वो बहुत वफादार था – ज्योति अप्रतिम

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श्रीमती सिन्हा के दिलोदिमाग में दो साल पुरानी मूवी फ्लेश बैक में चल रही थी । उन्हें वो दिन याद आ रहा था जब कालू पहली बार भरी बरसात में उनके घर आ पहुँचा था।

रात के  11 बज गए थे । पिछले दो घण्टे से लगातार बारिश हो रही थी और थमने के आसार नहीं थे।

श्रीमती सिन्हा दरवाजे पर ताला लगाने आईं तो देखा एक कुत्ता दरवाजे पर पायदान पर आकर बैठ गया था।अत्यंत निरीह नजरों से श्रीमती सिन्हा को देख रहा था। उनका मन करूणा से भर उठा ।

उन्होंने तुरन्त एक जूट का  थैले के इंतजाम में लग गईं। साथ ही दूध भी गरम किया।

सिन्हा जी ये सब क्रियाकलाप देख रहे थे।

बोले ,ये सब क्या हो रहा है।

श्रीमती सिन्हा बिना कुछ बोले थैला और दूध बाहर ले आईं और उनके पीछे सिन्हा जी भी।बोले ,क्यों परेशान हो रही हो एक गली के कुत्ते के लिए ?

श्रीमती सिन्हा ने विनोद में कहा ,चलो हम भी रात यहीं बिताते हैं।

विस्फारित नेत्रों से बिना कुछ बोले सिन्हा जी ने उनकी ओर प्रश्नवाचक नज़रों से देखा ।

नहीं न!  स्वयं का दर्द महसूस करना जीवित होने का प्रमाण है।लेकिन औरों का दर्द महसूस करना इंसान होने का प्रमाण है। श्रीमती सिन्हा ने कहा।

वे कुत्ते को थैले पर बैठा कर पुचकारते हुए दूध पिलाने में व्यस्त हो गईं।

और उस दिन के बाद  कालू उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था।दिन भर घूम के आने के बाद अपनी स्थायी जगह पर आ जाता था।

और हाँ ! दूध रोटी और मालकिन के घर की रक्षा भी उसी के खाते में आते थे।

अभी थोड़े दिनों से कालू ने अपनी आदतें खराब कर ली थीं।आखिर मांसाहारी जानवर था ।

न जाने कहाँ से खूब सारा  मांस खा कर आता और आकर घर गंदा करने लगा था जो शुध्द शाकाहारी श्रीमती सिन्हा को नागवार गुजर रहा था।

एक तरफ उस जीव से प्रेम लेकिन उस मांसाहार की गंदगी से तो प्रेम नहीं किया जा सकता न!

आखिर श्रीमती सिन्हा ने एक कठोर निर्णय लेते हुए अपने घरेलू नौकर के साथ दूर जंगल में छुड़वा दिया।

अगले चौबीस घंटे बहुत दुःख में बीते श्रीमती सिन्हा के।

लेकिन अगले दिन सुबह उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कालू अपनी जगह पर आ कर सुकून से बैठा हुआ था।

श्रीमती सिन्हा उसे अचरज भरी नज़रों से देखते हुए सोच रही थीं, “आज के समय में छोटी छोटी बातों में ,चंद रुपयों के लिए ,थोड़ी सी ज़मीन के लिए लोग सगे रिश्ते खत्म कर लेते हैं।कुत्ता ही एक ऐसा जानवर है जो आपको खुद से भी ज्यादा प्यार करता है।”

श्रीमती सिन्हा उसे सहला रहीं थीं और उसने अपनी आँखें बंद कर लीं थीं।

ज्योति अप्रतिम

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