अमूल्य उपहार” – उषा भारद्वाज

  वह हिमांशु और हिना को बड़ी तल्लीनता से पढ़ा रही थी। तभी खट  की आवाज से उसकी नजरें उठी ,रिचा के सामने हिमांशु की दादी एक ट्रे में चाय और प्लेट में पकोड़ियां लेकर आई थीं, और  सामने मेज पर रखते हुए बोली – बेटा पहले खा लो फिर पढ़ाना ।

 रिचा  शालीनता पूर्वक बोली- जी मौसी (जब पहले दिन रिचा ट्यूशन  पढ़ाने आई उनको आंटी बोला था, तभी वह बोली कि मुझे सब मौसी कहते हैं इसलिए तुम भी मुझे मौसी ही बोला करो। रिचा को उनकी ये अपनेपन की बात बहुत अच्छी लगी थी और तब से वह उनको मौसी ही कहती थी)  सवाल समझा दूं, फिर लेती हूं चाय । फिर बच्चों को पढ़ाने में लग गई।  

   बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हुए 6 महीने हो गये थे। मौसी रोज ही कुछ नया बनाती और चाय के साथ लेकर आती, फिर वही बैठ जाती और जितनी देर रिचा पढ़ाती थी वह चुपचाप वहीं बैठी सुनती रहती । हिमांशु के मम्मी पापा सुबह दस बजे तक आफ़िस चले जाते थे । बच्चों के स्कूल से आने के बाद से मौसी ही उनकी देखभाल करती थी।

    एक दिन पढ़ाने के बाद जब वो घर जाने लगी तभी मौसी बोली-  बेटा जरा मेरा फोन मिला दो। मैं गिनती नहीं पहचान पाती हूं, गलत लग जाता है।”

 रिचा ने फोन लगा दिया और बच्चों को कुछ समझाने लगी इतनी देर में मौसी ने बात करके फोन रख दिया।  रिचा ने हंसते हुए कहा- मौसी आप भी पढ़ लिया करिए । और कहते – कहते रिचा गेट से बाहर निकल गयी।                       

 

             दूसरे दिन जब वह अपने समय पर ट्यूशन पढ़ाने के लिए उन बच्चों के घर पहुंची , तो देखा मौसी सामने बैठी थीं।  उसके आते ही बोली – रिचा बेटा क्या तुम सच में मुझे पढाओगी ?

 मौसी की यह बात सुनकर रिचा आश्चर्य में पड़ गई। उसने हंसते हुए कहा – “अरे मौसी मैंने मजाक किया था।” 



मौसी ने भी मुस्कुराते हुए जवाब दिया-  लेकिन मैंने उसको गंभीरता से लिया है बेटा। अब बताओ, क्या तुम मुझे पढ़ा पाओगी?  मौसी की यह बात सुनकर रिचा के चेहरे पर खुशी के भाव आ गये। 

वह मुस्कुराते हुए बोली- ” क्यों नहीं मौसी अगर आप पढ़ना चाहती हैं तो मैं जरूर पढ़ाऊंगी ।”

रिचा की बात सुनकर मौसी के चेहरे पर ऐसी खुशी आई जैसे उनको बहुत कीमती वस्तु प्राप्त हो गई हो। उनके चेहरे पर बच्चों जैसी चमक आ गई । उनका चेहरा खुशी से दमक उठा था उन्होंने फिर कहा – बेटा मैं तुमको परेशान नहीं करूंगी जैसे तुम हिमांशु और हिना को पढ़ाती हो उसी  समय में  हमको भी  पढ़ाना । उसकी फीस अलग से मैं दूंगी।”

उनकी यह बात सुनकर रिचा भावुक हो गयी। वह बोली -“मौसी फीस के लिए आपको नहीं पढाऊंगी । मैं अपनी खुशी के लिए आपको पढ़ाऊंगी।”

 फिर बेटा मैं रामायण  और कहानियां भी पढ़ सकूंगी । मौसी की आवाज में बच्चों जैसा उतावलापन और भोलापन झलक रहा था ।” 

    “हां मौसी आप सब पढ़ सकेंगी ।” रिचा ने उनकी तरफ  प्यार भरी नजरों से देखते हुए कहा।

