लौट के बुद्धू घर को आये – भगवती सक्सेना गौड़

एक रिश्ते की ननद की शादी थी, 2005 में, तब मैं यू पी के एक शहर में थी। वैसे तो बेटी बोर्ड के एग्जाम की पढ़ाई में व्यस्त रहती थी, पूरे दिन मैं भी इसी कारण व्यस्त और उनकी खातिरदारी करती रहती थी। पढ़ाई में इतना डूब जाती थी, कि उसे खाने पीने का भी … Read more

अपना गाॅ॑व – माता प्रसाद दुबे

“सुनो जी अब तो ट्रेन चलने लगी है, हम लोग अपने गाॅ॑व चलते हैं?”रमा अपने पति प्रकाश से बोली। “क्यूं क्या हो गया?”प्रकाश रमा को हैरानी से देखते हुए बोला। “अरे ये कहिए की क्या नहीं हुआ बीमारी का डर..लोगों की भीड़..लापरवाह लोग..मुझे हमेशा डर लगता है..आपके और हमारी नन्ही गुड़िया शुभि की सुरक्षा को … Read more

जीवन एक ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है – पुजा मनोज अग्रवाल

माता पिता की इकलौती लाडली बेटी सिम्मी , प्यारी मनमोहक मुस्कान  , संस्कारी, सबके साथ सामंजस्य बिठाने में माहिर , हर कार्य में दक्ष , गुणों की खान थी सिम्मी  । माता पिता को मयंक अच्छे लगे तो उन्होंने छोटी उम्र में ही उसका विवाह कर दिया ।      नव विवाहिता सिम्मी अपनी  आंखों  में रंगीन … Read more

शादी के बाद समझौते तो पति भी करते है। – संगीता अग्रवाल

#बैरी_पिया ” क्या बात है रिया आज ऑफिस आने में देर हो गई तुम्हे ?” रिया की सहेली प्रतीक्षा ने उससे पूछा।  ” हां यार बस थोड़ी देर हो गई घर से निकलने में ये शादी नाम की घंटी गले में लटकाई है ना उसके कुछ तो साइड इफेक्ट्स होंगे ही !” रिया गुस्से में … Read more

महक का रिश्ता – तृप्ति उप्रेती

आज बहुत अरसे बाद मेहरा निवास में खुशियों ने दस्तक दी थी। परेश मेहरा और उनकी पत्नी विभा मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। उनकी आंखों में बसी गहरी उदासी किसी से छुपी नहीं थी लेकिन उन्होंने अपने दर्द के साथ जीना सीख लिया था। आज उनके बेटे राज की शादी पूर्वी से होने जा … Read more

बेवाई पैरों की, –  गोविन्द गुप्ता

अर्जुन एक मजदूर था रोज सुवह जाना और अड्डे से  काम की तलाश में निकल जाना यह रोज का कार्य था, तीन बच्चे थे जो छोटे थे, सरकार का स्कूल चलो अभियान चला तो उनका एडमिशन सरकारी स्कूल में हो गया, बड़ा बेटा पढ़ने में तेज था हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद कोई स्कूल भी … Read more

ख़ुद से ही लें ख़ुद के लिए प्रेरणा— पूर्ति वैभव खरे

ऐसा कौन सा व्यक्ति है ? ‘जो जीवन में निराशावादी होना चाहता है’ शायद कोई नहीं; निराशा, उदासी,मायूसी या हार किसी को रास नहीं आती,फिर भी ये जीवन में मिलती अवश्य है, इनके बिना जीवन कहाँ चलता है? ऐसा कोई न होगा जो कभी पराजय की गली से न गुजरा हो।      जिस तरह जन्म-मरण अक्षरशः … Read more

*कुछ पल ख़ुद के लिए* –*  पूर्ति वैभव खरे

 जीवन न बहुत तेज़ चलता है न ही बहुत धीरे। वह तो अपनी निश्चित गति से चलता है। लेकिन हमें ऐसा अक़्सर लगता है जैसे समय दौड़ रहा हो, और हम पीछे छूट रहे हों ।     ऐसा अक़्सर महसूस होता है स्पेशली वीमेन को क्योंकि  उनके सिर पर चिंताओं की टोकरी और कंधों पर रिस्पांसिबिलिटी … Read more

ऋण – अनुपमा 

बंसी जाओ गाड़ी निकाल लाओ साहब तैयार हो गए है , सुषमा ने आवाज दी तो जैसे नींद से जागा बंसी और तेज़ी से अपने कपड़े ठीक करता हुआ सुषमा से गाड़ी की चाभी देने का इशारा किया  साहब आ कर गाड़ी मैं बैठ चुके थे रोज की तरह उन्होंने बंसी काका से हालचाल पूछा … Read more

कर्तव्यबोध – वीणा

चुन्नु देख..नानाजी आए हैं तेरे..देखो तो नानाजी क्या गिफ्ट लाये हैं तुम्हारे बर्थ डे के लिए अरे भाई.. मैं चुन्नु के लिए गिफ्ट लेकर नहीं आया..बल्कि उसके लिए साईकिल यहीं लेना है मुझे..और चुन्नु की नानी ने तुम तीनों के कपड़े खरीदने के लिए कुछ पैसे भिजवाये हैं..कहते हुए रामनाथ जी ने बीस हजार रुपये … Read more

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