मइयत – विजय कुमारी मौर्य

“सेठ दुर्गा दास की मइयत में” …. हजारों की भीड़ थी। क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, सिख, ईसाई सभी की आंखें नम थी? वे थे भी बहुत अच्छे इन्सान। क्या गरीब…. क्या अमीर,  ऊंच-नीच का भेदभाव लेश मात्र का भी न था। सबके दुख सुख में हमेशा खड़े रहते थे।

परिवार में पत्नी सुशीला, अपने नाम के अनुसार सुशील और त्यागमयी नेक महिला थीं।पुत्र राघवेंद्र और सुरेन्द्र अपने पिता के नक्शे कदम पर चलने वाले इल्मदार पुत्र थे। कहने को तो वे हिन्दू थे, मगर बचपन से….. हर धर्म के  भाइयों…. के साथ रहते-रहते खाना-पीना तौर-तरीके सब मिला जुला था। क्या ईद, क्या होली, दीवाली क्रिसमस, बैशाखी सब मिलजुल कर मनाते,। कौन क्या कहता है इसकी परवाह न करते? आज सुशीला को ढाढस बंधाने के लिए हर धर्म की मां-बहने बैठी थीं।

सेठ दुर्गा दास का… क्रिया कर्म कर”  सब लोग आ गये थे। हर एक…. के घर से चाय – पानी नास्ता आ चुका था। परिवार रिस्तेदार सब इकट्ठे थे। न जाने किसकी आवाज उभरी,”हम अपने आप बना लेंगे” …. जिसको खाना है….. इन लोगों के घरों का, खाय! किसने रोका है। जब तक जेठ जी रहे, इनका चमचा… उनकी बटुई में… उनका चमचा…. इनकी बटुई मां, जिन्दगी भर डालत रहे। धर्म नष्ट करके रख दिया, अब हम लोग ई चलने न देंगे। “राघवेंद्र और सुरेन्द्र” की पत्नियों की…. तरफ…. मुखातिब हो बोली।

कहते हैं…ना.,दीवालों के भी कान होते हैं”, कुछ खास तरह की महिलाएं उठकर चल दी। सुशीला अपने दुख को आंचल में दबाए  सिसकियां भर रही थी।” सुनकर बोली, दुल्हिन  आज के दिन… चूल्हा न जली। काहे, जेठ जी…. कौन सा हिन्दू धर्म मानत रहे। अरे! चुप करो तुम लोग, पापा को गुजरे चन्द लम्हां नहीं बीता, घर में क्लेश शुरू हो गया, …. लाओ चाय हमें दे दो हम पीते हैं। इन औरतों के तो नाक न हो तो गू खा लें। सारा महाभारत…. इन्हीं के चलते हुआ है, “कभी न चैन से रहेंगी” …. न रहने देंगी, माँ के पास बैठता हुआ राघवेंद्र बोला।

घर में सुई गिरे तो भी आवाज हो जाय, इतना सन्नाटा छा गया था। “मगर गीली लकड़ी” धीरे-धीरे सुलगती रही। यह बात राघवेंद्र जान चुका था। इसलिए जब सारे रिस्तेदार चले गये तो एक दिन अपने छोटे भाई सुरेन्द्र को बुलाया… और प्यार से बोला”, देखो सुरेन्द्र,! बात अब….. बटवारे की उठेगी” पापा जब तक रहे वो अलग बात थी। तुम हमारे और माँ के साथ रहोगे या किसी और के साथ। इतना सुनकर सुरेन्द्र, बड़े भाई  के….. गले लगकर रोने लगा, और बोला, भइया? पापा की जगह अब आपने ले ली है मैं आप सबके साथ ही रहूंगा। लेकिन क्या तुमने छोटी से पूछा है? भैया, माता-पिता बड़े भाई से बढ़कर छोटी नहीं है।

    स्वरचित

विजय कुमारी मौर्य”विजय”लखनऊ,

 

 

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