वो ख्वाब, जो पूरे ना हो सके – सुषमा यादव

## ख्वाब #  टाॅपिक पर आधारित रचना,,

सुषमा यादव,, प्रतापगढ़, उ प्र,

,,, जिंदगी के कुछ ख्वाब ऐसे होते हैं,, जो पूरे नहीं होते,,सारी उम्र दिल में टीस सी उठती रहती है,,

मेरे भी कुछ ख़्वाब थे,जो आज तक किसी से कह नहीं सकी,,जो

पूरे होते,होते रह गये,,

,,, मैं एम ए अर्थशास्त्र विषय से पूरे संभाग में प्रथम आई थी,, मैंने प्रायवेट परीक्षा दी थी, अपनी एक साल की बेटी को गोद में लेकर, मैंने पढ़ाई की थी, कुछ दिन बाद मेरे घर पर उसी शहर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय से दो प्रोफेसर मेरे घर आये और  संभाग में प्रथम आने पर बधाई

देते हुए बोले कि,,हम आपका नियुक्ति पत्र लेकर आये हैं,,  प्रिंसिपल सर ने हमको भेजा है,,मैं और मेरे पिता जी बहुत खुश हुए,, हालांकि मैं वहीं के सरकारी स्कूल में पहले से ही शिक्षिका थी,,पर कालेज की नौकरी, वो भी घर बैठे,,ये तो मेरे लिए एक वरदान से

कम नहीं था,, नौकरी करते हुए मुझे पी एच डी भी करना था,, हमने उन्हें जलपान कराया,अभी हम सब चाय पी ही रहे थे कि अचानक ही मेरे पतिदेव सूटकेस लेकर जबलपुर से आ गये,, वो बैठे और परिचय हुआ,, मैंने चहकते हुए अपना नियुक्ति पत्र उनकी तरफ बढ़ाया,, उन्होंने पढ़ा और उनसे कहा,, ज़ी नहीं,, ये वहां ज्वाइन नहीं कर सकती,,पर क्यों,,बस ऐसे ही,, प्रोफेसर साहब ने बहुत समझाया, हम सबने बहुत कहा,पर वो अपने निर्णय पर अडिग रहे, और वो लेटर उनके हाथ में रख दिया,,

,, उनके जाने के बाद मैं गुस्से से बोली,, कि मैं क्यों नहीं जा सकती,, ये बोले,,देखो, यहां गुंडाराज चलता है,,राह चलती लड़कियों के दुपट्टे खींच लिये जाते हैं ,,,, कालेज में आये दिन मारपीट होती है,, मुझे सब पता है,ऐसी स्थिति में तुम वहां कैसे नौकरी कर सकती हो,,बताओ,,


,देखो,, हमारे पिछड़े गांव में दूर दूर तक कोई लड़की इतना नहीं पढ़ी है,, और नौकरी करना तो दूर की बात है,, पता नहीं कब मेरी मां, तुम्हारी यही नौकरी छुड़वाकर

तुम्हे घर बिठा दे,, मैं अपनी मां का विरोध नहीं कर सकता,,

,, और इस तरह हमारा ये ख्वाब हमेशा के लिए हमारे दिल में दफ़न हो गया,,,

,,,इसके बाद मैंने पी एच डी करने के लिए विषय चुना और मैंने उस पर काम करना भी शुरू कर दिया था,, फिर पतिदेव ने मेरा ट्रान्सफर अपने कार्य स्थल छिंदवाड़ा करवा दिया,, मैं बोली कि, और मेरी पीएचडी,, वो बोले कि चलो मैं जबलपुर से करवा दूंगा,,पर कहां,,, मैं बस अपनी नौकरी और बच्ची पालने में ही रह गई,, वहां तो मां, पिता जी पूरा परिवार था,,

,,आज जब मैं सबके नाम के आगे

डाॅ , फलां, लिखा देखती हूं तो कलेजे में हूक सी उठती है,,काश

,, मैं भी डाॅ सुषमा लिख सकती,,

ये मेरा दूसरा ख्वाब भी अंधेरी गलियों में भटक गया,,

,,,, मेरे स्कूल में नई प्रिंसिपल आईं

, मुझे देख कर बोली,आप तो मुझसे बहुत सीनियर हैं,, आपकी

पदोन्नति नहीं हुई,, मैंने कहा, कहां मैडम,, मैं तो दो बार संभाग बदल चुकी हूं,, जिस जगह जाती हूं, वहीं से उसी साल से मेरी वरिष्ठता सूची में नंबर दर्ज किया जाता है,, और मैं कनिष्ठ हो जाती हूं,,मैं कभी नहीं बन पाऊंगी,, मेरी हसरत कभी पूरी नहीं होगी,,


, मैंने उनसे कहा,, बताइए, मैडम जी,, सरकार ने यह नीति बनाई है,कि जहां पति वहां पत्नी का ट्रान्सफर कर दिया जाये,पति का ट्रान्सफर तो बिना उनके कहे पूरे प्रदेश में किया जाता है,, तो पत्नी तो उनके पीछे जायेगी ही ना,,वो भी अपने खर्च पर,, कोई ट्रान्सफर भत्ता नहीं दिया जाता, फिर वरिष्ठता क्यों मारी जाती है,,

,, मैडम बोली,, हां, है तो ग़लत,पर क्या कर सकते हैं,, उनकी यही पालिसी ही है,,

,,,,इस तरह मेरे ये जिंदगी के ख्वाब कभी ना पूरे हो सके,,इस जन्म में तो नहीं, शाय़द अगले जन्म में हो सके,,पर अगला जनम

किसने देखा,,,

,,अब इसे अपनी तकदीर कहें या

या अपनी दृढ़ता से बात ना कहने की अक्षमता,,जो भी हो,पर सच तो यही है,,

,,,देखे जो  ख्वाब वो अधूरे रह गये,, दिल के अरमां आसूंओं में बह गये,, योग्यता रहते हुए भी हमारे ख्वाब धूल धूसरित हो गये,,

,,,,करमवा बैरी हो गए हमार,,

***तक़दीर का फ़साना जाकर किसे सुनाएं,,

,,इस दिल में जल रही है अरमानों की चिताएं,,

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र,

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित,,

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