बेवाई पैरों की, –  गोविन्द गुप्ता

अर्जुन एक मजदूर था रोज सुवह जाना और अड्डे से  काम की तलाश में निकल जाना यह रोज का कार्य था,

तीन बच्चे थे जो छोटे थे,

सरकार का स्कूल चलो अभियान चला तो उनका एडमिशन सरकारी स्कूल में हो गया,

बड़ा बेटा पढ़ने में तेज था हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद कोई स्कूल भी नही था उस इलाके में तो शहर के स्कूल में दाखिले के लिये पता करने गया तो फीस सुनकर चक्कर आ गया और तेज धूप में वह सर पकड़ कर बैठ गया सोंचने लगा पढ़ाई की जगह अगर यह बच्चे काम पर जाते तो पैसे भी आते और काम सिख भी जाता,

पर अब तो आगे की पढ़ाई जारी रखना जरूरी है यदि कुछ बनना है तो,

कुछ सोंचने के बाद अर्जुन ने बेटे सूरज  से कहा बेटा मैं अभी आता हूँ,

तुम यही रुकना,

और वह दूसरे गेट से स्कूल में दाखिल हुआ,

गार्ड ने आकर रोका तो कहा कि मुझे मालिक से मिलना है,

गार्ड ने मालिक से मिलने हेतु अनुमति ली और अर्जुन को भेज दिया ,

स्कूल प्रबंधक ने पूंछा अब क्यो आये हो पैसे तैयार हो तो फाइल पूरी कराये एडमिशन की,

अर्जुन बोला सर मैं मजदूर हूँ बच्चा पढ़ने में तेज है अब तक सरकारी स्कूल में पढ़ता रहा अब फीस के लिये मेरे पास पैसे नही है,



एक काम कर सकता हूँ आपके स्कूल में कोई काम रात्रि का हो तो हंमे दे दे और जो तनख्वाह मिले आप फीस ले ले,

प्रबंधन को मेस में बर्तन धोने का काम करने वाले व्यक्ति की जरूरत थी तो सहमति व्यक्त कर दी,

अगले दिन एडमिशन हो गया सूरज का,

इधर सूरज पढ़ता रहा और उसे पता भी नही चला कि उसी स्कूल में उसका पिता भी रात्रि में कार्य करता है,

अर्जुन दिन में दूसरी जगह ईंटे ढोने का कार्य करता था रात में स्कूल का काम,

पढ़ाई पूरी हो गई तो कैम्पस सिलेक्शन में सूरज की सर्विस लग गई और ग्राम विकास अधिकारी की पोस्ट मिल गई,

ज्वाइनिंग के बाद जब सरकारी जीप से घर आया तो घर की फूस की झोपड़ी देखकर कहने लगा जब गया था तब से अब तक कोई अंतर नही आया पिताजी तो सिर्फ अपने से मंतलब रखते है,

कुछ पैसे जोड़ते तो लिंटर पड़ जाता,

माता शकुंतला बोली ठीक कहते हो भैया तुम अधिकारी हो अब और पिताजी कमजोर हो गये है,

उंन्होने भविष्य के लिये सारी रकम जोड़ी है उसे मकान में कैसे लगा देते,

तुम्हे इसी लिये तो पढ़ाया कि इस मकान को तुम बनवा सको,

कहाँ है पिताजी उन्हें समझाते है सूरज बोला शकुंतला ने झोपड़ी की दूसरी और सोते हुये अर्जुन की ओर इशारा किया जो दिन में काम न होने के कारण काम पर नही गया था,

सूरज ने जाकर अर्जुन को जगाया और कहा पापा अब झोपड़ी को पक्का करवा लो मेरे अधिकारी या मिलने बाले आएंगे तो शर्म लगेगी,

इतने में अर्जुन के पैरों पर पड़ी चादर हवा के झोंके से हट गई,

और पूरे पैर सूजे हुये थे,

जिनमे विबाईं पड़ गई थी,

सूरज बोला आप भी न दवा भी न ले सकते हो,

इतने में स्कूल के प्रबंधक जिन्हें पता चला कि सूरज घर आया है अधिकारी बनकर तो मिलने आये वह सारी बात सुन रहे थे,

उनसे न रहा गया तो नमस्कार के बाद बोले सूरज जी जिस पिता को तुम इतना सुना रहे हो जानते तो यह पैर क्यो सूजे और क्यो पैरों में विबाईं पड़ गई,

तुम्हे पढ़ाने के लिये यह हमारे स्कूल में रात्रि में काम करते थे,

और दिन में ईंट भट्ठे पर,

रात दिन मेहनत कर तुम्हे इस मुकाम पर पहुंचाया इन्होंने उनके पैर छुओ,

और अपनी मेहनत कमाई से यह मकान बनवाओ इन्हें आराम देने के लिये,

अर्जुन रोने लगा सर क्यो बताया इसे मेरा जीवन तो है ही बच्चो के लिये,

इतना सुन सूरज लिपट गया अर्जुन के पैरों में और विबाईं सहलाने लगा,

अगले दिन सरकारी जीप से हॉस्पिटल से दवा लेकर अर्जुन को सूरज ने इस शर्त पर घर छोड़ा की अब वह काम नही करेगा घर की जिम्मेदारी खुद लेकर पुनः ड्यूटी पर निकल गया पर जाते जाते उसे वह विबाईं युक्त पैर बहुत याद आ रहे थे,,,

लेखक गोविन्द

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