स्वार्थ पर टिके रिश्तों का टूट जाना ही बेहतर है!!  –  मनीषा भरतीया

दीदी इस बार राखी पर आपके लिए क्या बनाऊं ….चाऊमीन और छोला भटूरा बना दूं क्योंकि आपको यह मेरे हाथ का सबसे ज्यादा पसंद है ना??? 

निशा ने अपनी ननंद सरिता से फोन पर कहा, तब सरिता ने कहा निशा अभी तो 10 दिन पड़े हैं पता नहीं कल क्या हो ना हो इतने दिन पहले से मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकती…. दीदी आप ऐसे क्यों बोल रही है ??शुभ शुभ बोलिए!! सरिता ने गुस्से में फोन रख दिया |

निशा को मन में खराब तो लगा लेकिन बात को ज्यादा तूल न देते हुए वह अपने काम में लग गई…. रात को जब निशा का पति नितेश घर आया तो निशा का बूझा हुआ चेहरा देखकर पूछा … क्या हुआ निशा तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना? ?? पर निशा ने उसे कुछ नहीं बताया यह सोच कर कि नितेश बेवजह परेशान हो जाएंगे….. बार-बार पूछने पर उसने कहा कि शरीर में थकान की वजह से थोड़ी कमजोरी महसूस हो रही है और सर में भी दर्द है आप चिंता ना करें आराम करूंगी तो ठीक हो जाऊंगी…..  फिर निशा , नितेश और उसका 8 साल का बेटा आरव तीनों खाना खाकर सो गए…. 

चार-पांच दिन इसी तरह काम की व्यस्तता और आरव की परीक्षा नजदीक होने के कारण उस पर ज्यादा ध्यान देने में हीं गुजर गए…..

अब राखी में भी चार-पांच दिन ही बाकी थे तो उसने सोचा कि सुन मांडने से पहले घर की अच्छी तरह सफाई कर दूं….. सब होने के बाद से दोपहर में फिर से अपनी ननंद सरिता को फोन लगाया दीदी धोक दू! सरिता ने कहा ठीक है….. निशा को थोड़ा अटपटा तो लगा की दीदी ने उसे आशीर्वाद नहीं दिया लेकिन उसने बात ना बढे इसलिए बात को बदलते हुए कहा दीदी आपकी तबीयत ठीक है ना…. अब तो राखी में 4 ही दिन बचे है…. इस बार कोई भद्रा भी नही है…. आप जल्दी ही काम निपटा कर आ जाइएगा… आप से बंधवाने के बाद ही मैं अपने भाई को राखी बांधने जाऊंगी… तब सरिता ने कहा मैं नही आ रही राखी पर…. निशा ने कहा कोई बात नहीं आप नहीं आ सकती तो हम आ  जाएंगे…. तब सरिता गुस्से में आगबबूला होकर बोली, ….. ना ही मुझे आना है…. और ना ही किसी को बुलाना है!! तब  निशा ने कहा ऐसा क्यों बोली दीदी आप हमसे क्या गलती हो गई अपने भाई- भाभी को राखी बांधने नहीं आएंगी…. कौन सा भाई कौन सी भाभी मर गये मेरे लिए तो दोनों ही…. 




दीदी आप ऐसे कैसे बोल सकती है अपने भाई के बारे में मैं तो फिर भी पराए घर से आई हूं लेकिन उनसे तो आपका खून का रिश्ता है आखिर ऐसी कौन सी गलती हमसे हुई है….. तब सरिता ने कहा  बन तो ऐसे रही हो जैसे तुम कुछ जानती ही नहीं…. निशा ने कहा दीदी मैं सच में कुछ नहीं जानती आप ही बता दीजिए….. तब सरिता ने कहा मैंने तुम दोनों से मेरे फ्लैट के लिए ₹500000 गिफ्ट मांगे थे जब तुम दोनों ने मुझे इनकार कर दिया यह कह कर कि तुम्हारे पास नहीं है…. दीदी पर हमने तो सच ही कहा था… आपको तो पता ही है कि.हम खुद भाड़े के फ्लैट में रहते है…. पापा जी नहीं हमें घर से बेदखल कर दिया साथ ही साथ मुझ पर चढ़ाए हुए सारे गहने भी ले लिए….. हमारे पास तो फ्लैट के  डिपॉजिट के लिए ₹30000 भी नहीं थे…… वह भी मैं अपने भाई से उधार लेकर आई थी…. क्योंकि आपके भाई ने तो हमेशा अपनी पूरी सैलरी घर के खर्चे में ही दे दी…… इन्होंने तो हमेशा यही सोचा कि यह मेरा परिवार है यहां सब मेरे अपने हैं|

