मेरे लिए तो आप हो ना जी !! -मीनू झा

 

आप चिंता मत करो पापा सब हो जाएगा मैं कहीं भी थोड़ी सी भी कमी नहीं आने दूंगा ना किसी कर्म कांड में ना ही दान में और ना ही ब्राह्मण भोजन में आप निश्चिंत रहो एकदम से–बेटे सुधीर ने पिता रमेश जी को कहा।

मैं क्या कह रहा था सुधीर…मेरे खाते में भी कुछ रूपये पड़े हैं… कुछ दिनों से बचा रहा था उसे शौक था ना एक पतली…

भैयाजी वो बड़े पंडितजी आए हैं आपको बुला रहे हैं कुछ और इंतजाम के बारे में बात करने–रमेश जी की बात अधूरी ही थी कि छोटे बेटे सुवीर ने आकर कहा तो सुधीर उसके साथ निकल गया।

पापा…आप अपने पैसे रखिए…आपका बेटा इस लायक है कि सबकुछ संभाल सके,कर सके आप निश्चिंत रहिए..बस कहीं कुछ कमी दिखे तो बताइएगा..—पास खड़ी बड़ी बहू ने उन्हें आश्वासन दिया।

रमेशजी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये उनका वही बेटा और वहीं बहू है जो पास में रहते हुए भी कभी झांकने नहीं आते थे…सास बहू के मामले का बहाना बनाकर उनदोनो ने सिर्फ ठिकाना ही नहीं बदला… दिमाग भी बदल लिया…। मामूली से पद से रिटायर हुए पिता का और मां का खर्चा,दवाई और सारी जरूरतें कैसे पूरी होती है कभी खबर नहीं लेने वाले वहीं बेटे और बहू आज सबकुछ,सारा खर्च अपने कंधे पर संभाले हुए थे…।

 

कहने को दो दो बेटे हैं पर कोई नहीं देखने वाला…छोटा तो फिर भी दूर है और उसकी आमदनी कम है,पर बड़ा तो पास रहता है,हर तरह से लायक भी है…अरे मेरे लिए करें ना करें,मां को तो देखना चाहिए ना..कितना प्यार करता था बचपन में अपनी मां से–रमेश जी जब रमा को किसी तरह की कोई तकलीफ़ होती तो कहते।

सुनिए जी इस घर में मेरा हाथ पकड़कर आप लाएं है ना,बेटा तो बाद में आया.. मुझे आप पर भरोसा है बस..आप मेरे साथ है और मेरी जिम्मेदारी आपकी है,और कुछ नहीं जानती, ना चाहती हूं मैं —रमा का मुंह गर्व से भर उठता बोलते बोलते।

पर मां के बाथरूम में गिरने के बाद टूटी हुई कुल्हे की हड्डी कब बेटे बहू के हृदय के तारों को माता पिता से जोड़ गई रमेश जी के लिए पहेली ही बनी हुई थी ये बात,शायद अपनी पिछली गल्तियो का एहसास हो गया हो बेटे बहू को और प्रायश्चित करना चाहते हों…तभी तो पिछले महीने रमा के गिरने और फिर उसके हमेशा के लिए चले जाने से लेकर उनके कर्मकांड की सारी तैयारियां बेटे बहू भाग भागकर और एक टांग पर खड़े होकर कर रहे थे।



छोटा बेटा तो ऐसे भी दूर रहता था खबर मिलने पर आया था और अपनी जो जिम्मेदारी बन पा रही थी, पूरी कर रहा था।

चलो रमा…देर से ही सही तुम्हारे बेटे बहू को मां बाप की चिंता तो हुई.. अंतिम समय दस दिन ही सही तुम्हें उनकी सेवा तो मिली—रमेश जी बेटे बहू की सेवा देख भरे मन से खुद को समझाते।

 

दान की सारी सामग्री से एक पूरा कमरा भर गया था…आंगन में बैठे रमेश जी का कलेजा धक्क से रह गया जब उन्होंने देखा एक बड़ी सी पतली दीवार पर टंगने वाली टीवी भी आई है दान के लिए।

ऐ जी सुनो ना… कुछ पैसे हैं क्या आपके पास–कुछ महीने पहले ही तो रमा ने एक दिन मुस्कुराते हुए पूछा था उनसे।

क्या चाहिए रमा जी…साड़ी वाड़ी लेनी है क्या या फिर चूड़ी बिंदी—अपनी पत्नी की सीमित आवश्यकताओं और मांगो को समझने वाले रमेश जी ने फोन देखते देखते हुए पूछा।

वो…टीवी आती है ना पतली वाली बड़ी सी… शान्ति बहन के घर देखा था बहुत अच्छा लगता है उसपर भजन और प्रवचन सुनने में….बड़ा मन था लेने का

क्या??…पर वो तो महंगी होती है रमा जी…बीस हजार या उसके आसपास आएगी… हां अगर किश्त पर लेने कहो तो बात करता हूं कल दुकान में जाकर !

