तुम्हारी तो कोई औकात ही नहीं है – अर्चना खंडेलवाल  : Moral stories in hindi

“रवि, परसों मेरी छोटी बहन की सगाई हो रही है, मम्मी-पापा ने आपको फोन भी किया था, तो मै उसे शादी में कुछ अच्छा सा उपहार देना चाहती हूं, मै सोच रही थी ,एक ही बहन है तो मै उसके लिए सोने के झूमके बनवा लेती हूं, आप मुझे उसके लिए  रूपये दे दीजिए।” सुधा ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा।

छपाक! की आवाज के साथ पानी का पूरा गिलास सुधा के मुंह को भिगो गया था। 

“सोने के झूमके ! तेरी बहन की औकात भी है कि वो सोने के झूमके पहनेगी और तेरी इतनी औकात है क्या तू उसे सोने के झूमके उपहार में देगी?” महंगाई देखी है, इस जमाने में सोना वो भी उपहार में ।” रवि कुटिलता से हंसने लगा।

सुधा एक बार को तो सुन्न रह गई, लेकिन अपनी सारी हिम्मत समेटकर वो बोली, “औकात का तो तुम नाम ही मत लो, औकात तो तुम्हारी भी नहीं थी कि मेरे जैसी लडकी तुम्हें मिले, मेरे मायके वालों ने तुम्हें हर चीज औकात से ज्यादा दी है, तुम्हारी तो मोटरसाइकिल की भी औकात नहीं थी, आखिर करते क्या हो ? बैंक में एक छोटी सी नौकरी ही तो करते हो, एक पिता को इतना मजबूर कर दिया कि उससे जबरदस्ती कार दहेज में मांग ली और आज तुम्हारे पास उस कार में भरने के लिए पेट्रोल तक के पैसे नहीं हैं, तो औकात की तो बात ही मत करो।”

झूठ बोलकर शादी करना और फिर फेरे अधुरे छोड़कर कार की डिमांड करना, ऐसे काम तो वो ही लोग करते हैं, जिनकी औकात गिरी हुई होती है।

“जब तुम्हारी बहन सोने के झूमके मांग सकती है तो मेरी बहन को हम उपहार क्यों नहीं दे सकते हैं? हर समय मेरे मायके वालों से मांगना ही सही नहीं है, कभी-कभी देना भी पड़ता है।”

तभी सुधा की सास आ जाती है, ‘सुधा तू ज्यादा ही बोल रही है, अपनी औकात में रहा कर, तेरे बाप ने ऐसा भी क्या अनोखा कर दिया है, हर बाप अपनी बेटी को दहेज देता है, ये तो दुनिया की ही रीत है, हमने भी अपनी बेटियों को दिया है, ये लेन-देन का रिवाज तो सदियों से ही चला आ रहा है।” रीमा जी गुस्से में बोलती है।

“हां, मम्मी सुधा की जबान ज्यादा ही चलने लगी है, आजकल कुछ ज्यादा ही बोलने लगी है, इसे इसके मायके छोड़ आता हूं, बहुत ज्यादा सिर पर चढ़ गई है, चार दिन मायके बैठेगी तो जमीन पर आ जायेगी, रवि ने तेज आवाज में कहा।

आज सुधा ने मन मजबूत कर लिया था, जब से शादी होकर आई है, उसने काफी शारीरिक और मानसिक यंत्रणा सही थी, पर वो अपनी छोटी बहन की शादी सही घर में हो जाएं, बस उसके लिए रूकी हुई थी, आज भी वो चुप रही, और उसने शादी में मिले कुछ रूपयों से और पहले की बचत से बहन को शादी का उपहार देने का निश्चय किया।

सुधा की खामोशी को रवि और रीमा जी ने उसकी कमजोरी समझ लिया, शादी अच्छे से निपट गई, सुधा ने चुपके से बहन को झूमके उपहार में दे दिए, शादी के दो दिन बाद अधिकांश काम निपट गया, रवि और रीमा जी अपने घर जा चुके थे।

चार-पांच दिन बाद रवि का फोन आया कि “सुधा अब घर आ भी जाओ, मेरी मम्मी कब तक रसोई में खटती रहेगी? मायके वालों की बहुत सेवा कर ली, कल सुबह तक आ जाना, वरना फिर वहीं रहना, मुझे तेरी कोई जरूरत नहीं है, रवि ने धमकी देते हुए कहा।

सुधा ने अपने मम्मी-पापा को सारी स्थिति बताई और अभी शादी को एक साल ही हुआ था, सुधा ने फैसला किया कि वो वापस ससुराल नहीं जायेगी और उसे रवि जैसे इंसान से तलाक चाहिए, अपनी बेटी का दर्द सुनकर सुधा के मम्मी -पापा ने उसका साथ देने का निश्चय किया।

“मै वापस नहीं आ रही हूं, मैंने तलाक के पेपर भेज दिए हैं, मै तुम जैसे इंसान के साथ अपनी पूरी जिंदगी नहीं बीता सकती हूं।”सुधा की आवाज सुनकर रवि के होश उड़ गए।

रवि को तलाक के पेपर मिल गए, कुछ महीनों के बाद

 ही सुधा को तलाक मिल गया।

“अरे!! ये कार और दहेज का सामान हम नहीं देंगे, रवि ने विरोध व्यक्त किया, पर सारा सामान और कार वापस सुधा के परिवार वालों को सौंप दिया गया।

सुधा ने अपनी अधुरी पढ़ाई जारी रखी और बैंक की प्रतियोगी परीक्षा दी, और वो बैंक की मैनेजर बन गई, उसकी पहली पोस्टिंग उसी बैंक में हुई जहां रवि काम करता था।

सुधा को वहां देखकर रवि हैरान था, आपको मैनेजर ने अपने केबिन में बुलाया है, कानों में आवाज पड़ते ही रवि तुरंत केबिन में गया।

“ये सब क्या है? तुमने बैंक का कोई भी काम ढंग से नहीं किया है, सब पेपर अधुरे है और आंकड़े भी कागजों पर पूरे नहीं है, मेरे बैंक में तुम जैसों के लिए कोई जगह नहीं है।”

तुमने मुझे तलाक दे दिया, सारा सामान और कार भी वापस ले ली है, अब ये नौकरी तो छोड़ दो, रवि ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।

लेकिन सुधा अपना काम ईमानदारी से कर रही थी, रवि के काम में काफी गड़बड़ियां पाई गई थी, तो उसे बैंक से निकाल दिया गया। 

“मै तुम्हे देख लूंगा, तुमने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी,  रवि चिल्लाते हुए बोला।

“बस करो रवि, अब तुम्हारी कोई औकात ही नहीं है, 

तुम कुछ नहीं कर सकते हो, और रवि मुंह लटकाकर बाहर चला गया।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

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