तलाक के पेपर – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : – संयुक्त परिवार में रहने वाले मनोहर जी घर के मंझले बेटे थे।बड़े भाई का मसालों का कारोबार था,जिसमें उनका बड़ा बेटा हांथ बंटाता था।उनकी बड़ी बहू और मनोहर बाबू की पत्नी में खूब बनती थी।बड़े भाई की बड़ी बहू की छोटी बहन को मनोहर बाबू की धर्मपत्नी अपने इकलौते बेटे की पत्नी बनाना चाहती थी।मनोहर बाबू की मां घर की मुखिया थी,सो उनका आज भी सिक्का चलता था।

एक दिन मंदिर जाकर उन्होंने एक सुंदर सुशील लड़की को देखा।मंदिर के बाहर चोरों से दादी का बटुआ बड़ी ही होशियारी से छुड़ाया था उसने।बस दादी तो फैन हो चुकी थी उसकी।घर लौटते हुए उसे छोड़ने के बहाने से ,उसका घर -परिवार भी निरीक्षण करके आई।अगले दिन अपने मंझले बेटे(मनोहर बाबू),बड़े बेटे ,बहुओं के साथ जाकर शादी का रिश्ता पक्का कर आईं।मनोहर बाबू की पत्नी शिखा जी की एक नहीं चली।अपने अनुभव का हवाला देकर अपने नाती को शादी के लिए मना लिया था उन्होंने।

नई बहू का नाम किरण था।नाम के अनुरूप ससुराल में एक नई चेतना की किरण लेकर आई थी वह।पीढ़ियों से चली आ रही कुरीतियों को अपने तर्कों से दूर कर रही थी।परिवार में नारियों के सम्मान और महत्वाकांक्षाओं को पुनर्जीवित कर रही थी किरण।जैसी रूप में सुंदर थी ,वैसा ही शालीन व्यवहार था।

शिखा जी अपने इकलौते बेटे को अपने हांथों से निकलते हुए नहीं देख सकती थीं।अपनी पसंद की बहू लाने से कम से कम उनका दबदबा रहता,पर सास की पसंद की आई किरण उन्हें फूटी आंख ना सुहाती।बहू को हमेशा खरी-खोटी सुनाती रहतीं थीं ,साथ ही बेटे के कान भरने से भी नहीं चूकती थीं वह।मनोहर बाबू का अपनी बहू को बेटी मानना उन्हें जहर लग रहा था।बड़े जेठ के बेटे की छोटी साली को अपने बेटे के लिए चुनकर रखना कुछ काम नहीं आया।उसकी भी अभी तक शादी हुई नहीं थी।

एक दिन बड़े जेठ की बहू के मुंह से क्या निकला “काकी,सुधा तो अभी तक कुंवारी बैठी है।किसी तरह अपने बेटे की ज़िंदगी से निकाल बाहर करो इस किरण को।झट से सुधा इस घर में आ जाएगी।फ़िर तुम्हारा बेटा तुम्हारे ही बस में रहेगा।”शिखा जी की आंखों में यही एक सपना पलने लगा।

अपने इकलौते बेटे से पागलों की तरह प्यार करने वाली मां ,अबअपने ही बेटे की दुश्मन बन गई।प्रपंच का कोई भी तरीका नहीं छोड़ा बेटे -बहू को अलग करने का।किरण बुद्धि में भी तीक्ष्ण थी,सो अपनी सास की हर चाल का प्रत्युत्तर देती।बेटे को बहू से अलग करने की आग में जेठ के बेटे-बहू घी डाल ही रहे थे।एक दिन जेठ की बहू अपनी बहन सुधा को घर ले आई।

किरण ,जो स्थानीय अखबार में नौकरी करती थी काम के सिलसिले में अपने सहकर्मियों के साथ बाहर गई थी।उस रात मौका देखकर अपनी काकी सास को विश्वास में लेकर उनके ही बेटे को नींद की गोली धोखे से खिला दिया था उसने।अपनी बहन सुधा को उसके कमरे में छोड़कर बाहर से दरवाजा बंद कर चिल्लाने लगी “देखो,देखो!इस घर के चरित्रवान लड़के की करतूत।

