वो लड़की – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

 उसे फ़िक्र नहीं थी कि उसकी क़िस्मत की लकीरों में क्या लिखा है… वो बस अपनी ही धुन में ज़िन्दगी जीने की चाह लिए जी रही थी…. उसे पहली बार मैं अनाथ आश्रम में देखी…. वो तक़रीबन पाँच साल की होगी….अपने छोटे बेटे के  जन्मदिन पर मैं उस आश्रम में गई थी… सभी बच्चों के साथ बेटे का केक कट करवाया उसके बाद सभी बच्चों ने जम कर खाने का लुत्फ़ उठाया पर उस लड़की को देख अनायास ही ध्यान चला गया वो मस्त अपनी एक डॉल के साथ खेलने में व्यस्त थी …मैं उसके पास जाकर बोली,“ बेटा क्या नाम है तुम्हारा?”ड

“ काँची ” संक्षिप्त सा उतर देकर वो मेरी ओर देखने लगी और बोली,“ ये आपका बेटा है…इसलिए आपके साथ है…बेटी होती तो आप उसे मेरी तरह अनाथ आश्रम में छोड़ जाती…!”

सवाल सुन मन कचोट गया था…. इतनी छोटी सी बच्ची के मुँह से ये सुन कर मन उद्वेलित हो गया… झट से उसे सीने से लगा कर बोली,“ कभी नहीं….।”

काँची मेरे सीने से लग शायद अपनी माँ को महसूस करने लगी थी। हम दोनों ने फिर ढेर सारी बातें की।

आश्रम संचालिका से काँची के बारे में पता किया तो उन्होंने बताया ,”ये किसी को कचरे के ढेर में मिली थी और फिर हमारे पास आ गई… दिमाग़ की बहुत तेज हैं कहती हैं मैं बड़ी होकर टीचर बनूँगी और लड़कियों को ही पढ़ाऊँगी….. असल में सब यहाँ यही कहते रहते हैं …बेचारी लड़की है इसलिए माँ बाप छोड़ दिए होंगे….ये बात इसके मानस पटल से जाता ही नहीं है।”

काँची से मिलने के बाद उसकी पढ़ाई की ज़िम्मेदारी हमने उठा ली थी….. वो उधर ही रहती और मन लगाकर पढ़ाई करती ….. मैं अक्सर उससे मिलने जाती रहती थी ।

समय गुजरता गया और काँची अब जवान हो गई थी… उसे महिला आश्रम में शिफ़्ट कर दिया गया ।

एक दिन काँची के आश्रम से मुझे फ़ोन आया वो मुझसे मिलना चाहती है ।

मैं जल्दी से आश्रम भागी….ना जाने क्यों उसे मुझसे मिलना…

“ माँ … (हाँ वो मुझे माँ बोलने लगी थी)… आप मेरी पढ़ाई बंद तो नहीं करवा देंगी ना? “काँची रुआँसी हो पूछी

“ बिलकुल नहीं किसने ये कहाँ तुमसे?” मैं बोली 

“ सब कह रहे हैं अब हमें काम करना होगा …. जितना पढ़ाई करना था कर लिया अब यहाँ पर काम कर के गुज़ारा करना होगा… मैं अपने दम पर कुछ करना चाहती हूँ…. माता-पिता ने जन्म देकर इति श्री कर ली … आप से मिलकर मुझे माँ मिली …. मैं सच में पढ़कर दूसरों को पढ़ाना चाहती हूँ…. अपने जैसे बच्चों की ज़िन्दगी सुधारना चाहती हूँ…. मैं क़िस्मत से यहाँ आ गई हूँ पर अब अपनी क़िस्मत खुद लिखना चाहती हूँ ….बस आप मेरी थोड़ी सी मदद कर दीजिए…. संचालिका मैडम से कह दीजिए मुझे आग पढ़ाई करने दे…. मैं ख़ाली वक़्त में काम भी कर दूँगी… पर पहले पढ़ाई करूँगी ।” उसकी आवाज़ में एक ढृढ़ता थी

मैंने संचालिका जी से बात कर काँची के आगे पढ़ने की परमिशन ले ली थी। उसके खर्चे वैसे भी मैं दिल से उठा रही थी तो उन्हें भी कोई आपत्ति नहीं हुई….

एक दिन पति ने बताया उनका ट्रांसफ़र हो गया है…… सुन कर एक पल को मैं झटका खा गई…अब काँची से कैसे मिल पाऊँगी…. कही ना कही वो मेरे दिल में घर कर गई थी…. अनाथ आश्रम से निकल कर महिला आश्रम में भी अपने ही रौ में रहती…. वो किसी से नहीं डरती थी पर मजबूरी यही थी कि वो अनाथ थी सिर पर कोई हाथ नहीं था जो उसका स्वावलंबन बन सकें….. मेरी थोड़ी मदद और प्यार से उसे थोड़ी हिम्मत ज़रूर मिल रही थी पर अब मेरे जाने के बाद….

