वटवृक्ष – डॉ  संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

रामदीन जब से रिटायर हुए थे,बहुत खुश थे, कितनी ही योजनाएं बना रखीं थीं उन्होंने इस समय के लिए,जब काम से  फ्री हो जाऊंगा,सब दोस्तों के साथ एक बार वैष्णो देवी की यात्रा पर जरूर जाऊंगा।

बेटा अजय चेताता उन्हें,”पिताजी!इस उम्र में चढ़ाई नहीं कर पाएंगे,छोड़िए!कहीं और घूम आइए आप।”

पर वो हंसकर कहते,”तू फिक्र मत कर बेटा,वहां पालकियां भी चलती हैं और अब तो रोपवे सेवा भी है,कोई परेशानी आएगी तो हम वो इस्तेमाल करेंगे। हमारे साथ दीनू है, वो बहुत होशियार है,वो सब इंतजाम कर लेगा।

उनकी बहू रेनू मुंह दबा के चुपचाप हंसती,बूढ़े हो गए पर हसरते नहीं मिटी बुढ़ऊ की,आज यहां जाना है,कल कहीं और जाना होगा।

रामदीन को अफसोस जरूर होता और याद आती अपनी घरवाली सुमन की जो हमेशा उनके साथ घूमने जाने का इंतजार करती ही चल बसी थी इस दुनिया से।सारी जिंदगी घर गृहस्थी के चक्कर में दो पैसे बचाने के जुगाड में लगा रहे थे ,किसी तरह इच्छाएं काट कर ये एकमात्र घर ही बना पाया था जहां वो,उसका बेटा,बहु और पोता शिवम रहते थे।

जब तक नौकरी पर जाते रहे,एक मुश्त सैलरी लाकर अपनी बहू रेनू के हाथ में थमाते रहे थे वो, और वो शांत रहती लेकिन अब उनकी नाममात्र की पेंशन थी जो वो खुद के खर्चों के लिए रख लेते।

उनके बेटे अजय को इनसे कोई शिकायत नहीं थी,अपना जेबखर्च तो निकाल हो लेते हैं पिताजी,हर समय उन्हें मेरे आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता लेकिन बहू रेनू को ये बात बहुत नागवार गुजरती।

अक्सर वो अजय से उलझ जाती और वो उसे डांटते हुए कह देता,अपनी औकात में रहना सीखो रेणु!इतने बड़े बोल मत बोलो,कल को हमें भी बूढ़ा होना है,हमारा बच्चा सब सीख रहा है हमे देखकर।

रेणु भड़क जाती,मुझे,मेरे बेटे पर पूरा विश्वास है वो हमारे साथ बहुत अच्छा व्यवहार करेगा,हम उसके लिए इतनी बड़ी जायदाद बनाकर छोड़ेंगे,हम उसकी शादी पर उसकी बहू को गहनों से लाद देंगे और एक मुझे देखो,सिर से पांव तक नंगी घूमती हूं,मजाल है तुम्हारे मां बाप ने एक ढंग का गहना पहनाया हो।ये चार ग्राम के कुंडल और ढाई ग्राम की अंगूठी…उन्ह्ह्ह…!

छोड़ो भी उस बात को बरसों बीत गए,क्यूं दिल मैला करती हो?अब किस चीज की कमी है तुम्हें,ये मकान भी पिताजी ने ही बनवाया है…।

ये मकान??वो हंसी,माचिस का डिब्बा है ये तो?इसे छोड़ हम ढंग का मकान लेंगे लेकिन पहले ये तो जाएं कहीं,वो बुदबुदाई हौले से।

क्या बोले जा रही हो दिल ही दिल में?वो हंसा।जानता था,रेनू दिल की इतनी बुरी नहीं शायद,बस मुंह की बड़बोला है।

पर वो नहीं जानता था अपनी पत्नी को जो सुबह शाम अब,उसके पिता के पीछे ही पड़ने लगी थी।उसके पिताजी को खुजली हो गई थी और रेनू ने शिवम को उनके आस पास जाने से रोक दिया था ये कहकर, कि छोटा बच्चा है,कहीं उसे ये बीमारी ना लग जाए।

पहली बार रामदीन चौंके थे,ये कोई छूत की बीमारी है जो बच्चे को लग जायेगी,शायद इसे अब मैं भारी लगने लगा हूं,उनकी आंखें डबडबा गई और उनकी पत्नी बहुत याद आई उस दिन उन्हें।जब तक जीई वो, उसके लिए कुछ न कर सका,सारा कुछ जोड़ जाड़ कर ये मकान बनाया और इस नाशुक्री बहू को सौंप दिया।

उनका मन उचाट रहने लगा था उस दिन के बाद से।अजय ने उन्हें ऐसे देखा तो कहा,पिताजी! कुछ दिन कहीं घूम आइए।मन लग जायेगा।

जल्दी ही कुछ दिनो बाद,हरिद्वार में कुंभ का मेला लगने वाला था।अजय के पिता ने अपनी इच्छा जताई…एक बार मरने से पहले क्यों न कुंभ ही कर लूं?

