उम्मीद – विनय कुमार मिश्रा

इस हॉस्पिटल में नर्स की नौकरी करते मुझे दो महीने हुए हैं।मैं रोज की तरह ठीक नौ बजे की शिफ्ट में हॉस्पिटल पहुँच चुकी थी। रिसेप्शन की तरफ बढ़ ही रही थी कि एक बुजुर्ग दंपति को देख थोड़ा रुक गई।शायद वो झगड़ा कर रहे थे। पर किस बात पर ये जानने के लिए मैं जरा नजदीक गई।

बुजुर्ग पुरूष बेहद उदास लगभग रोते हुए अपने हाथों में कुछ छुपा रहे थे। बुजुर्ग महिला उनके हाथों से वो पेपर छीन रही थी। महिला की आँखों के नीचे काले घेरे मगर आँखों में शरारत थी। अचानक रोते हुए बुजुर्ग पुरूष चीख पड़े

“इस रिपोर्ट में कुछ नहीं है सुशीला! ये डॉक्टर लोग तो कुछ भी बोलते हैं”

“आजतक कुछ भी छुपा पाये हो मास्टर साहब! जरा मेरी आँखों में देखो” बुजुर्ग महिला बड़े प्यार से उनकी आँखों में देख रही थी। बुजुर्ग पुरूष बिलख पड़े

“तुम्हें कैंसर है सुशीला.. तुम जल्दी ही..मुझे अकेला.. छोड़ चली जाओगी। इस प्राइवेट स्कूल के रिटायर्ड मास्टर की औकात इस बीमारी से बड़ी नहीं है”

“तुम्हारी औकात बहुत बड़ी है मास्टर साहब!तुमने मुझे इन चालीस सालों में बहुत कुछ दिया है। और मेरी कसम तुम रोना नहीं अब। अभी तो ज़िंदा हूँ ना मैं!अभी से क्यूँ….तुम घर चलो”

बुजुर्ग महिला अपने पति को गले लगा कर चुप करा रही थी और उन्हें देख मैं खुद को रोने से रोक नहीं पाई। अचानक नज़र डॉक्टर उज्ज्वल पर गई, शायद वो भी यही देख रहे थे। मैं ठिठक कर जाने को ही हुई कि

“सर एक मिनट”

वो दंपति आवाज सुनकर रुक गए। डॉक्टर उज्ज्वल ने उनका रिपोर्ट देखा।

“सर आप घबराइए नहीं, जीवन मृत्यु तो हम डॉक्टरों के बस में भी नहीं मगर मैं पूरी कोशिश करूंगा।

“डॉक्टर साहब इतने महँगे ..!” बुजुर्ग की बेबसी उनकी आँखों में दिख रही थी

“मेरी माँ बचपन में ही गुजर गई थी सर, जब मैं पढ़ाई कर रहा था। अपनी माँ को इस बीमारी से बचा नहीं पाया था,..अपनी इन्हीं कोशिशों से मैं उन्हें अपने दिल मे जिंदा रखता हूँ।”

मुझे नहीं पता कि डॉक्टर उज्ज्वल कि कोशिश कितनी कामयाब होगी, पर वो बुजुर्ग दंपति की आँखों में आँसू की जगह उम्मीद लाने में कामयाब हो गये थे..!

विनय कुमार मिश्रा

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