तुम्हारी वजह से मैं आज खुद से प्यार करने लगी हूं – चाँदनी झा 

बीबीजी, आप इतना झल्लाई सी क्यों रहती है? विमला ने डरते हुए सुधा से पूछा। झल्लाई क्या, सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। तुम्हारे साहब को, ऑफिस के आलावा किसी चीज की चिंता नहीं, रोहन, रिया सबका ख्याल रखना, मेरी सास भी बीमार रहती है, और तुम कहती हो की मैं झल्लाई क्यों रहती हूं।

सुधा के यहां विमला काम करती थी, विमला के आलावा भी दो लोग सुधा के यहां और काम करते थे। फिर भी सुधा कभी खुश नहीं दिखाई देती थी। काम के नाम पर, बस आदेश देना, डायरी लिखना, और बच्चों को गाइड करना, पर सुधा हमेशा दुखी दिखती। जबकि उसके घर में काम करनेवाली विमला, उससे ज्यादा खुश लगती थी। सुधा जो अपेक्षा ज्यादा, और मेहनत कम करती थी, सपने तो देखती पर…आज, कल पर टालती।

सबसे अपनी तुलना करती, और तनाव ज्यादा पालती थी।  जैसे संतुष्टि उसके जीवन का हिस्सा हो ही नहीं। वहीं विमला, दूसरों के घरों में काम करके भी, खुश रहती, वह अपने काम को मन से करती, सब जगह से बोनस पाती, और दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की करती जाती थी। चेहरे पर संतुष्टि के भाव, और कोई भी कुछ कह भी देता तो मुस्कुरा देती।

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सुधा को अपनी बड़ी बहन सा मानती थी विमला। कभी-कभी सुधा, अपने मन की बात विमला से करती, कहती, मैं हमेशा कई दुविधाओं में उलझी हैरान, परेशान रहती हूं, कई रात को नींद न आती, और घबराहट रहती है, कभी खुद पर, कभी दूसरों पर गुस्सा आता। विमला अपने स्तर से सुधा को समझाती। पर आजकल सुधा विमला से भी ज्यादा बातें न करती, और हमेशा झुझलाते रहती। इसलिए विमला ने पूछा….सुधा के लिए गर्म-गर्म चाय बनाकर, हाथ पकड़ कर कुर्सी पर बिठाकर सर में नारियल तेल से मसाज करने लगी, क्या कर रही हो विमला? मुझे चाय नहीं पीनी। पी लो न दीदी, आपकी पसंद की अदरक वाली बनाई हूं।




विमला अपनी बचपन की, अपने गांव की इधर-उधर की कई दुःख भरी कहानी सुनाने लगी, साथ ही हर समस्या से कैसे निकली सब बता रही थी। चाय सुधा की कब की खत्म हो चुकी थी, पर वह विमला की बातों में मगन….कभी आश्चर्य से मुंह खुल जाता, कभी आंखे नम हो जाती। सुधा को लगा, दुनिया में कितनी परेशानी और मैं हूं की…छोटी छोटी बातों से घबरा जाती हूं।

बहुत समय बीत गया, विमला सुधा को बोल दूसरे कामों में लग गई। फिर उसी तरह दो-चार दिन लगातार, विमला सुधा से किसी न किसी बहाने चाय पर बातें करने लगी। अब सुधा भी अपनी कई बातें रखने लगी, अपने शौक, अपनी जिंदगी के सपने, अपने विचार बताने लगी। विमला ने कहा, ये बात जीजी….आपके अधूरे सपने के टूटने का दर्द, और हां,आप चिंता ज्यादा करती हैं, आप खुलकर कुछ कह न सकतीं। विमला ने जैसे उसकी सारी कमियां गिना दिया।

तो क्या विमला मैं अभी भी डांस सीख सकती हूं? रोहन इतना बड़ा हो गया है, और मैं भी तो मोटी हो गई हूं।….जीजी मैंने आपसे ज्यादा हेल्दी औरत को बहुत सुंदर डांस करते देखा है, आपसे सबकुछ होगा। और मैं आपकी मदद के लिए तो हूं ही।

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आजकल सुधा, ज्यादा ही सक्रिय हो गई है। अपने नए नए डिश बनाने के शौक को पूरा करती, डांस क्लास जाती, खुश रहने लगी है। और रविवार को विमला से बालों में मसाज कराना न भूलती। जानती हो विमला, तुमने ही मेरे सिर में तेल देकर, दिमाग खोला, “तुम्हारी वजह से मैं आज खुद से प्यार करने लगी हूं।”

मेरे सपनों में रंग तुमने ही भरा। हां जीजी और आपने मेरे। मैंने क्या? आप मेरे कहने पर, खुद से प्यार करने लगी, और मेरा सपना था की मैं किसी के जिंदगी में खुशियों के रंग भरूं। सुधा को आश्चर्य हुआ, वाउ कितना खूबसूरत सपना है विमला का। जितना काम करने में माहिर है, उतनी ही आदर्श। दूसरे दिन सुबह रसोई में चाय बना कर विमला का इंतजार कर रही थी सुधा। दीदी मुझे देर हो गई क्या? आपने चाय क्यों बनाई? आओ साथ चाय पीते हैं, तुमने ही तो सिखाया मुझे जीतना हो सके खुश रहूं, खुद से काम करने की कोशिश करूं, और सबसे ज्यादा, जो काम में खुशी हो वो करूं। तो आज मेरा दिल किया, तुम्हारे लिए चाय बनाऊं। आजकल सुधा सचमुच खुश है। घर में विमला के साथ नृत्य करती, उसके चेहरे पर अब चमक साफ दिखाई देती थी। खुद से प्यार जो करने लगी, अब कोई समस्या नजर न आती थी उसे। 

चाँदनी झा 

 

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