जिंदगी इतनी भी बुरी नहीं! – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

सोहम और प्रिया की लव मैरिज हुई थी,शुरू में सोहम के घरवाले इसके खिलाफ थे पर जब सोहम ने उनसे सीधे सीधे जंग छेड़ दी तो मजबूरी में उन्हें प्रिया को अपनाना पड़ा।

दरअसल प्रिया कॉल सेंटर में जॉब करने वाली एक मॉडर्न,खूबसूरत लड़की थी,वो अलग बात है कि वो संस्कारी भी थी पर जॉब की मजबूरी के चलते उसे देर रात भी कई लोगों से फ़ोन पर बात करनी पड़ती थी।

शुरू शुरू में कुछ समय सब ठीक चला पर अब सोहम को भी गुस्सा आने लगा था जब वो हँसते मुस्कराते फ़ोन पर औरों से बात करती उसके सीने पर साँप लोट जाते।रहीसही कसर उसकी माँ और भाभी उसके कान भर के कर देतीं।

उनके झगड़े आपस मे इस कदर बढ़े कि बात तलाक तक जा पहुंची,असल मे ऐसे में घर के बड़ों का बहुत रोल होता है,दुर्भाग्य से दोनों की तरफ से किसी ने भी समझदारी न दिखाई और उन दोनों की लड़ाई की आग में खूब घी डालते रहे फिर जुदाई तो होनी ही थी।

जब से प्रिया घर आई,उसके  भाई भाभी कुछ ही दिनों में उससे रूखा व्यवहार करने लगे।प्रिया की समझ नहीं आता क्या करे?सोच में पड़ जाती वो क्या उसने यहां आकर गलत तो नही किया लेकिन अब जाए भी कहाँ?इस दुनिया में तलाकशुदा अकेली महिला की क्या स्थिति है वो अच्छे से जानती थी।

बूढ़े माँ बाप भी मजबूर थे।एक दिन हद तब हुई जब उसने अपनी भाभी को भाई से कहते सुना:”अरे क्या अब ये सारी जिंदगी हमारे सीने पे मूंग दलेंगीं, हमारी बेटी भी बड़ी हो रही है,उसपर कितना बुरा असर होगा।”

प्रिया को बहुत बुरा लगा लेकिन क्या कहती,वो खोई खोई रहने लगी।

घर में बुधिया कामवाली आती थी,आज भी देर से आई।प्रिया ने पूछा:”क्या बात है,रोज देर क्यों हो जाती है?”

रुआंसी होकर वो कहने लगी:”बीबीजी,क्या बताऊँ,मेरा मरद रोज शराब पी कर बुरी बुरी गालियां देता है और विरोध करने पर पीटता है।इसी लड़ाई झगड़े में रात को सो नही पाती।”

प्रिया को लगा उसकी और बुधिया की हालत ज्यादा अलग तो नहीं,वो पढ़ी लिखी है,कुछ रईस है तो शायद वहां की “कुत्ती, कमीनी” जैसी गालियां “ब्लडी बिच “में बदल गईं होंगी।

बाकी कौन है जो उसकी खोज खबर लेता है अब? जिस पति पर विश्वास किया था,उसने दगा दे दी और मां बाप खुद आश्रित हैं उसके भाई पर।

दिन व दिन हालात खराब होते जा रहे थे,प्रिया का कितनी बार मन हुआ कि वो अपनी इहलीला खत्म ही कर ले,कौन सा ऐसा रिश्ता बचा था जहां किसी को उसकी जरूरत हो,मां पिता तो खुद मुश्किल से दिन काट रहे थे।कुछ भी नया करने से डरते थे कि समाज क्या कहेगा?

एक दिन बहुत दुखी हो, मुंह अंधेरे, प्रिया रेलवे स्टेशन पहुंच गई और किसी ट्रैन का इंतजार करने लगी।

जैसे ही उसने अपनी सारी ताकत लगा कर ट्रैन के आगे कूदना चाहा,दो मजबूत हाथों ने उसे रोक लिया।

वो बेसुध सी होकर उनकी बाहों में झूल गयी,ये कोई प्रौढ़ उम्र की महिला थीं।कुछ देर में सामान्य हो उसने उन्हें अपनी आपबीती सुनाई।

उनकी बात सुन प्रिया शर्म और पछतावे से भर उठी,वो उसे वहीं से पास एक अनाथालय में ले गईं जिसकी वो संस्थापिका थीं,उन्होंने उसे वहां छोटे छोटे ढेरों अनाथ बच्चों से मिलवाया जो आजतक किसी भी रिश्ते,प्यार,पढ़ाई से वंचित थे।

उन्होंने कहा:”तुम तो मुझे पढ़ी लिखी अच्छे घर की लग रही हो,क्या जिंदगी इतनी सस्ती होती है जिसे जरा से दुख में खत्म करने पर उतारू हो जाना चाहिए?”

प्रिया आंखें झुका के बोली:”किसी को मेरी जरूरत नही है इस दुनिया में,कोई मेरी खोज खबर नहीं लेता।”

उन्होंने कहा:”अब तो ऐसा न बोलो,देखो इन बच्चों को,इनके मुरझाए चेहरों को,इनका भविष्य तुम सँवार सकती हो।रिश्ते खून के ही हों ये जरूरी तो नहीं,रिश्ते तो प्यार,विश्वास की खाद पाकर ही फलते फूलते हैं।आज से तुम इनकी खोज खबर लेना रात और दिन फिर देखना,तुम्हारी जिन्दगी कैसे खिलखिलाने लगेगी।”

आओ ! अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत करो इन मासूम अनाथ बच्चों की जिंदगी में खुशियों के रंग भरकर।

प्रिया को लगा,सही तो कह रही हैं ये,निराश होकर अपनी इहलीला समाप्त करने से अच्छा है कि किसी निराश्रित की सेवा की जाए तो शायद इस दुनिया के कुछ दुख कम हो सकें,उसने देखा,ढेरो बच्चे उसे मुस्कराते हुए देख रहे थे।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

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