आबादी से दूर एक कुटिया नजर आ रही थी!
संध्या बेला,
सुमन अपनी नन्ही बिटिया,श्रमिका की ऊंगली थामे कुटिया की ओर बडे बडे डग भरती, अंधेरा होने से पहले पहुंचने की चेष्टा कर रही थी!
गुरु जी ने सूरज ढलने से पहले उसे बुलाया था!
यदि देर हो गई तो श्राप भी दे सकते है,
उसके मन को ये भय सता रहा था!
पडोस की नीलम चाची की बहू ने गुरु जी के बारे में बताया था!
गुरु जी भगवान जी के खास डाकिये है “
जैसे नंदी जी शिव जी के “
उस पगली को ये न समझ आया, की वो भी तो भगवान की संतान है!
जो भगवान जी करेंगे, अच्छे के लिए ही होगा “
वो भी क्या करे,
जबसे श्यामू के साथ ब्याह कर आयी “
एक दिन भी सुख से ने बीता,
माँ बचपन से ही गुजर गयी थी!
बापू माँ के बिरह में पगला गए थे!
माँ बाप की अकेली औलाद ” चाचा चाची ने अपना स्वार्थ देखते हुए श्यामू से ब्याह दिया था!
कच्ची उम्र,
श्रमिका गर्भ में आ गयी थी!
श्यामू उसे प्यार तो करता था! पर पीने की लत ने उसे, जानवर बना दिया!
सुमन की टोका टाकी उसे पंसद नहीं आती “
तो वो उसे मारपीट कर चुप करा देता “
एक महिने से सुमन की गृहस्थी पूरी तरह से बर्बादी के कगार पर थी!
इसी के चलते सुमन, गुरु जी से मिलना चाहती थी!
करीब एक हप्ते पहले ही गुरु जी ने नीलम चाची के हाथ एक पुडिया भिजवाई थी!
उसमें सफेद भभूत थी!
उसने पूछा था नीलम चाची से “
नीलम चाची “””” अरे सुमन भरोसा रख बहुत पहुंचे हुए महात्मा है गुरु कृपा जी जिसपर कृपा कर दे उसके तो वारे न्यारे तो पक्का “
सुमन ” अच्छा,
उत्सुकता से बोली थी सुमन””
पुडिया की भभूति ने चमत्कार तो किया था “
जबसे पहली खुराक ली थी, ठर्रे को छुआ भी नहीं था!
घर में बडी शान्ति थी!
पर दो दिन से श्यामू को चक्कर आने लगे थें!
सुमन डर गयी थी!
नीलम चाची से डरते डरते पूछा था!
नीलम, ,,,,, देख सुमन डर मत आज ही बहू से नम्बर लेकर बात करती हूँ, गुरु जी से!
नीलम चाची का फोन किसी चेले ने उठाया था “
और गुरु जी के ध्यान में होने की बात बताई थी!
सुमन का नाम, उम्र फोटो सेडं करने का बोला था!
सुमन, दरवाजा खोल,
जानी पहचानी आवाज सुनकर सुमन ने दरवाजा खोला,
सामने नीलम चाची खडी थी!
नीलम चाची के चेहरे पर मुस्कान थी!
ये ले फोन गुरु जी तुझसे बात करना चाहते थे!
प्रणाम गुरु जी ” सुमन नतमस्तक होती हुई बोली “
जय हो देवी, सामने से आवाज गूंजी”
सुमन को कुछ अजीब लगा!
देवी कुटियां पर बुलवा है, तुम्हारे पति पर संकट है”
सुनकर सहम गयी, सुमन ” उसकी जुबान चिपक गयी!
गुरु जी संकट का निवारण कीजिए, ये आवाज नीलम चाची की थी!
जरूर माते, इन देवी को शाम गोधूलि बेला से पहले कुटिया पर पहुंचना होगा, लाल वस्त्र में, बिलकुल शुद्ध होकर “
चाची जी कल के लिए बोलो ” सुमन सहमते हुए बोली “
नही आज ही संध्या बेला, विपदा बडी है!
