वो चार लोग -पूर्णिमा सोनी Moral stories in hindi

वीना अपने छोटे से बेटे नकुल को हाथ पकड़कर घसीटते हुए घर वापस आ रही थी।

दिन भर गली के लड़कों के बीच खेलता रहता है.. बस  उधम मचाना… पढ़ने लिखने में तो मन ही नहीं लगता… बड़ा भाई इतना पढ़ने में होशियार है… तुम्हें तो सिर्फ खेलना..रहता है .. हर समय

और ये क्या बाॅल को इधर उधर छल्ले में डालना

कभी इसकी बालकनी में , कभी किसी के गार्डन में चली जाती है

सबकी शिकायतें सुनो

ये भी कोई खेल हुआ?

जाने क्या मजा आता है?

कोई ढंग का काम नहीं

मम्मी स्कूल की  स्पोर्ट्स टीचर भी कहती हैं कि मैं बहुत अच्छा खेलता हूं.. मुझे और खेलना चाहिए , और प्रैक्टिस करनी चाहिए.. एक दिन मैं बहुत आगे निकल सकता हूं..

खींच कर एक चांटा मारुंगी…  पढ़ोगे लिखोगे नहीं,…कुछ कमाने लायक नहीं बनोगे ,तो बड़े होकर घर कैसे चलाओगे?

हे भगवान! मेरे बेटे बिगड़ गए तो चार लोगों के सामने क्या मुंह दिखाऊंगी?

बड़ी दीदी,… उनका बेटा तो बचपन से ही कितना टाॅपर रहा है… और जिठानी जी की बहन का बेटा, जिसके गुणों की प्रशंसा कर -करके जान खा लेती हैं…. मेरी बहन का बेटा ये…. मेरी बहन का बेटा वो…

और अड़ोसी पड़ोसी?

बगल वाले  संतोष जी… जो किसी के बच्चे के रिजल्ट से पहले कूद पड़ते हैं, रिजल्ट जानने के लिए

कई बार तो घर वालों से पहले ही

उनको क्या जवाब दूंगी?

और सब्जी के ढेले पर…. दूध वाले के पास… कहीं मंदिर – पूजा में जो चार  महिलाएं घेर लेती हैं.. उनका क्या?

आखिर मुझे भी तो बताना होगा मेरा बेटा क्या कर रहा है.?.. कैसा रिजल्ट रहा?…. आगे क्या करेगा,?… वगैरह – वगैरह

ओह नो

अब मुझे ही ख्याल रखना होगा

( अपने मन का खेल) खेलने जाने ना पाए

कान पकड़ कर खींच कर पढ़ने बैठाऊंगी

बिल्कुल बड़े बेटे अमन की तरह…. कभी कुछ कहना नहीं पड़ा..

वैसे कहना पड़ा था

हर समय जाने क्या बैठा टुनटुनाता रहता था….. मतलब बजाता रहता था

कहता था कि मम्मी आप क्या जानों कितना मन लगता है इस संगीत की दुनिया में

कितना मन हल्का हो जाता है

वो तो मैंने गिटार को उठा कर दुछत्ती पर चढ़ाया और समझाया

खबरदार जो उसे ( कभी भी,) हाथ लगाया तो

आखिर मुझे भी समाज में सिर उठा कर चलना है

और बच्चे कुछ बनेंगे तभी ना ये होगा

बताओ जरा अब मैं नहीं ध्यान दूंगी तो कौन देगा?

तुम्हारी टीचर को क्या है.. किसी का बच्चा बने या बिगड़े… बच्चा तो मेरा है ना…. पढ़ने लिखने में मन लगाओ… बड़े भाई को देखो… क्या नंबर ला रहा है..

उधर वीना घर में घुसी और अमन किताबें में  लटका हुआ टेबल पर बैठा मिला

पता नहीं दिन भर इतना आंखें गड़ाए हुए क्या पढ़ता रहता है? मम्मी हर समय मेरे पीछे ही क्यूं पड़ी रहती हैं? मैं भी पढ़ता हूं… पर हां इतना मन नहीं लगता.. तो क्या हुआ? मुझे स्पोर्ट्स पसंद है! सर बोलते हैं कितना अच्छा हाथ चलता है मेरा बाॅलीबाल में…. नकुल मन ही मन बड़बड़ाया

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अमन बेटा ,कब से पढ़ाई कर रहा है… मेरा लाल…. चल दूध पी ले, मैं बादाम,अखरोट काजू सब पीस कर, मिला कर लाई हूं….  कितने पढ़ाई करता है मेरा बच्चानकुल कहां हो तुम?… तुम भी आ जाओ

ये क्या?

