उलझन-एक पहलू ये भी (भाग -1) : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : – ढोलक की थाप पड़ते ही नई नवेली बहू शिल्पी के पैरों में थिरकन शुरू हो गई…. “मुझे आई ना जग से लाज कि इतनी जोर से नाची आज कि घुँघुरु टूट गए!” शिल्पी ने थोड़ी बहुत मान-मनुहार के बाद जो नाचना शुरू किया तो ऐसा लगने लगा मानो स्वयं स्वर्ग से अप्सरा उतर आई हो.. गजब की खूबसूरत लग रही थी शिल्पी, गौरवर्ण, दुबली-पतली,बड़ी-बड़ी कजरारी आँखे, सुनहरे से घने लम्बे बाल, आसमानी रंग की साड़ी में शिल्पी ऐसी लग रही थी मानों स्वयं ईश्वर ने बहुत ही खूबसूरती से फुर्सत के क्षणों में अपने हाथों से शिल्पी को गढ़ा है।

“अरी… कमला तेरे बेटे के तो भाग ही खुल गए है.. कहाँ तो वो ब्याह करने को नही मान रहा था और कहाँ अब अपने से आधी उम्र की अप्सरा सी बहू मिल गई वो भी अपनी पसंद से,” चुहल बाजी करते हुए भूपी दादी ने जैसे ही यह बोला तो, झट से कमला दादी ने खड़े होकर शिल्पी के ऊपर घूंघट डाल बैठ जाने का इशारा किया। “अरे… दादी! शिल्पी चाची कितना अच्छा डांस कर रहीं थी! आपने क्यूँ बैठा दिया उन्हें!!” राजीव थोड़ा सा अनमने से भाव से बोला..तो कमला दादी ने उसे डपट कर बाहर का रास्ता दिखाते हुए कहा……
“तू हम औरतें के बीच क्या कर रहा है? चल भाग यहाँ से.. …कुछ काम कह दूँ तो इसकी पढ़ाई का हर्जा होता है और यहाँ आकर छिपकर लुगाईयों में घुसकर बैठा है..आने दें शाम को राकेश को उसी को बताऊंगी तेरी हरकत……अपनी माँ की तो तू सुनेगा नहीं।”
“ठीक है ठीक है, आप अपने प्रवचन बंद करो दादी मैं जा रहा हूँ, मैं तो बस शिल्पी चाची का डांस देखने आ गया था….. शिल्पी चाची आप बहुत अच्छा डांस करती हो!” लगभग चिल्लाते हुए राजीव यह बोलकर दरवाजे से बाहर की ओर भाग गया। मधुर गाने और दीवाना बनाती ढ़ोलक की थपकी पर खुद को क्यूं ना रोक पा रहा था।
आखिर ऐसा क्या हो गया उसे…..जो कि अपनी अच्छी खासी नौकरी को छोड़ घर बैठ गया। धीरे-धीरे उसका व्यवहार क्यूँ बदल रहा है? क्यूँ कमर मटकाती बालाओं की तरह वह भी मटकना चाहता है? घंटों खुद को आईने में निहारना.. सोलह श्रृंगार करना.. कजरारी आखों को मटकाते हुए खुद से ही घंटो बाते करना अब राजीव को भाने लगा था!
राजीव को शुरू से ही लड़कियों के खेल, उनकी तरह नाचना-गाना और बातें करना पसंद आता था। अपने बेटे को यूँ लड़कियों के साथ ही खेलते रहते देख उसके माँ पापा को पसंद नही आता था और खूब डांट भी खाता और कभी कभार मार भी। जैसे जैसे वो बड़ा होता गया उसने अपने आप में सिमटना शुरू कर दिया। क्योंकि कोई उसे समझ नही पा रहा था। वो पहले पढने के लिए शहर चला गया फिर वहीं नौकरी करने लगा।
गाँव में कोई उसे नहीं समझेगा वो जान गया था पर दिल्ली जैसे शहर में भी उसे पढे़ लिखे दोस्त नहीं समझते थे। एक दिन उसने हिम्मत करके अपने सबसे खास दोस्त को अपने दिल की बात कह दी तो पहले वो खूब हँसा और फिर बोला, “यार एक तो तेरी कोई गर्लफ्रैंड नही है और दूसरा तू लड़कों से भी दोस्ती नही करता। तभी तुझे ऐसा लगने लगा है….. तू चल मेरे साथ आज तुझे मजे करवा लाता हूँ और तेरे आदमी होने का सुबूत भी मिल जाएगा,” कह कर वो उसे रेड लाइट एरिया की बदनाम गलियों में खींच कर ले गया।
राजीव को वो सब अटपटा लग रहा था। बनी संवरी औरतें उन दोनो को इशारों से बुला रहीं थी। उसके दोस्त ने एक लड़की के पास ले जा कर खड़ा कर दिया और बोला, “जा मजे कर!” वो उस लड़की के साथ चला तो गया पर उस लड़की को देख कर भी राजीव में कोई ऐसा भाव नही आया जो नार्मली लड़को को आता है।
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इस कहानी को दो लेखिकाओं ने मिलकर लिखा है
सुमन ओमानिया और सीमा बी.

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