खर्च क्या आऐगा, गुरू जी, सुमन ने डरते डरते पूछा “
कुछ नही देवी, बस तुम्हे अकेले आना होगा!
ठीक है गुरु जी, मै पहुँच जाऊंगी!
सांझ होने से पहले सुमन कुटिया में पहुँच चुकी थी!
समय से पहुंचने पर तसल्ली हुई,
सुमन ने लम्बी सांस भरी, और इंतजार करने लगी,
अब अंधेरा गहराने लगा था!
उसे पति की चिंता थी “
उसे वहाँ अभी तक कोई नजर न आया!
देवी अंदर चलो “
क्षमाप्रार्थी है, पूजा की तैयारी में कुछ विलम्ब हो गया!
सुमन ने हाथ जोड़कर कृतज्ञता जाहिर की”
चलो बिटिया, श्रमिका को उठाते हुए सुमन बोली “
देवी इस बलिका को अंदर नही ले जा सकते”
उस सन्यासी के चेहरे पर कुछ रोष नजर आ रहा था!
पर ये बहुत छोटी है, सुमन ने करबद्ध निवेदन किया “
देवी बात समझो, बुरी शक्तियाँ, इस पर प्रहार कर सकती है!
सुमन के चेहरे पर बेटी के लिए डर साफ झलक रहा था!
मै इसके साथ यही बैठता हूं!
आप अंदर जाओ”
सुमन ने कुटिया में कदम रखा “
उसे अंदर एक सेविका नजर आयी “
जो उसे सीढियों के रास्ते ऊपर ले गयी!
सुमन ने कुछ पूछने के लिए मुहं खोला ही था, की सेविका ने इशारे से उसे चुप कर दिया!
हवन कुंड की अग्नि बडी वीभत्स नजर आ रही थी!
जैसे सबकुछ निगल जाना चाहती हो!
सामने ही गुरूजी ” आंखे बंद कर तपस्या में लीन नजर आ रहे थे!
उनका चौड़ा ललाट , जिसपर बडा तिलक लगा था “
सुमन ने हाथ जोड़ कर चरण वंदन किया!
कुछ क्षण बाद गुरु जी ने आंखे खोली “
देवी घोर संकट है,
माता रक्षा करेंगी “
हवन प्रारंभ हो चुकी थी, उसमें डलने वाली समाग्री सुमन को उन्माद की ओर ले जा रही थी “
गुरु जी ने सुमन को सफेद भभूत सुघं कर पीठ पीछे फेकने केलिए बोला “
ऐसा करते ही सुमन पर मदहोशी छाने लगी’
उसकी आंखे नीदं से भारी होने लगी!
देवी, पर बुरी शक्ति का वास है,
इन्हें शयन कक्ष में ले जाओ अभी तुरंत, गूरू जी के निर्देश पर चार साधिकाओं ने सुमन को अर्द्धमूर्क्षित अवास्था में शयन कक्ष में पहुंचा दिया!
श्रमिका को मां का इंतजार करते हुए बहुत देर हो चुकी थी!
वहाँ कोई नजर नही आ रहा था!
वो कुटिया के दरवाजे की ओर बढ गयी!
उसपर किसी ने ध्यान न दिया,
वो कुछ कदम आगे बढी होगी की उसे माँ की आवाज सुनाई दी
श्रमिका ने परदा हटाया तो उसे सुमन नजर आ गयी!
वो पंलग पर औंधी पडी थी!
माँ की गोरी पीठ साफ नजर आ रही थी!
मुझे जाना है श्रमिका मेरी बच्ची बाहर अकेली है!
माँ की आवाज में बेबसी साफ नजर आ रही थी! श्रमिका ने मां की ओर कदम बढाया ही था,
की किसी ने उसे पीछे से खीच लिया “
तू अंदर कैसे आयी, बाहर चल “
वो वही था जो कुटिया के बाहर उसे मिला था!