खैर हमें तो जाना ही था …. जाने से पहले काँची से मिलना भी ज़रूरी था…. जब उसे बताया मैं जा रही हूँ वो रोने लगी थी पर कुछ ही पल में चुप हो कर मुझसे बोली,“ माँ यहाँ तक का सफर जब तय कर ही लिया है तो अब आगे भी कर ही लूँगी…. आप बस मुझसे बात कर लिया करना… देखना एक दिन आपको काँची टीचर बन कर दिखाएँगी….. ये तो मैंने खुद अपनी क़िस्मत में चुना है जो पूरा करूँगी ।” 

मैं काँची से दूर हो गई थी पर दिल से हम दोनों बहुत क़रीब ही रहे…

समय बीतने लगा था…..

एक दिन मुझे फ़ोन आया,“ हैलो माँ मैं सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन गई अब देखना मैं लड़कियों को जागरूक करूँगी…. अपना आशीर्वाद दीजिए ताकि मैं अपनी ज़िन्दगी में और अच्छा करने का प्रयास कर सकूँ ।”

“ तुम हमेशा आगे ही आगे बढ़ो…. इतनी अच्छी क़िस्मत वाली बिटिया पा कर मैं तो बहुत खुश हूँ…. बस बेटा ऐसे ही ज़िन्दगी में आगे ही आगे बढ़ती रहो।” मैंने कहा

“ माँ माँ कब से उठा रहा हूँ….तुम ना जाने किन सपनों में खोई हुई हो।”बड़े बेटे प्रतीक के स्वर से मेरी निद्रा भंग हुई 

“ सपना देख  रही थी क्या…. कब से पापा और मैं आवाज़ दे रहे तुम ना जाने क्या काँची काँची बोल रही थी…।” प्रतीक ने कहा

मैं अपनी आँखें बड़ी कर के उन दोनों को देखने लगी …

“ कल मैं जिस अनाथ आश्रम गई थी ना…..वहाँ एक लड़की से मिली वो मुझे बहुत प्यारी सी लगी और मैं बस उसके ख़्यालों में खो कर ऐसे सोई की बस पूरी रात सपने में वहीं दिखाई देती रही…. काश जो सपना मैं देख रही थी वो पूरा हो जाए… उसकी क़िस्मत की लकीरों में ख़ुशियों की सौग़ात मिल जाए।” मेरी बात सुन बेटा और पति आश्चर्य से मेरा मुँह देख रहे थे और मैं अभी भी उस लड़की को सपने में देख रही थी 

ये सुन कर मेरे पति निकुंज ने कहा,” सुनो वो परितोष याद है….जिसकी शादी को कई साल हो गए बच्चा ना होने के कारण दोनों पति  पत्नी  कितने दुःखी रहते हैं…इतने इलाज के बाद भी कोई बच्चा नहीं हुआ है… क्यों ना एक बार उनसे बात कर के देखें शायद वो उस बच्ची को गोद लेने को तैयार हो जाए?” 

ये सुन कर मुझे ख़ुशी तो हुई पर एक डर भी था कि वो उसे अपनाएँगे और नहीं…

खैर निकुंज ने उनसे बात की तो वो पहले काँची से मिलना चाहते थे…. उसके बाद ही कुछ कह सकते हैं।

हम जब अनाथ आश्रम गए तो काँची को देख कर सब प्रभावित हुए….

“ काँची अब अपने मम्मी पापा के साथ रहोगी?” मैंने उससे पूछा 

वो कुछ देर मुझे देखने के बाद बोली,” वो मुझे सच में अपने साथ ले जाएँगे…. मैं तो लड़की हूँ ना… तभी तो यहाँ हूँ ।”

“ नहीं बेटा वो सच में तुम्हें बेटी बना कर ले जाएँगे…तुम्हें टीचर बनना है ना…वो सपना पूरा करने में तुम्हारी मदद करेंगे ।”

पता नहीं काँची के मन में क्या चल रहा था कुछ सोच कर इधर-उधर देखने के बाद संचालिका के पास गई और उनसे सच्चाई की पुष्टि करना चाही

 उन्होंने जब हाँ में सिर हिलाया तो वो परितोष और उनकी पत्नी के पास जाकर बोली ,”आप मुझे सच में अपनी बेटी बना कर रखेंगे… मुझे प्यार करेंगे?”

दोनों ने उसे गले से लगा लिया और बोले,” हाँ मेरी बच्ची… तुम्हारी हाँ ने हमारा परिवार पूरा कर दिया है ।”

काँची की क़िस्मत में कचरे के ढेर से …अनाथ आश्रम और वहाँ से निकल कर अपना कहने को एक घर लिखा था…और ये क़िस्मत का खेल रचने वाला रचयिता उपर वाला ही था।

ये कहानी बस मैं इसलिए लिख रही हूँ क्योंकि मैं बहुत बार आश्रम गई हूँ बहुत सी बच्चियों को देख कर मन में यही ख़्याल आता था कि उनकी क़िस्मत की लकीरों में ना जाने क्या लिखा है….सच है हम सब अपनी दुनिया में व्यस्त और मस्त है …..कभी वक्त निकाल कर उनकी क़िस्मत में कुछ अच्छे पल जोड़ पाए तो कितना अच्छा हो।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# क़िस्मत का खेल

 

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