“ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे –  कविता भड़ाना…

छोड़ेंगे दम मगर,तेरा साथ न छोड़ेंगे “

” शोले” फिल्म के इस गाने को सुनकर अचानक से सुधीर की आंखों में पानी आ गया और बरसने लगी। याद आ गया उसे अपने बचपन का जिगरी दोस्त “आनंद”… 

सुधीर और आनंद दोनों एक ही गली मैं अगल-बगल के घरों में रहते थे। दोनों के परिवारों में भी बहुत मेलजोल और प्यार था।..इसी कारण दोनों मैं भी बहुत पक्की यारी थी। स्कूल भी एक होने के कारण दोनों का अधिकतर समय साथ ही गुजरता,यहां तक कि घरों की छतें भी मिली हुई थी तो दोनों देर रात तक छत पर बैठकर खूब बातें करते और खेलते।

स्कूल के बाद कॉलेज में भी दोनों साथ रहे, फिर दोनों की नौकरी भी एक ही कंपनी में लगी। पहले स्कूल,कॉलेज और अब कंपनी भी एक होने से दोनों का सारा समय साथ ही गुजरता।..समय के साथ दोनों के विवाह भी सुयोग्य कन्याओं से हो गए। घर गृहस्थी में व्यस्त दोनों का समय बहुत अच्छे से गुजर रहा था। दोनों में वैसा ही प्यार और दोस्ती कायम थी। दोनो की दोस्ती की मिसाल भी दी जाती,की याराना हो तो “सुधीर और आनंद”जैसा।

 फिर आया “करोना काल”…इस महामारी में न जाने कितने लोगों ने अपना जीवन गवाया, कितने बच्चे अनाथ हो गए, कितनों के तो पूरे के पूरे परिवार ही समाप्त हो गए। इसी दौरान सुधीर और उसका पूरा परिवार भी “करोना” की चपेट में आ गया। “करोना” अपना विकराल रूप दिखा रहा था, जहां अपने ही अपनो का साथ छोड़ रहे थे, उस कठिन समय आनंद ने अपने परिवार वालों के बहुत मना करने के बाद भी सुधीर के परिवार की देखभाल की, खाने पीने के सामान से लेकर सबकी दवाइयों और घरेलू जरूरतों का ध्यान रखा।

 उसकी कोशिशों से सुधीर के परिवार वालों में स्वास्थ्य सुधार होने लगा, पर अब आनंद को अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। उसे हरारत और सांस में तकलीफ होने लगी। पर किसी को कुछ ना बता कर बुखार की दवाई लेकर घर के बाहर बरामदे में आकर आराम करने लगा । सुधीर के परिवार के यहां आने जाने की वजह से आनंद अपने घर के बरामदे में ही रहता था। की अचानक रात के समय तेज खांसी के साथ आनंद को सांस लेने में दिक्कत होने लगी। घर वालों ने फौरन अस्पताल में फोन से सूचना दी कि जल्दी से आए, पर एंबुलेंस के आने तक आनंद की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई।

  अपने परम मित्र  की यू असमय  मृत्यु की खबर से सुधीर भी अपनी सुध बुध खो बैठा। इतने कठिन समय, जब सब ने मुंह मोड़ लिया था तब उसके दोस्त ने अपनी परवाह ना करते हुए दिन-रात सुधीर के परिवार का ख्याल रखा, पर बदकिस्मती से “करोना” ने उसके प्यारे दोस्त को ही निगल लिया।… आज 1 साल हो गया आनंद को गए पर उसकी स्मृतियां उसका त्याग हमेशा सुधीर के दिल में जिंदा रहेगा और जिंदा रहेगा उनका ये “याराना”।

“दोस्ती जीवन का सबसे कीमती उपहार है सुख-दुख, हंसी ठिठोली अकेलेपन, मुसीबत और जरूरत के समय सच्चा दोस्त ही है जो आपके साथ खड़ा होता है। रिश्ते की यह मजबूत डोरी कभी टूटने ना दें, इसे हमेशा सहेज कर रखें”

सभी दोस्तों को समर्पित।।।।

 

       कविता भड़ाना…

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!