इन्होंने अपनी कोई जमा पूंजी भी नही रखी…. शादी के बाद भी ये अपनी पूरी सैलरी देते रहे… लेकिन जब मैं बहुत बीमार हो गयी और मेरे इलाज में 20000 रू लगने थे…. तब इन्होंने पापा जी से मांगे तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया…. और कहा की मेरे पास कोई पैसे नही है….. तब मेरे बाबूजी ने मेरा इलाज कराया…. इन्हें ये सब देखकर बहुत दुख हुआ और अगले महीने इन्होंने पापाजी को सैलरी नही दी तो उन्होंने हमें घर से निकाल दिया…. लेकिन आप हमारे साथ गलत होते हुए चुपचाप देख रही थी…. आपने पापाजी से कुछ नही कहा!! 

क्या जिसको ये ब्याह कर लाए है उसके प्रति उनकी कोई जिम्मेदारी नही है??




खैर दीदी आप को समझाने का कोई फायदा ही नहीं है…क्योंकि आप तो रिश्तो के मायने ही भूल चुकी है…..बचपन से लेकर जवानी तक आप दोनों भाई बहन एक साथ खेले कूदे बड़े हुए…. जब किसी एक की आंख में आंसू आ जाए तो दूसरा रो पड़ता आपको तो यह भी याद नहीं कि जब मम्मी जी की तबीयत ठीक नहीं रहती थी….. और आपका स्कूल इन से पहले लगता था तब यही आपके लिए चाय बनाते थे… आप दोनों साथ में मेला घूमने जाते थे….. आपको साइकिल चलानी भी इन्होंने ही सिखाई थी … सीखते सीखते आप कितनी बार गिर पड़ती थी  …..तब इनका दिल रो पड़ता था…भागते भागते आपकी मरहम पट्टी के लिए फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आते थे…… आपको हंसाने के लिए जोकर तक बन जाते  और तब तक बनते रहते जब तक कि आप  आप हंस ना दें… आप भी इनसे एक बच्चे की तरह प्यार करती थी…..अपनी पौधे मनी से रोज इनके लिए कुछ ना कुछ लेकर आती थी….आप दोनों भाई बहन का प्यार तो पूरी कॉलोनी में मिसाल था…… 

जब मेरे बाबूजी यहां रिश्ते की बात करने के लिए आए तब सभी ने कहा कि लड़के की मां नहीं है लेकिन बहन मां से कम नहीं है वह अपने भाई का मां की तरह ख्याल रखती है….. और भाई भी उस पर जान छिड़कता है आप बेफिक्र होकर अपनी बेटी ब्याह दीजिए वह अपनी भाभी को भी बहुत प्यार करेगी….. 

लेकिन आप तो स्वार्थ में  अंधी हो गई है आपको भाई का प्यार भी दिखाई नहीं दे रहा है…. आप उस भाई से किनारा कर सही है जिसकी कोई गलती ही नहीं….. शायद आपका दिल पत्थर का हो गया है….. जो अब भी नहीं पिघला… . आपको जो उचित लगे आप वही करें

खैर दीदी अब मैं और क्या कहूं उन रिश्तो का टूट जाना ही बेहतर है जो स्वार्थ पर टिके हो…..

दोस्तों आपको कैसी लगी कहानी अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा…. आपको क्या लगता है….. कि नितेश के पिताजी ने उसके साथ सही किया?? 

क्या बहन भाई का रिश्ता सिर्फ स्वार्थ का होता है??? 

आपको क्या लगता है ऐसे रिश्तों का टूटना ही बेहतर है??? 

अपनी राय कमेंट बाक्स में जरूर दीजिये….. और हां कहानी पसंद आए तो लाइक और शेयर जरूर कीजिये…. 

#स्वार्थ 

धन्यवाद🙏

© मनीषा भरतीया

4 thoughts on “स्वार्थ पर टिके रिश्तों का टूट जाना ही बेहतर है!!  –  मनीषा भरतीया”

  1. मनीषा भारतीय जी, क्या लगता है?क्या होगा आगे?सब कुछ हैप्पी हैप्पी?या अभी भी कुछ ट्विस्ट,कुछ पेंच और है,जो इस रिश्ते की दूरी को और बढ़ाएगा?या नजदीक और नजदीक लायेगा? देखते हैं🙏

  2. आजकल माँ बाप बहुत स्वार्थी हो गए हैं, एक की तरक्की के लिए दूसरे की जिंदगी खराब करने से भी नहीं चूकते

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