बच गयी। वरना अगर आज यह अपने मकसद में कामयाब हो जाता तो दसवां केस होता इसके उपर। 

यह सुनकर दोनों के पैरों तले जमीन खिसक गयी।

महेश उस पुलिस कर्मचारी के सामने हाथ जोड़कर खडे़ हो गया और कहने लगा-मैडम अगर आप लोग समय पर नहीं आते तो न जाने मेरी बच्ची के साथ आज क्या हो जाता।  रानी तो उसके पैरों को ही लगने लगी तो उसने रोक दिया। कहने लगी-

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