पत्नी की अनुपस्थिति में मेरी बहन की इज्जत से खिलवाड़ कर दिया।अब इसका क्या होगा?”शिखा जी को यह योजना पसंद तो नहीं थी पर दोनों बहनों ने मति भ्रष्ट कर दी थी उनकी।उनका बेटा आत्मग्लानि से रोते हुए कहा रहा था”मां!मेरा विश्वास करो,मैंने कुछ नहीं किया है।”उसकी आवाज दबाते हुए दोनों बहनें चढ़ाई कर दे रही थी बेटे पर कि अपनी पत्नी से तलाक लेकर सुधा से शादी कर ले।सुधा ने पुलिस की धमकी देकर तलाक के पेपर में साइन भी करवा लिए।किरण के घर लौटते ही पेपर दिखवा दिया शिखा जी के हांथों।

पति से इस धोखे की उम्मीद नहीं थी किरण को।जैसे ही उनसे अपनी मां की कसम देकर सच जानना चाहा,उसने दरवाजा बंद कर लिया।किरण समझ चुकी थी कि यह चाल है।साबित करने के लिए कोई सुबूत नहीं था।अगले दिन रोकर आंखें सुझाए पति के कमरे से निकलते ही सुबूत ढूंढ़ने जैसे ही अंदर गई,किरण को कुछ नहीं मिला।

अचानक लैपटॉप खोलकर देखने की सूझी उसे,और बस उसे सुबूत मिले गया पति की बेगुनाही का।घर के सभी सदस्यों के सामने पर्दाफाश होते ही, शिखा जी की जेठ की बड़ी बहू ने इन सबमें शिखा जी के निर्लिप्त रहने का रहस्योद्घाटन किया।सुनकर किरण को आश्चर्य नहीं हुआ पर उनके बेटे ने आश्चर्य से मां को कहा”आप इतना नीचे कैसे गिर सकती हो मां?

अपने बेटे के ज़िंदगी से उसके जीवनसाथी को दूर करने के लिए इतना घिनौना षड़यंत्र कैसे रच सकीं आप?भाभी और उनकी बहन तो पराई हैं,आप तो मेरी जन्मदात्री हैं?आपने ऐसा क्यों किया मां?”शिखा जी रो-रोकर बेटे के सामने आत्मसमर्पण करती हुई बोलीं”मुझे माफ़ कर दो बेटा।यह योजना आखिर तक इतनी घिनौना रूप ले लगी,मैंने कल्पना भी नहीं की थी।बहू और उसकी बहन ने बरगला दिया था मुझे।तेरा बहू के साथ तलाक का पेपर इन्होंने ही बनवाया था,और तेरे साइन करवाए थे।”

मनोहर बाबू जो सदा पत्नी की बात सुनते थे,कभी अशांति के डर से  लड़ाई-झगड़ा नहीं करते थे,दहाड़कर बोले”शिखा,आज से तुम मेरे लिए मृत समान हुई।आज से मैं तुम्हारा कभी मुंह नहीं देखूंगा।मैं दूंगा तुम्हें तलाक।”शांत स्वभाव के मनोहर बाबू का यह रूप सभी के लिए अप्रत्याशित था।किरण ने पैर पकड़कर कहा”बाबूजी,आपने हमेशा मुझे अपनी बेटी माना।आप मेरे पिता हैं,इतनी बड़ी सजा मत दीजिए मां को।हमारा तलाक तो हुआ ही नहीं,फिर मां को किस बात की सजा दे रहें हैं आप?”

मनोहर बाबू ने किरण को उठाकर गले लगाकर कहा”बेटा,यह तलाक का शब्द ही पाप है।एक मां होने से पहले शिखा एक औरत हैं।इतना बड़ा षड़यंत्र अपनी बहू के खिलाफ यदि यह रच सकती है तो , भविष्य में कुछ भी कर सकती है।”निर्विकार से होकर मनोहर बाबू चुपचाप कमरे से निकल गए।अगले दिन शाम तीन बजे रजिस्ट्री लेकर आया डाकिया।शिखा जी के हांथ लिफाफे को खोलते हुए कांप रहे थे।मनोहर जी ने अपना कहा सच किया था।शिखा जी के हांथ में बत्तीस सालों की गृहस्थी का पुण्य प्रताप”तलाक का पेपर”था।

शुभ्रा बैनर्जी

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