श्रमिका को याद आया जब बापू ठर्रा पीकर आते थे तो ऐसे ही जानवर बन जाते थे! और माँ को मारते थे!
श्रमिका बाहर आ गयी!
बाहर अंधेरा था, उसे भूख लग रही थी!
अंदर वो जा नही सकती थी!
वो कुटिया से बाहर आ गई,
बाहर सडक सुनसान थी!
वो वही बैच पर बैठ गई”
अलबेली देख जल्दी चल, अभी तो खाना भी नसीब नही हुआ , पता नही जगीरा ने कुछ बनाया भी होगा की नही,
ला मै ” फोन लगाती है!
न जाने किस निगोड़े का मुहं सुबह से देख, न कुछ कमाई नसीब हुई न रोटी “
अलबेली “””””ऊफ,
हीरा,,अब क्या हुआ, मुई “
शायद मोच है हीरा जीज्जी,
हीरा, कितनी बार बोला ऊंची हील न पहेना कर,
चल वो सामने बैंच है वही बैठते है,
अलबेली, जीज्जी एक कदम न चला रहा “
चल सहारा देती हुई हीरा बोली “
इतनी रात में एक छोटी बच्ची को अकेले बैचं पर देखकर, हीरा ने अनुमान लगा लिया की कुछ गडबड है!
वैसे भी इस सुनसान कुटिया मे भक्तों के आलावा कोई नही आता!
हीरा “””अब कैसा लग रहा है,
ठीक लग रहा जीज्जी”
बेटा आप अकेले बैठे हो, कोई साथ नही है!
श्रमिका से पूछा हीरा ने “
माँ है अंदर “
आप बाहर क्यूँ आ गये!
भगा दिया , उस अंकल ने “
बच्चा आप माँ से मिले,
हा, वो रो रही थी!
अलबेली कुछ तो गडबड है,
हा जीज्जी”
मै ” अंदर जाती हैं “
जाकर देखती, तु बच्ची का ख्याल रखना “
कुछ बिस्कुट है थैली में, खिला दे भूखी लग रही है “
मै आती है!
बहुत प्यारी बच्ची है, ख्याल रखना इसका ”
श्रमिका के सिर पर हाथ रखते हुए बोली हीरा “
हीरा ने कुटिया में कदम रखा, सब उसकी ओर आंखे फाडे देखे जा रहे थे पर उसे किसी ने रोका नही, उसे आश्चर्य हुआ “
वातावरण में अजीब सी महक फैली थी!
उसे अंदर से किसी स्त्री की गिडगिडाने की आवाज सुनाई दी “
वो आवाज की दिशा मे बढ गई!
परदा उठाते ही, उसे एक अर्द्धनग्न पुरुष नजर, आया “
जो एक स्त्री को बाहो मे जकडे था “
हीरा ने कुछ कदम और आगे बढाया “
उसकी आंखे फटी रह गयी!
उस स्त्री के तन पर एक भी वस्त्र नही था!
मुझे जाने दो ” छोड दो, मेरा पति मेरी बच्ची “
उसको शायद कोई नशा दिया गया था, उसका शरीर उसके वश में नही था!
हीरा ने आगे बढकर, उस स्त्री का हाथ पकडकर अपनी ओर खींच लिया “
कुछ ही क्षण में कुटिया से बाहर आ गयी!
पीछे से शोर सुनाई दिया, वो पुरुष किसी पर चीख रहा था!
जाओ उसे पकडो़ “
बाहर निकलते हुए, हीरा ने दरवाजे पर लगे परदे को खीच लिया
अबतक वो सडक पर आ गये थे!
सडक पर टैक्सी वाले से अलबेली,
मोल भाव कर रही थी!
चल निगोडी जल्दी कर यहाँ ज्यादा देर रूकना ,खतरे से खाली नही है!