अमन तो जमीन पर बेहोश पड़ा है

कहां है?….. जल्दी डाॅक्टर के पास भागिए…..

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सब घर लौट रहे हैं…. वो तो समय पर डाॅक्टर के पास ना चले गए होते  तो..?

डाॅक्टर  साहब ने बताया है,गहरे  अवसाद ( डिप्रेशन) में चला गया था। स्कूल से पूछने पर उन लोगों ने बताया कि बहुत अच्छा तो नहीं है..

अच्छा?

दिन भर तो घुसा रहता है किताबों में

फिर भी अच्छे नंबर क्यूं नहीं लाता?

आज मुझे दिन में ही तारे नज़र आ गाए

मेरे बच्चे को कुछ हो जाता तो?

नहीं नहीं…. अभी भी बहुत देर नहीं हुई है

सुनिए जी, जरा दुछत्ती से गिटार (वापस) उतारा देंगे

अमन गहरी उदासी में बैठा है… मम्मी को कमरे में आते देख बिलख उठा

मम्मी मैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा

नहीं मेरे बच्चे… मैं एक मां की जिम्मेदारियों, अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी

वो गिटार बजाओ…. जो अच्छा लगे वो करो….. सबसे पहले स्वस्थ हो जाओ

गिटार की मधुर स्वर लहरियों में जैसे घर की नकारात्मकता, उदासी कहीं पिघल रही थी…. जो अमन को इस तरह ( नर्वस ब्रेकडाउन )पड़ने को कारण घर में घुल गई थी।

नकुल कहां हो बेटा?

जी मम्मी… बस पढ़ने बैठ रहा हूं

बेटा तुम्हे बाॅलीबाल खेलना पसंद है ना?….. पापा तुम्हें अच्छे स्पोर्ट्स ट्रेनिंग के लिए भेजेंगे…. कुछ भी करना,मन लगाकर

मम्मी मुझे जो पसंद है मैं उसे पूरी मेहनत से  सीखूंगा.. मन लगाकर..

अमन भी म्यूजिक क्लास ज्वाइन करेगा

हां मेरे बच्चों,कुछ भी करो मगर अपनी  बेसिक एजूकेशन अवश्य पूरी करना.. अशिक्षित इंसान की दुनिया में कहीं भी पूछ नहीं, कहीं सम्मान नहीं।

दोनों बच्चे मां पापा में आए इस बदले नजरिए से बहुत खुश थे!

वीना  जी, अपने पति के साथ टी वी पर समाचार लगा कर बैठी थी

इंजीनियरिंग और मेडिकल की तैयारी कर रहे प्रसिद्ध गढ़ कोटा से समाचार था कुछ बच्चों की डिप्रेशन में खुदकुशी  का।

ऐसे दुःख में माता पिता को बस यही लगता है.. काश बच्चे जीवित रहते, सुरक्षित रहते… उनकी इच्छा के विरुद्ध..  समाज को दिखाने भर के लिए, उन्हें अनावश्यक मानसिक दबाव में ना रखा गया होता

गहरे दुःख में डूबे माता पिता रो रोकर बता रहे थे कि कैसे उन्होंने बच्चों की अनिच्छा के विरुद्ध उन्हें इस गहरे कुएं में ढकेला

काश वो इस समाज के उन चार लोगों के कहने का  अनकहा बोझ अपने सिर पर उठाए ना घूम रहे होते

 माता पिता और बच्चे रिश्तों के जिस अटूट बंधन में बंधे होते हैं वो किसी अन्य के साथ नहीं हो सकता! माता पिता से हुई बच्चे अपनी इच्छाएं/ आकांक्षाएं कह सकते है! उन्हें पूरा करने में उनका साथ दें, अपने अनुभवों से उन्हें लाभान्वित अवश्य करें परन्तु अनावश्यक थोपें नहीं।

बच्चे अपनी क्षमता योग्यता और अभिरुचि के अनुसार पढ़ाई और कैरियर का चुनाव करें, इसके लिए माता पिता को उनका सहयोगी बनना चाहिए…. ना कि अनावश्यक अपेक्षाओं के गर्त में उन्हें डुबा देना चाहिए।

आपकी जिंदगी आपकी अपनी है…. उसे अपने अनुसार जिएं

ना कि  अनदेखे अनजाने  तथाकथित चार लोगों के अनुसार

आपकी क्या राय है मित्रों

किन्हीं चार लोगों के दबाव में अपनों की जिंदगी दांव  पर मत लगा दीजिए.. ऐसा काम कीजिए.. ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कीजिए कि चार क्या चालीस लोंग कहे….

ये हैं सही बात!!

# अटूट बंधन, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक – वो चार लोग 

पूर्णिमा सोनी

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