जीवन संघर्ष ही तो है – पूजा शर्मा  : Moral stories in hindi

कोई कोई लोग दुनिया में शायद संघर्ष करने के लिए ही पैदा होते हैं और दुनिया में परीक्षा देते देते ही अपना सारा जीवन काट देते हैं ,ऐसा ही कुछ वन्दना के साथ घटित हुआ था। कितने अरमानों से शादी की थी वंदना नेअपने इकलौते बेटे राघव की । शादी के बाद वंदना को लगा कि शायद अब उसके दिन बदल जाएंगे घर में बहू आ जाएगी तो वह भी थोड़ा चैन से जी सकेंगी

लेकिन राघव ने एक अमीर घराने की लड़की सोनिया से लव मैरिज की थी। राघव दिल्ली की जिस कंपनी में नौकरी करता था उसी कंपनी में सोनिया भी नौकरी करती थी। और उसके पापा का पत्थरों का दिल्ली में ही व्यापार था। सोनिया बेहद खूबसूरत थी। और दहेज भी बहुत सारा लेकर आई थी।

उसके मुंह दिखाई की रस्म में सब रिश्तेदारों ने यही बोला था कि अरे वंदना भाग खुल गए तेरे तो।इतनी सुंदर दुल्हन के साथ-साथ तेरा सारा घर भी सामान से भर गया है और राघव वह तो अपनी पत्नी के पीछे पीछे ही डोला फिर रहा था। वंदना भी खुश थी लेकिन उसे चिंता थी कि उनकी बहू जाने ससुराल में गृहस्थी की बागडोर संभाल भी पाएगी या नहीं और उनकी चिंता जायज भी थी।

सोनिया अपने घर में बहुत लाड प्यार से पली थी। घर में कितने नौकर चाकर थे। सोनिया को सुबह बैड टी पीने की आदत थी। खुद तो उससे उठा ही नहीं जाता था राघव ही उसे बैड टी बना कर देता था जबकि राघव खुद चाय पीता भी नहीं था। शादी को 2 महीने हो चुके थे लेकिन किसी भी काम पर नहीं चलती थी उनकी सुंदर सी बहु सोनिया।

घर में पैसे की कोई कमी नहीं थी और मायके से भी बहुत सामान आता था तो सोनिया को लगता था उसे नौकरी की कोई जरूरत नहीं है। इसीलिए उसने कंपनी से रिजाइन भी दे दिया था अब वह घर रह कर ही थोड़ी-थोड़ी गृहस्थी संभालने की कोशिश करने लगी थी। लेकिन जिस तरह से वह काम करती थी वंदना को लगता था इससे तो मैं ही कर् लेती,

दो रोटियां सेकने में ही सारी रसोई फैला देती थी काम वाली भी कहां उस हिसाब से काम कर पाती है इसलिए वंदना के लगे बिना काम होता ही नहीं था? वंदना अपनी तुलना अपनी सास से करती रहती थी एक हमारा जमाना था जरा सी उठने में देर हो जाती थी तो अम्माजी किस तरह से बड़बड़ाना शुरू कर देती थी।

अरे तुम्हारे घर में इतनी देर से ही उठा जाता है क्या? अगर इतना आराम का शौक था तो घर से नौकर लेकर आना था। वंदना की शादी हुई थी तो उसकी ससुराल में सब सुबह चाय पीते थे लेकिन गांव में रहने के कारण वंदना के घर गाय भैंस थी इसीलिए उसे अपने घर से ही दूध पीने की आदत थी

उसके केवल इतना कहने से ही अम्मा जी ने कितनी बातें सुना दी थी। दूध किसे अच्छा नहीं लगता लेकिन शहर में दूध कितना महंगा है पता भी है। दूध काम करने वाले मर्दों को ही मिल जाए बहुत है। वंदना का पति दिनेश अपने हिस्से का दूध ही अपनी पत्नी को जबरदस्ती दे देता था। वंदना के पति को 6 महीने के लिए किसी प्रोजेक्ट पर काम करने कंपनी की तरफ से

 अमेरिका जाना पड़ा था। उन दिनों राघव भी बहुत छोटा था दो कुंवारी नंद, सास ससुर एक देवर सबकी सेवा दहल में दिन रात लगी रहती थी वंदना, इतना बड़ा परिवार होने के बाद भी वंदना वहां खुश नहीं थी दिन रात सास के ताने सुन सुनकर दुखी हो गई थी। कभी-कभी रोते हुए वह अपने पति को फोन पर बताती थी

तो वह बोलता था बस थोड़े दिन की बात है वंदना, मैं आकर तुम्हें लेकर दिल्ली शिफ्ट हो जाऊंगा फिर सब ठीक हो जाएगा। पास में ही वंदना का गांव होने पर भी उसे मायके जाने को मना करती थी उसकी सास। एक बार उसकी तबीयत बहुत खराब हुई तब उसके पिताजी जाकर वंदना को 15 20 दिन के लिए अपने घर लेकर चले गए थे

और तब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हुई तब तक ससुराल भेजा भी नहीं था। यूं ही 6 महीने बीत गए थे दिनेश फिर दिल्ली अपनी पत्नी और बेटे के साथ शिफ्ट हो गया था। वंदना को लगा था अब वह अपने हिसाब से जीएगी लेकिन यह खुशी भी ज्यादा दिन नहीं रह सकी, राघव 11th क्लास में आया ही था कि उसके पिता का सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया। वंदना को इस सदमें से उबरने के लिए पूरा साल लग गया था।

