मैं एक पब्लिशिंग कंपनी में संपादक के पद पर काम करती थी। मेरा विवाह बहुत मुश्किलों से चालीस की उम्र पार करने के पश्चात हुआ था । मेरे विवाह के समय सास- ससुर की उम्र 75 से ऊपर होने के कारण सारी जिम्मेदारी मुझ पर और मेरे पति पर थी। इस कारण नई नवेली दुलहन की समस्त इच्छाएं मन में ही रह गई थीं।
विवाह के दो साल बाद की बात है। ऑफिस से घर आते समय पति दुर्घटनाग्रस्त हो गए। बहुत चोट आई। वे चल भी नहीं पा रहे थे। एक ऑटोरिक्शा ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया । दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण पति की नौकरी जाती रही। उनके इलाज में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी। पति के इलाज के कारण मुझे भी आए दिन अवकाश लेना पड़ता था। इस कारण मेरी भी नौकरी जाती रही।
समझ नहीं आ रहा था, क्या करूं? पति के इलाज के कारण सारी जमापूंजी भी खत्म होती जा रही थी। इस कारण तनाव मुझ पर हावी होता रहा था, पर कर ही क्या सकतीं थी! नौकरी ना मिलने के कारण मैंने फ्रीलांसिंग काम के लिए इंटरनेट से ईमेल के द्वारा आवेदन करना प्रारंभ कर दिया। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे मेरी उम्मीद कम होती जा रही थी।
सास-ससुर दिलासा देते, सब ठीक हो जाएगा। चिंता मत करो। अपनी तरफ से वे भी पूरी मदद करते, लेकिन उनकी भी अपनी कुछ विवशताएं थी। माता-पिता, भाई-बहन को मैंने उनके चिंतित होने के भय से नौकरी जाने की बात नहीं बताई। घर पर भी मैंने सबको बताने से मना कर दिया था। सोचा, नई नौकरी मिलने पर बता दूंगी।
एक साल के इलाज के बाद पति पूरी तरह से ठीक हो गए। उन्होंने नौकरी के लिए अप्लाई करना आरंभ कर दिया। उम्र अधिक होने और एक साल का गेप होने के कारण उन्हें बहुत मुश्किल से कम वेतन पर एक नौकरी मिली। उन्होंने बिना देर किए वह नौकरी ज्वाइन कर ली। पति के नौकरी पर जाने से मुश्किले तो कम हुई लेकिन काम ना मिलने से मुझे ऐसा लगने लगा था कि अब मुझे कभी भी नौकरी नहीं मिलेगी। दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई थी, लेकिन पति को मेरी काबलियत पर पूरा विश्वास था। वे हमेशा कहते, चिंता मत करो । सब ठीक हो जाएगा।
तीन महीने बीत गए। एक दिन मैं ऐसे ही भविष्य की चिंता में उदास बैठी थी कि अचानक मेरा मोबाइल बजा। मुझे साक्षात्कार के लिए अगले दिन सुबह ग्यारह बजे बुलाया गया था। मन में उम्मीद की किरण जागी।
मेरा साक्षात्कार बहुत अच्छा हुआ । मुझे फ्रीलांसिंग काम के लिए चुन लिया गया था। उसी दिन मुझे काम भी दे दिया गया।
सच ही कहा है – जिंदगी में कभी खुशी है तो कभी गम। इसलिए लाख संकट आने पर भी हमें सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में नाउम्मीद नहीं होना चाहिए और मुश्किलों का सामना डटकर चाहिए।
अर्चना कोहली “अर्चि”
नोएडा (उत्तर प्रदेश)