ये कैसा न्याय है? – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

निर्मला पेट से है यह खुशखबरी पाते ही निरंजन खुशी से झूम उठा परंतु निर्मला की सास को जरा भी खुशी नही हुई, उल्टा मुंह फुला कर बैठ गई। निरंजन ने पूछा माॅ॑ मै बाप बनने बाला हूं और तुम दादी क्या यह जानकर तुमको खुशी नही हुई?

“खुशी होती बेटा यदि पता चल जाता कि निर्मला बेटा ही जनेगी बेटी नही।” निर्मला की सांस ने कहा 

“अरे माॅ॑ ये क्या कह रही हो बेटा हो या बेटी क्या फर्क पड़ता है? आज के जमाने मे बेटा बेटी सब समान है।” निरंजन ने कहा 

फर्क क्यों नही पड़ता?… बेटा बुढ़ापे का सहारा होता है, और बिटिया दूसरे के घर चली जाती है।

“माॅ॑ आज कल बेटे भी बाहर चले जाते हैं।”

हां… हां जानती हूं बेटे भी चले जाते हैं, मगर उन पर अपना अधिकार बना रहता है। लेकिन बेटी पर तो कोई अधिकार नही रह जाता वो तो पराई हो जाती है।

माॅ॑ बेटा बेटी दोनो जरूरी है… दोनो से ही परिवार बनता है। बिना बेटी के परिवार पूरा नही हो सकता, बेटियाॅ॑ ही परिवार बनाती और बढ़ाती हैं।

मैं कुछ नही जानती तू बहू को लेकर जा और उसकी जांच करवा उसकी कोख मे बेटा है या बेटी। यदि बेटी हो तो गिरवा दे।

“माॅ॑ मै ऐसा हरगिज नही करूंगा यह अपराध है।”

“बेटा अगर तू मेरी बात नही मानेगा तो मै अन्न जल सब त्याग दूंगी, भले ही मेरे प्राण निकल जाएं।”

निरंजन दुखी होकर निर्मला के पास जाता है। निर्मला निरंजन को उदास देख कर कहती है,अब क्या होगा जी?




वही करना पड़ेगा जो माॅ॑ चाहती है। जानती नही हो कितनी जिद्दी है, माॅ॑ एकबार जो ठान लेती है वहीं करती है।

दरवाजे की बेल बजती है…. निर्मला की सास दरवाजा खोलती है। सामने बेटी रोमा को देख कर फूली नही समाती परंतु रोमा रोते-रोते माॅ॑ के गले लग जाती है।

“रोमा बिटिया क्या हुआ…तू क्यों रो रही है?”

“माॅ॑ मै हमेशा के लिए घर छोड़ कर आ गई।”रोमा ने कहा

लेकिन क्यों क्या हुआ ?

“माॅ॑ मै उस घर मे हरगिज नही रह सकती जिस घर मे बेटियों का सम्मान नही होता।”

अरे लेकिन हुआ क्या है…बात तो बता?

माॅ॑ मै पेट से हूं मेरी सास ने जबरजस्ती मेरे गर्भ की जांच करवाई। जांच करवाने पर पता चला की लड़की है। उन्हे लड़की नही चाहिए कहती हैं गिरवा दो।

माॅ॑ लड़कियों से ही परिवार बनता है। मै भी लड़की हूं….तुम भी लड़की हो….मेरी सास भी लड़की हैं, फिर लड़की से परहेज क्यों? अगर लड़कियां ही नही रहेंगी तो फिर लड़के कहां से पैदा होंगे?

माना की लड़कियां दूसरे के घर चली जाती हैं तो दूसरे के घर की लड़की भी तो अपने घर आती है…. हिसाब बराबर।

माॅ॑ अगर लड़कियों को कोख मे ही मार दिया जाएगा तो लड़को के लिए सब बहुएं कहां से लाएंगे? “बेटे तो संतान पैदा नही करते।”

स्त्री ही संतान पैदा करती है और स्त्री ही स्त्री को मारने का फरमान जारी कर देती है, ये कैसा न्याय है माॅ॑ ?

बेटी की बाते सुनकर निर्मला की सास की आॅ॑खे खुल गईं। उन्होंने निरंजन से माफी मांगी।

निरंजन मुझे माफ़ कर दे बेटा मै बहुत शर्मीन्दा हूं। अब मै समझ गई परिवार चलाने के लिए बेटा बेटी दोनो जरूरी होते हैं। मुझे तो बस संतान चाहिए जो मुझे दादी कहकर पुकारे।

रोमा की सास को भी अपनी गलती का एहसास होता है और वे रोमा को अपने पास बुला लेती हैं।

दोस्तो आपको मेरी कहानी कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया देकर जरूर बताएं। आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए औषधि का काम करती है धन्यवाद।

#परिवार 

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश 

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