उसके अकेले होने की वजह से उसके सास ससुर उसी के पास आकर रहने लगे थे लेकिन उनका मिजाज अब भी गरम ही था। देवर अपनी पत्नी के साथ अमेरिका ही बस गया था और दोनों नंदो की शादी हो चुकी थी। वंदना एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी लेकिन अब उसे दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही थी सास ससुर भी बीमार रहने लगे थे

और घर का सारा काम। वंदना ने सभी कामों के लिए एक मेड रख ली थी लेकिन उसकी सास ने बोल दिया था हम मेड के हाथ का खाना नहीं खायेंगे । तब भी वह अपने सास ससुर को गर्म खाना ही बना कर खिलाती थी। ससुराल में आकर जो सास का डर उसके मन में बैठ गया था वह कभी मन से निकला ही नहीं।

एक दिन अचानक ही एक दिन के बुखार में ही उसके ससुर की भी मृत्यु हो गई , अपने पति के न रहने से उसके प्रति उसके सास के व्यवहार में बहुत अंतर आ गया था अब उनका हृदय परिवर्तन हुआ था, वंदना ने अपने जीवन में अपनी सास का ये रूप पहली बार देखा था। वो उसका बहुत ध्यान रखने लगी थी बिल्कुल एक बेटी की तरह, अपने हाथों से कभी-कभी बनाकर खिला भी देती थी अपनी बहू को।

 एक बार अपनी दोनों बेटियों से उन्होंने कहा भी था मेरी बहू जैसी बहू मिलना मुश्किल है जिंदगी भर मेरा रोब सहन किया उसने । उम्र भर ताने ही दिए हैं इसे।

  अपने पति के जाने के बाद मैंने महसूस किया है इसने कितना बड़ा दुख झेला है । मैंने अपना बेटा खोया था तो इसने भी अपना पति खोया था , मैं बावली अपने बेटे को खोने का दुख ही मानती रही जीवन साथी के जाने का दुख क्या होता है, मैं आज समझी हूँ और इसने तो खेलने खाने की उम्र में ही वो दुख देखा था तब भी मैं इसका दुख नहीं समझ पाई ।

मैं चाहती हूं अपनी सभी गलतियां का पश्चाताप कर लू, ऊपर जाकर अपने बेटे को क्या मुंह दिखाऊंगी? अब उन्हें अपनी बहू के अलावा कुछ नहीं दिखता था। अपनी सास का इतना प्यार पाकर निहाल हो गई थी वंदना, राघव की भी अब नौकरी लग गई थी, वंदना की सास अब बीमार रहने लगी थी। वंदना ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी।

पैसे की कोई कमी नहीं थी। अब तो राघव भी अच्छे पैसे कमाने लगा था। वंदना जब उससे शादी करने के लिए कहती तो राघव यही कहता था- माँ आजकल की लड़कियां बहुत तेज होती हैं आपको शांति से जीना क्या अच्छा नहीं लगता । अब तक तो अपने दादी के साथ समझौता किया आगे बहू के साथ समझौता करती रहना।

एक दिन बैठे-बैठे यूं ही उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर निर्मला जी बोली मुझे माफ कर देना बेटी मैंने तुम्हें बहुत दुख दिए हैं भगवान करे तुझे भी तेरे जैसी ही बहू मिले तू अपने जीवन में बहुत सुख पाए। यही मेरा आशीर्वाद है। और सच में एक दिन रात को ऐसी सोई फिर कभी उठी ही नहीं। उसके कुछ महीने बाद राघव की कंपनी में सोनिया के आने से उसका जीवन ही बदल गया वह उसके पीछे पागल हो गया और उसने उसी से शादी कर ली थी।

अब वंदना को बहुत अकेलेपन का एहसास होने लगा था। वह गृहस्ती के चक्रव्यूह से भी निकल ही नहीं पा रही थी। वोअपने घर में खुद को बहुत उपेक्षित महसूस करने लगी थी जैसे सिर्फ काम के लिए ही उसकी जरूरत रह गई थी। उनका बेटा भी तो कितना बदल गया था। फिर पराईजाई से क्या शिकायत करें?

एक पीढ़ी में क्या इतना फर्क आ गया था। हमारे समय में बहू का मतलब ही ससुराल में।एक डरी सहमी सी लड़की से होता था और आजकल सास तो बहुत दूर है पति भी दो शब्द कह दे तो पूरे घर को सर पर उठा देती है बहुएं। और मायके वालों का नाम लेना तो जैसे बहुत बड़ा अपराध है सीधे कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने लगती है। वंदना समझ गई थी कि उसे तो जीवन भर बहू बनकर ही रहना है पहले सास की सेवा की और अब बहू की सेवा करनी है।

 शायद यही उसकी नियति थी अब वह बीमार भी रहने लगी थी उनके बेटे ने उनके लिए एक नर्स का घर पर ही इंतजाम कर दिया था और अपनी लंबी बीमारी के चलते एक दिन उसकी सांसे भी थम गई। बेटा बहू को उनकी मौत का कोई अफसोस नहीं था क्योंकि वे इसके लिए खुद को पहले से ही तैयार कर चुके थे।

 वैसे भी अब तो उन पर वो एक बोझ ही थी। क्योंकि जिस जितनी जरूरत होती है उतनी ही उसकी अहमियत होती है, फिर चाहे वो हमारे मां-बाप ही क्यों ना हो? यही जिंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई है।

 पूजा शर्मा 

स्वरचित।

  betiyan.in 6th जन्मोत्सव प्रतियोगिता।

 कहानी -3

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