विषबेल- पूनम अरोड़ा : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : पाँच महीने हो गए थे शुभि और मानव की शादी को। बहुत  खुश था नवविवाहित युगल ।मानव तो रूप रंग में  बस सामान्य ही था लेकिन शुभि  किसी अप्सरा  से कम नहीं थी।

गौर वर्ण ,तीखे नैन नक्श ,लंबा कद ,छरहरी देहयष्टि,माडर्न लुक ऊपर से  परिष्कृत  रूचि से  चयन  किए गई ड्रेसेज  उसकी सुन्दरता में पूनम का चाँद  बन जाती। एक तरफ तो मानव उसको पाकर  गर्व से फूला नहीं  समाता ,दूसरी ओर वह उसके लिए जरूरत से ज्यादा  पजेसिव होता जा रहा था। कोई उसकी खूबसूरती की ज्यादा तारीफ कर देता तो कुलबुलाहट सुगबुगाहट होने लगती उसके मन में ।

इन्हीं  दिनों  मानव का चचेरा भाई पीयूष बंगलौर में  चार माह की इंटर्नशिप  के लिए आया । ये लोग यहीं बंगलौर में  थे तो किराए पर रहने की बजाए इन्हीं  के पास ठहरने की व्यवस्था  हुई ।बंगलौर में अपने आत्मीय स्वजन को पाकर पीयूष के साथ साथ  मानव और शुचि भी बहुत खुश थे।

रौनक हो गई  थी घर में ।साथ खाते ,बैठते ,गप्पें  मारते ,वीकेन्ड में  साथ घूमने जाते । मानव और पीयूष तो साथ ही पले बढ़े थे लेकिन शुभि के साथ उसकी गजब की बांडिग  देखकर हैरान था मानव ।वो उससे ज्यादा शुभि का कजिन लगता था,उससे ज्यादा गप्पें  उसके साथ मारता ,अपनी ऑफिस की बातें  शेयर करना ,अपनी फेवरेट डिश कह कह कर उससे बनवाना,उसकी खूबसूरती और कुकिंग  की तारीफ में  कसीदे पढ़ना,भाभी ये !!भाभी वो कहकर उसके साथ मस्ती करना।

शुरू शुरू में तो मानव भी उनकी मस्ती -मजाक में  शरीक होता लेकिन धीरे धीरे उसके लिए यह सब असहज होने लगा ।पीयूष मानव से पहले ही घर आ जाता था इसलिए  शुभि और वो इकट्ठे  ज्यादा टाइम स्पेंड करते ।जब वो आता तो उनकी खिलखिलाहट ,चहचहाहट के स्वर उसे बाहर से ही सुनाई पड़ जाते ।

धीरे धीरे  ये आवाजें  कब उसके मन में आक्रोश पैदा करने लगीं  ,कब उनके हँसी मजाक  उसको जहर लगने लगे ,कब देवर भाभी का  स्नेहिल व्यवहार  उसके “शक” के दायरे  में  आ गया ,कब  पीयूष का अस्तित्व और शुभि का निश्छल स्नेह  उसके लिए असहनीय  हो गया ,उसे इसका  एहसास भी न हो पाया ।
“शक” के छोटे से बीज का अंकुरण पल्लवित ,फलित होकर  एक “विषबेल”बन गया था जो उन दोनों  से ज्यादा तो फिलहाल उसी के अंतर्मन को विषाक्त कर रहा था।

इसका प्रभाव उसके स्वभाव ,घर के वातावरण,दाम्पत्य जीवन और छोटी बड़ी खुशियों पर पड़ रहा था ।वह पीयूष से भी खिंचा खिंचा रहता और शुभि से तो सीधे मुँह बात ही न करता ।बातों में ,आचरण में  ,तौर तरीकों  में  उसकी बेरूखी झलकती ,छोटी छोटी बातों  में  खीजता ,बाहर घूमने का प्रोग्राम  होता तो कोई  न कोई  अड़चन डाल देता ।खाने की टेबल पर भी पहले कितनी हँसी ठहाके गूँजते थे अब  दबे दबे अस्फुट स्वर ही भिनभिनाते।

पीयूष और शुभि उसके इस बदले व्यवहार से अचंभित थे,स्तंभित थे ,व्यथित थे ।उनके मन तो कोई “चोर” था नहीं  जो उन्हें उसके मन के भावों की आशंका होती ।वैसे तो मानव ने भी कभी उनको अवांछनीय स्थिति में  नहीं  देखा था उसका “शक”0 सर्वथा  निराधार था लेकिन कहते हैं  ना कि “अहम और वहम दोनों ही दीमक होते हैं रिश्तों  के लिए। एक बार लग जाएँ  तो खोखला कर के ही छोड़ते हैं ।”

