वजन – पिंकी नारंग

सुमित्रा के पाँव जमीं पर नही पड़ रहे थे,लग रहा था मानो शरीर के हर अंग से असंख्य पंख निकल निकल आए होऔर वो रुई जैसा हल्की हो कर बादलों में उड़ रही हो।

आकाश को छूने जैसा अनुभव था,बिल्कुल पक्षियों जैसा।बंद आँखो से इस सपने को देखती तो भी ड़र जाती की कभी पूरा होगा या नही पर आज खुली आँखो से इसे पूरा होते देख ऐसा अनुभव लाज़िमी था।

उसे कभी लगा नही की उसके नाम के साथ उसकी किताब आएगी जो साहित्य जगत में उसे एक पहचान दिलाएगी।

आज उसका वो सपना पूरा हुआ था पर बिज़्नेस पति महिंद्रू को उसका यूँ लिखना कभी पसन्द नही था।साहित्य जैसे शब्द से उसका दूर दूर तक वास्ता नही था।उसे तो ये काग़ज़ काले करने जैसी प्रक्रिया लगती।सुमित्रा को वो दिन याद आ गया जब गाँधी जयंती पर गाँधी जी पर लिखी उसकीकविता को प्रथम पुरस्कार मिला था ,उसने खुश होते हुए जब अपनी कविता महेंद्रू को सुनानी चाही,तो उसने हँसते हुएनोट पर गाँधी जी की तस्वीर दिखाते हुए कहा था”ये यहाँ अच्छे लगते है ,कविता में नही।”

कुछ वक़्त पहले जब सामने से आकर नामी पब्लिशिंग हाउस ने उसकी लिखी किताब छापने की ऑफ़र दी तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा।उसने महिंद्रू को भी कुछ नही बताया वो उसे सर्प्राइज़ करना चाहती थी।कौन सा कवर फ़ोटो होगा?कौन सा कलर होगा?बुक लॉंच किस लेवल पर होगा?तमाम ताम झाम के बाद किताब की पहली प्रति उसके हाथ में थी।झिलमिलाती आँखो से उसने उसे अपने सीने से लगा रखा था ,बिल्कुल ऐसे जैसे कोई माँ पहली बार अपने बच्चे को देख लिपट जाती है।

वो घर के सारे दरवाज़े खोल अधीरता से महेंद्रू का इंतज़ार कर रही थी।महेंद्रू की ग़ुस्से वाली आवाज़ सुन कर वो अपनी सपनो की दुनिया से बाहर आयी”कौन से सपनो में गुम हो,पूरा घर खुला हुआ है,कोई चोर……”सुमित्रा ने उसके होंटो पर उँगली रखते हुए कहा”कम से कम आज के दिन तो ये अशुभ बातें ना कहें।”

महेंद्रू के दोनो हाथ मिलाते हुए अपनी पहली किताब सुमित्रा ने उसके हाथों में रख दी।ये क्या है?मना किया था ना तुम्हें ये सब करने के लिए।चलो खुश हो जाओ कहते हुए हरे हरे नोटो से किताब के कवर को पूरी तरह ढक दिया।सुमित्रा को कुछ दिखाई नही दे रहा था ना किताब ,ना उसका नाम कुछ भी तो नही।अचानक से वो हल्की सी किताब जिसके साथ सुमित्रा हवा में उड़ रही थी,नोटो के वजन से इतनी भारी हो गयी,उसका वजन ना सम्भालने की वजह सेकिताब समेत सोफ़े पर गिर सी गयी।

सुमित्रा ने अपने टूटे हुए दिल के टुकड़ों को समेटते हुए अपनी किताब माथे से लगाते हुए मन ही मन अपने आप से वादा किया “वो कभी अपने सपनो से समझौता नही करेंगी।

एक दिन साहित्य जगत में इतना नाम कमाएगीकी उसके नाम का वजन महेंद्रू के पैसों के वजन से बहुत ज़्यादा होगा।

#समझौता 

मौलिक

पिंकी नारंग

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