“नहीं नहीं…कर्ज या किश्त पर नहीं…एक काम करेंगे ना हम थोड़े थोड़े पैसे बचाकर ले लेंगे टीवी तीन चार महीने में “

रमा को पता था कि रमेश जी को कर्ज लेकर कुछ करना कभी पसंद नहीं था,अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई,सारा खर्चा वो अपनी सीमित आय में ढंग से घर चलाकर पूरा करते रहे पर कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारा तो रमा भी इस बात की कद्र करती थी।



पर वो कहां रूकी तीन चार महीने,टीवी ले लेते तो कम से कम उसकी इच्छा तो पूरी हो जाती..चलो मैं तो ना दे पाया तुम्हारे बेटे ने तुम्हारे परलोक की व्यवस्था तो कर दी–सोचकर आंख पोंछने लगे रमेश जी,यही तो उस समय वो कह रहे थे सुधीर से कि वो जो टीवी के लिए जमा कर रहे थे वो उनके अकाउंट में पड़े हुए हैं,अगर जरूरत पड़े तो काम आ सकते हैं पर सुधीर ने तो उनकी हर चिंता ही दूर कर दी थी।

 

खैर..सब बहुत अच्छी तरह हो रहा था…रमेश जी जिधर देखते उनका मन खुश हो जाता कि रमा की आत्मा तृप्त हो जाएगी…बेटा आखिर इतना कुछ कर रहा है उनके लिए,इतना तो वो भला कहां से कर पाते,?

तेरहवीं की तैयारी में रमेशजी ने देखा एक बड़ा सा मंच बनाया गया है… उत्सुकतावश रमेश जी ने पूछा —

भाई ये मंच किसने बनाने का आर्डर दिया… श्राद्ध में मंच का क्या काम??

चाचाजी…विधायक जी आएंगे तो भाषण कहां खड़े होकर देंगे मंच नहीं होगा तो??–बनाते बनाते कारीगर ने कहा

विधायक जी…भई मेरे…तुम क्या बोल रहे हो??

अरे चाचाजी…वो आगामी चुनाव में भाभीजी जिस पार्टी की कार्यकर्ता हैं उससे टिकट लेना चाह रही है ना तो विधायक जी को भी आमंत्रित किया गया है…ताकि वो भी देखें और समाज को संदेश भी जाए कि आदर्श बेटे बहू कैसे होते हैं, आखिरकार एक आदर्श और समर्पित बहू ही एक अच्छे समाज ,राज्य और देश की स्थापना कर सकती है —सुधीर का एक दोस्त जो ये काम करवा रहा था बोला।

आंखें खुली रह गई रमेश जी की….रमा जी के बीमार पड़ने के बाद वो बेटे बहू का आना,वो इलाज सेवा और ये सारी चीजें श्राद्ध,दान भोज सब राजनीति का हिस्सा है…बहू की तो सास थी पर बेटे ने भी अपनी मां की मौत को भुना लिया? मां की वो ढेर सारी तस्वीरें,वो पैर छूते हुए वीडियो,वो खिलाते हुए सेल्फी सब इसी का हिस्सा था वो कहां समझ पाए थे…।उफ्फ…आदर्श बेटे बहू….पहले बेटे बहू तो बन जाते..आदर्श तो बहुत दूर की बात थी!

हे भगवान….रमा…माफी मांगता हूं तुमसे… नहीं समझ पाया इनके पैंतरों को…नहीं पहचान पाया तुम्हारे बेटे बहू  को…कैसे तृप्ति मिलेगी तुम्हारी आत्मा को ,कैसे पहुंचेगी ऐसी दिखावे वाली स्वार्थ से भरी हुई श्रद्धा तुम तक परलोक में? मुझे ही कुछ करना होगा अब तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए –मन ही मन सोचा रमेश जी ने।

 

रमा जी की एक फोटो और कुछ जरूरी सामान एक छोटे से बैग में डालकर रमेशजी सबसे नजर बचाते हुए निकल गए।

गंगाजी के तट पर जाकर अपनी श्रद्धा और भक्ति से मन से सच्ची श्रद्धांजलि देंगे तो रमा को जरूर मोक्ष की प्राप्ति होगी…पूरी हो ही गई रमा जी की इच्छा…यही तो वो चाहती थी…मां थी ना अपने बच्चे को‌ उनसे ज्यादा पहचानती थी,तभी तो उनपर ही जिम्मेदारी डाल गई।

जब वो श्रद्धांजलि दे रहे थे तो मानो वो कह रही थी उसी गर्वित चेहरे से खड़ी होकर सामने– कहा था ना…मुझे सिर्फ आपका भरोसा है,आप लाए हो ना हाथ पकड़कर आपके ही हाथों वैतरणी पार करूंगी मैं तो…।

 मीनू झा 

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