ऐसे ही दीमक लगती जा रही थी  दोनों भाइयों के  चिर मधुर रिश्तों पर ,पति पत्नी  के रूमानी रूहानी एहसासों पर । एक ही बिस्तर पर गजों की दूरियाँ सिमट आईं  थीं।

पीयूष  और शुभि ने बार बार उसके इस बदले आचरण का कारण पूछा अब उसके पास कोई सबूत तो था नहीं  और शक के आधार पर वो उन्हें  ब्लेम नहीं  कर सकता था इसलिए बस ऑफिस में  ज्यादा काम और अतिरिक्त  थकान का बहाना बना देता ।

शुभि के मन में  एक दो बार ख्याल आया भी कि कहीं इसका कारण पीयूष तो नहीं  लेकिन फिर उसे लगा कि मानव इतना पढ़ा लिखा होकर इतना संकीर्ण विचारों  और संकुचित  मानसिकता  का नहीं हो सकता ।यह सोचकर वो भी ऑफिस की ही टेंशन मानकर मन को बहला लेती लेकिन ये तो है कि वातावरण बोझिल होता जा रहा था ।

बोझिलता कम करने के लिए वो जबरदस्ती  कहीं  घूमने के लिए ले भी चलती तो वो उनसे अलग थलग ही रहता और फिर जब वो मस्ती करते तो बैठ के कुढ़ता जिससे कि घूमने फिरने का सारा मजा किरकिरा हो जाता । अब पीयूष को लगने लगा था कि शायद भाई की “प्राइवेसी” उसकी वजह से बाधित हो रही है हो सकता है उनके खिंचाव का यही कारण हो ।

यही सोचकर उसने मन ही मन पी जी में  शिफ्ट होने का निर्णय लिया ।इस वीकेन्ड में उसने घर जाना था क्यों कि  रक्षाबंधन था और शनिवार रविवार सहित तीन छुट्टियाँ भी एक साथ आ रहीं  थीं । आकर वो पी- जी में  शिफ्ट हो जाएगा ।

अभी उसने मानव और शुभि को भी नहीं  बताया था ।

और दूसरी तरफ मानव के मन की विषबेल इतनी फैल चुकी थी कि उसने अपने आसपास की सारी सकारात्मकता को आवृत कर लिया था । वो औचित्य -अनौचित्य कुछ न समझकर बस अपने शक्की दिमाग को तरजीह दे रहा था और इसी कारण उसने शुभि को तलाक देने का मन बना लिया था । इसी संदर्भ  में  उसने एक वकील से भी बात कर ली थी लेकिन वह पीयूष के सामने सीन क्रियेट नहीं  करना चाहता था इसलिए  वो भी पीयूष के घर जाने का ही इंतजार कर रहा था।

शनिवार को सुबह की उसकी बस थी और रक्षाबंधन भी उसी दिन था। उसने बैग पहले ही पैक कर रखा था ।मानव भी जल्दी नहाने चला गया कि पीयूष को बस पर बिठाने जाना था । जब वो नहाकर तैय्यार होकर निकला तो  ड्राइंग रूम में  दोनों की रूंधे ,भरे गले की आवाज से ठिठक गया ।

मन का शक यकीन में  बदल गया कि “दो तीन दिन एक दूसरे से बिछुड़ने के गम में  टसुए बहाए जा रहे होंगे।”वो चुपचाप अगली प्रतिक्रिया  की प्रतीक्षा में  वहीं  दरवाजे के पीछे खड़ा रहा कि रंगे हाथों  पकड़  सकूँ ।तभी पीयूष की आवाज आई “भाभी मेरी छोटी बहन तो है लेकिन हमेशा से मेरे मन में  एक बड़ी  बहन की चाह थी जो कि माँ  की तरह केयर कर सके और और गार्जियन  सम निर्देशन  कर सके और जिससे  मित्र की तरह हर बात शेयर कर सकूँ ।

ये तीनों  रूप मुझे आप में  दिखे और मैं  जानता हूँ  कि आप भी इकलौती संतान  हो आप के जीवन में  भी एक भाई का अभाव है और मेरे  जैसा गुड लुकिंग ,स्मार्ट भाई तो चिराग लेकर ढूंढने से भी  नहीं मिलेगा तो क्यों  न हम आज से रिश्ता बदल लें ।आप आज से मेरी प्यारी “सिस”हो और कैसा लगेगा जब मानव को मैं  भइया की बजाए जीजू बोलूंगा तो –!!!उसके ऐसा कहने पर  वो दोनों  जोर से हँस पड़े  

औरररर दरवाजे के पीछे खड़े मानव को लग रहा था कि —- काशशशश धरती फट जाए और वह उसमें  समा जाए 

पूनम अरोड़ा

#शक

1 thought on “विषबेल- पूनम अरोड़ा : Moral stories in hindi”

  1. दो चार दिन तक ठीक है लेकिन बहोत दिन के लिए कहीं भी रहना नहीं चाहिए जहां जवान बेटी बहु हो।

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