    दूसरे दिन से मौसी भी हिमांशु हिना के साथ एक कॉपी और पेन लेकर बैठने लगी। लेकिन पढ़ने के साथ-साथ मौसी चाय और नाश्ता बनाना नहीं भूलती थीं। रिचा के आने से पहले ही वो चाए और नाश्ता बना लेती थी ।  निशा के पहुंचते ही  सामने मेज पर रख देती थी । रिचा मना करती तो कहती- “तुम गुरु हो तुम्हारी सेवा करना हमारा धर्म है ।        

 



       धीरे-धीरे समय बीतने लगा और मौसी एक अच्छे विद्यार्थी की तरह एकाग्र चित्त होकर लिखना पढ़ना सीखने लगीं। रिचा उनके लिए वर्णमाला और मात्रा वाली  किताब भी ले आई थी। दोनों बच्चे अपनी दादी से बहुत प्यार करते थे वह भी चाहते थे कि उनकी दादी  भी उनके दोस्त की दादी की तरह पढ़ी लिखी हो। उन्होंने प्रॉमिस किया था जब तक दादी ठीक से पढ़ना लिखना नहीं सीख जाती, तब तक वो यह बात किसी को भी नहीं बताएंगे। रिचा जो भी काम करने को देती , मौसी अपने बहू – बेटे के ऑफिस जाने के बाद उसको पूरा कर लेती  । कुछ नहीं पढ़ पाती तो उस पर निशान लगा कर रखती । रिचा के आते ही उस से पूछती । कभी-कभी हिमांशु और हिना से भी पूछ लेती । दोनों बच्चे उनको बताकर बड़े खुश होते । मौसी को पूरी वर्णमाला आ गई थी पढ़  और लिख भी लेती थीं। पहले बहुत आड़े तिरछे अक्षर बनाए। खुद पर हंसती थीं साथ साथ में बच्चे भी हंसते ।  रिचा ने मात्राओं का ज्ञान कराना शुरू किया पहले तो मौसी को बहुत दिक्कत हुई छोटी बड़ी ‘ई ‘छोटा बड़ा ‘ऊ’  दोनों को एक ही जैसा समझती।

 लेकिन फिर धीरे-धीरे अंतर समझने लगी । एक दिन रिचा के आते ही मौसी ने कहा – आज मैं तुमको कुछ दिखाऊंगी फिर मौसी बच्चों से पूछने लगी – क्या कहते हो तुम लोग अंग्रेजी में ? 

हिमांशु मुस्कुराते हुए बोला – सरप्राइज।

 मौसी खुश होते हुए बोली – हां हां वही सरपराइज।

 रिचा भी उत्सुक थी यह जानने के लिए कि मौसी क्या दिखाने जा रही हैं?

 तभी मौसी ने उसके सामने एक कॉपी  रखी और अरे बड़े रहस्यमई अंदाज में बोली – इसको खोलो ।

रिचा ने जैसे ही पहला पेज खोला उसको देखते ही उसकी आंखें आश्चर्य से फैली रह गईं मुंह निशब्द खुला रह गया  फिर भी उसने अपने आपको सच्चाई से अवगत कराने के लिए पूछ लिया-  किसने लिखा मौसी?

  अरे बेटा – तुम्हारी सबसे बड़ी विद्यार्थी ने, यानी कि मैने।- मौसी चहकते हुए बोली ।

 उसमें लाल पेन से लिखा था- ” मन में राम, सब में राम सारे जगत में राम हैं।”

 रिचा को ऐसा लग रहा था कि अब तक की उसने जितनी पढ़ाई की है वह आज सार्थक हो गई । खुशी के मारे उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे उसने मौसी को  अपने गले से लगा लिया और बोली – थैंक्यू मौसी , इससे बड़ा और इससे अच्छा सरप्राइज मुझे अभी तक कभी नहीं मिला।”

 मौसी ने कहा बेटा यह सब तुम्हारी मेहनत है । तुमने मुझ अनपढ़ को पढ़ाकर जीवन का अमूल्य उपहार दिया है। ” इतना कहते-कहते मौसी का गला भर आया और आंखों में खुशी की नमी छा गई

 रिचा कीआंखों से भी खुशी के आंसू निकल पड़े ।

 

स्वरचित – उषा भारद्वाज

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