पोती के जन्म पर इतनी बड़ी दावत कर रही हो पागल हो गई है क्या? सुमन जी ने अपनी सहेली विमला जी से कहा।
‘हॉ, तो इस में क्या हुआ और लड़की तो लक्ष्मी का
अवतार है” विमला जी हंसते हुए कहा।
“ये सब बातें कहने सुनने में अच्छी लगती है पर
असलियत में तो कुछ ओर ही होता है।” सुमन जी
ने उदास होते हुए कहा।
” मानती हूँ मैं भी की असलियत कुछ ओर ही होता है पर इस को असली और नकली बनाने वाले भी तो हम ही होते हैं ना..!!” विमला जी ने कहा।
“मैं समझी नहीं तुम क्या कहना चाहती है?” सुमन जी ने कहा।
“अच्छा, चल पहले तुम बताओ कि असलियत में क्या होता है?” विमला जी ने प्रश्न के जवाब में जवाब देने की बजाय सामने प्रश्न किया।
‘असलियत में यह होता है कि हम अपनी बेटी को बड़े प्यार और नाजों से पालते हैं, उसकी हर ख्वाहिश पूरा करते हैं। बेटियां हमारे जिगर का टुकड़ा होती है पर ससुराल जाते ही जैसे वो एक बंदिनी बनकर रह जाती है मायके आने जाने के लिए हजार बार सोचना पड़ता है उसे…!! सब की ख्वाहिशें पूरा करते करते अपनी ख्वाहिशों का गला घोटना पड़ता है उसे …!! इसलिए मैं नहीं चाहती कि मेरे यहां बेटी पैदा हो सुमन जी उदास होते हुए कहा ।
‘मान ली मैंने तुम्हारी बात की तुम सही कह रही है पर यह सब में कहीं हम औरतें तो जिम्मेदार नहीं? सोचा कभी तुम ने हम बेटियों को तो जिगर का टुकड़ा मान कर उसकी हर ख्वाहिशें पूरा करते हैं पर कभी किसी पराए घर से आई दूसरे की बेटी को बेटी का दर्जा देते ? नहीं, हम उसे पराए घर से ही आई है तो वो पराई ही ऐसा मानते हैं और कभी उसे अपनों की तरह नहीं रखते तो कहां से उसे भी अपनेपन का अहसास होगा? जब बेटा हमारा,
बेटी हमारी तो बहू क्यों नहीं ? मैंने तो अपनी बहू और बेटी में कभी भेदभाव नहीं किया इसलिए मुझे तो पोती के जन्म पर भी उतनी ही खुशी हुई है जितनी नातिन या पोते होने पर । अच्छा छोड़ चल अब ये बातों को , दावत पर सही समय पर पहुंच जाना ” विमला जी कहते हुए पार्क से घर लौटने के निकल गई सुमन जी को सोचने पर मजबूर कर..!! सोचते हुए सुमन जी को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उन्होंने भी पंद्रह दिन बाद अपनी बहू की गोद भराई की बहुत बड़ी दावत दी और विमला जी की पोती को अपनी बहू के गोद में देते हुए कहा, ” बेटी, मुझे माफ़ करना, मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है पर एक मां समझकर मुझे माफ़ करना और हाँ मुझे भी ऐसी ही प्यारी पोती देना। “बहू ने भी खुशी खुशी सुमन जी को गले लगा लिया।
दोस्तों, अक्सर बेटे बेटी में बहुत भेदभाव होता है पर उसे दूर करने में हमें ही आगे बढ़ना होगा क्या कहते हैं आप सब इस बारे में?
स्वरचित और मौलिक रचना
धन्यवाद,
आप की सखी भाविनी