अंगूठा – कमलेश राणा

तनु और मनु दोनों बहनें हैं। दोनों हमेशा साथ – साथ मेरे पास पढ़ने आतीं। दोनों में दो साल का अंतर है तनु 10th में और मनु 8th में है। 

 

आज दोनों अलग- अलग आईं, फूले हुए मुँह बात रहे थे कि भयंकर वाला झगड़ा हुआ है आज तो। तनु बहुत ही ज्वलंत निगाहों से मनु को देख रही थी जबकि मनु उसे तिरछी नज़रों से देख देख कर मुस्कुरा रही थी और यह मुस्कुराहट आग में घी का काम कर रही थी। 

 

मेरे स्नेहिल स्वभाव के कारण बच्चे मुझसे बहुत हिलमिल जाते हैं और अपनी सब तरह की बातें शेयर कर लेते हैं, कई बार तो वो बातें भी, जो वो अपने परिवार में किसी से शेयर नहीं कर पाते। 

 

अचानक तनु बिफर पड़ी, मेम आप समझा लो मनु को.. नहीं तो कुट जायेगी आज ढंग से। चिढ़ा रही है मुझे

 

मनु अभी भी हंस रही थी। 

 

अरे हुआ क्या जो इतनी डिस्टर्ब हो आज। 

 

बाबा से लडाई हो गई आज, जब देखो तब मनु के गुणगान करते रहते हैं, हम कितना भी काम कर लें उनका पर उनकी नज़रों में तो बस मनु ही सर्वश्रेष्ठ है। आज जरा सा मोबाइल क्या मांग लिया.. सौ बातें सुना दीं। ऐसा जाने क्या है उसमें, लॉक लगाकर रखते हैं जो उनके अंगूठे से ही खुलता है।

 

और यह मनु जब बाबा सो जाते हैं तो धीरे से उनका अंगूठा लगाकर लॉक खोल लेती है और आराम से गेम खेलती रहती है। मैंने तो कभी इसकी शिकायत नहीं की पर आज जब मुझे डांट पड़ रही थी तो यह मुझे अंगूठा दिखा दिखाकर हँस रही थी

 

मन तो ऐसा कर रहा है, तोड़ ही दूँ आज इसका अंगूठा… उसकी आँखों में आँसू आ रहे थे ।

 

और मैं सोच रही थी कि वास्तव में आजकल सच्चा ही रोता है और झूठा मीठी मीठी बातें बनाकर भलाई लूट लेता है। 

 

कुछ लोग करते कुछ नहीं बस चापलूसी में निपुण होते हैं और दूसरों की नज़रों में सबसे ज्यादा गुणवान … पर मुश्किल यही है कि यह करना भी हर किसी के वश की बात नहीं है.. 

 

काश हम सच और दिखावे में फर्क कर पाएं और कौन शुभचिंतक है, यह समझ पाएं

 

कमलेश राणा

ग्वालियर

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