अजय ने कहा,पिताजी!वहां बहुत भीड़ होती है,कहीं आप परेशान न हो जाएं?धक्का मुक्की भी हो जाती है,आपका वहां जाना ठीक न रहेगा।

लेकिन रामदीन का वहां जाने का बहुत मन था।भगवान के घर से न जाने कब बुलावा आ जाए,उससे पहले हरिद्वार होकर आना चाहते थे।

रेनू को अचानक एक खतरनाक विचार दिमाग में आया और उसने मौका देखकर अजय को अपने दिल की बात कह डाली।

सुनो!सोच रही हूं,क्यों न तुम इस बार पिताजी को साथ ले जाकर कुंभ करा आओ।

अजय चौंका,ये ,ऐसा कह रही है?बड़ी खुशी की बात है,देर आई,दुरुस्त आई।

तुम भी साथ चलोगी?उसने पूछा।

नहीं, मै शिवम को लेकर अपनी मां के हो आऊंगी कुछ दिन,वो बोली।

अजय अभी दिल में खुश ही हो रहा था,रेनू ने बम विस्फोट किया,मैंने सुना है,कुंभ के मेले में अक्सर भगदड़ मच जाती है,

हां तो…इस वजह से कोई वहां जाना तो नहीं छोड़ता?अजय असमंजस में था,कहना क्या चाह रही हो तुम,साफ साफ कहो।

क्यों न पिताजी को तुम वहीं छोड़ आओ,उनका मन भी नहीं लगता यहां,साधु संत बन जायेंगे कुछ दिन में और बाकी जीवन भजन पूजन में निकाल देंगे। वो धृष्टता से बोली।

क्या?? अजय बुरी तरह बौखला गया,दिमाग तो ठीक है तुम्हारा?पिताजी इस घर के वटवृक्ष हैं,जब वो नहीं रहेंगे,तुम्हें समझ आएगा वो क्या थे? तुम्हारी सुंदर सूरत के पीछे इतना काला दिमाग है ,नहीं जानता था मै।

रेनू बुरा सा मुंह बनाकर उठ कर चली गई। उस दिन के बाद,दोनो पति पत्नी में एक दीवार से खिंच गई और बहुत कम बातचीत होती दोनो की।

रामदीन तो बहुत खुश थे कि उनका बेटा उनके साथ जायेगा।जब वो लोग जाने लगे,शिवम भी रो कर जिद करने लगा तो उन्हें उसेभी अपने साथ ले जाना पड़ा।

अब रेनू घबराई,छोटा बच्चा है,कहीं कोई ऊंच नीच न हो जाए लेकिन ससुर और पति ने आश्वस्त किया कि वो उसका ध्यान रखेंगे।

तीनों चले गए।खूब घूमे फिरे,मस्ती की।अचानक एक दिन, नहान के बाद किन्हीं दो समूह में झगड़ा गया,बात तू तू मैं मैं से शुरू हुई और बढ़ती गई,भीड़ इतनी थी कि तिल रखने की भी जगह नहीं थी।

अजय ने पिताजी और शिवम का हाथ कस के पकड़ रखा था,उसके मन में अनहोनी की आशंका घूमने लगी और वो भगवान को याद करने लगा। पत्नी की कही बात ध्यान आई और वो कांप गया।हाथ जोड़कर भगवान से माफी मांगी कि उसकी नादानी को क्षमा कर दें और उन्हें ऐसा कोई दंड न दें।

तभी भीड़ का रेला आया और उसके हाथों से पिताजी और शिवम दोनो का ही हाथ छूट गया और वो लोगों के साथ घिसटता हुआ दूर जा पहुंचा।

जब उसे सुध आई तो न पिताजी ही पास थे और न छोटा शिवम,अजय तो मूर्छित होने को आया,पूरी ताकत से चिल्लाया…पिताजी,शिवम!लेकिन वहां की चीख पुकार में उसकी आवाज खो गई।

उसे लगा,भगवान ने उन्हें दंड दे ही दिया,उसकी पत्नी ने बुरी बात सोची,सुनी तो उसने भी थी और उसे कोई दंड भी नहीं दिया,आज भगवान ने उसके पिता के साथ उसका बच्चा भी उन दोनो से छीन लिया।

वो बेहोश हो कर गिर ही जाता कि किसी ने कहा,देखो!वहां आपका बच्चा है शायद?

अजय झपट के उधर दौड़ा,देखा! शिवम रो रहा था और उसके ऊपर उसके पिता अधमरी हालत में अंतिम सांस गिन रहे थे।उनके ऊपर लोग गुजर गए थे और उन्हें बुरी तरह कुचल गए थे लेकिन उन्होंने नन्हे शिवम को अपने नीचे सुरक्षित छुपा लिया था।

अजय को देखते ही वो बड़ी मुश्किल से इतना ही बोल पाए,बेटा!भगवान ने मुझे यहां नहाने का फल दे दिया, मैं अपने लाडले पोते की जीवन रक्षा कर पाया,ये कहते ही उन्होंने आखिरी सांस ली।

अजय बिलख बिलख के रो पड़ा,उसके पिताजी चले गए थे,वो सच में वटवृक्ष ही थे और उसके बच्चे को बचा गए थे।

दोस्तों!बूढ़े मां बाप लोगों को बोझ लगने लगते हैं जो पाप समान बात है,जिन्होंने अपनी पूरी जवानी पांच छ बच्चों को पालने पोसने में लगा दी,उनके बच्चे,उन दो निरीह प्राणियों को नहीं संभाल पाते,उनकी बातें उन्हें टोकाटाकी लगती हैं जो सर्वथा अनुचित है।हरेक को अपनी औकात ध्यान रखनी चाहिए और नहीं भूलना चाहिए कि कल को उनकी संतान भी उनके साथ वही व्यवहार दोहराएगी।

डॉ  संगीता अग्रवाल

3 thoughts on “वटवृक्ष – डॉ  संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi”

  1. आगामी पीढ़ियां इसे ध्यान से पढेंगे तो कुछ पुण्य प्राप्त करेंगें

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