टैक्सी चालक, सुमन को घूर कर देख रहा था “
जो साड़ी के बजाय, परदे में लिपटी थी!
ऐ, तू टैक्सी बढा ” उधर क्या घूर रहा है “
वो हडबडा गया “
और टैक्सी तेज गति से आगे बढ गयी!
तेरा घर कहाँ है “
टकी चौराहे पर, माँ ने सिखाया है, जब कभी रास्ता भूल जाऊँ तो इसी पते पर घर वापस आ जाऊँ “श्रमिका बोली”
तू तो बडी चतुर है,
उसके पेट में ऊंगली से गुदगुदी करती हीरा बोली “
श्रमिका हंसने लगी “
सुमन ने आंखे खोलने की कोशिश की पर खोल न पायी!
बच्चे कितने भोले होते हैं, न अलबेली “
हा जीज्जी,
फिर ये बडे होकर जानवर क्यूँ बन जाते हैं!
मै बताऊँ हीरा जीज्जी, चालक बोला “
तू चुपचाप टैक्सी चला!
घर के बाहर टैक्सी रूकते ही,
वो चारों उतर गये,
घर बाहर भारी भीड़ थी!
तू यही रूक मै, देखती है, कुछ अंशाकित हो उठी हीरा “
वो भीड को हटाती हुई आगे बढ गयी!
सामने नजर पडते ही आवाक रह गयी!
श्रमिका का बापू, रस्सी पर झूल रहा था!
अब वो सुमन और श्रमिका को क्या बोलेगी “
भीड में चर्चा चल रही थी!
श्यामू की बेटी, और बीबी कहाँ गये!
शाम को तो यही थी!
चली गयी होगी छोडकर, दिनभर नशा करके मारता पीटता है!
बीमारी से, तंग आकर फांसी लगा ली बेचारे ने जीतने मुहं उतनी बातें!
पुलिस आयी और श्यामू के शरीर का पंचनामा के लिए ले गयी!
देर रात हीरा सुमन को लेकर अंदर आयी!
उसे पता था समाज उसे जीने नही देगा “
सुमन को कपड़े पहनाकर खाट पर सुला दिया!
अगली, सुबह सुमन का नशा उतर चुका था, पर उसे सारी घटना याद थी, वो जार जार रोये जा रही थी!
ये सुमन दरवाजा खोल, बेशर्म कही की, नीलम चाची चीख रही थी “
दरवाजा खुलते ही, बाहर भीड देखकर सहम गयी सुमन,
कहाँ चली गई थी, मुहं काला करने ” तेरे सदमे में तेरे पति ने फांसी लगा ली “
सुमन आवाक “
नीलम चाची आपने तो मुझे “”
ये सुमन चुप मेरा नाम तो लेना मत,
वो भीड की ओर मुहं करके खडी हो गयी!
भाई बहनों रातभर सुमन जाने कहाँ गायब रही, आप सब तो समझ दार है, हम ऐसी औरत को मोहल्ले में नही रहने देगें”
भीड ने नीलम चाची का समर्थन किया “
मै कहाँ जाऊंगी “सुमन गिडगिडाई”
हीरा को नीलम चाची की हकीकत पता थी “
रात होश आने के बाद सारी बात सुमन ने बता दी थी!
अखिर हीरा समाज के सामने आकर खडी हो गयी!
वो नीलम चाची पर दहडी “
तुम लोगो की औकात भी नहीं है सुमन बहन को रखने की “
आज ही सुमन बहन मेरे साथ, ग्वाले टोली जाऐगी “
आज तुम जैसी महिलाऐ ही समाज को गर्त में ले जा रही हैं,
तुम्हारा भला समाज, भली सुसाईटी तुम्हे मुबारक “
हीरा को रोकने की हिम्मत किसी में न थी!
सभी को पता था की हीरा किन्नर के वेश में मसीहा है “
तभी तो कुबेर सखा है!
समाप्त, लेखिका ” रीमा महेंद्र ठाकुर ” कृष्णाचंद्र “