ऋण – अनुपमा 

बंसी जाओ गाड़ी निकाल लाओ साहब तैयार हो गए है , सुषमा ने आवाज दी तो जैसे नींद से जागा बंसी और तेज़ी से अपने कपड़े ठीक करता हुआ सुषमा से गाड़ी की चाभी देने का इशारा किया 

साहब आ कर गाड़ी मैं बैठ चुके थे रोज की तरह उन्होंने बंसी काका से हालचाल पूछा और ऑफिस की ओर गाड़ी ले जाने को बोल अपने फोन मैं व्यस्त हो गए । 

आज पैंतालीस साल से साहब की गाड़ी चला रहा है बंसी , सारी जिंदगी साहब की सेवा मैं निकल गई , घर परिवार मैं कोई था नहीं ,साहब ने अपने ही घर मैं दूसरे गैरेज मैं रहने का इंतजाम कर दिया था ,पत्नी दूसरे बच्चे के जन्म के समय ही मर गई थी ,बच्चा भी बिन मां के ज्यादा दिन नहीं जीवित रह पाया । एक बेटा था बंसी का काकू बुलाता था वो उसे ।

बंसी बीस साल की उम्र से साहब की गाड़ी चला रहा है , बिन मां का बच्चा था काकू तो अक्सर उसे काम पर ले आता और गैरेज मैं ही उसे छोड़ कर साहब की सेवा मैं चला जाता था , काकू शाम तक वही बंसी का इंतजार करता , साहब का बेटा अंश, काकू का हम उम्र ही था तो शाम को जब वो साइकिल चलाने बाहर आता तो काकू भी उसके साथ खेलने लगता उसकी साइकिल पकड़ कर पीछे पीछे दौड़ता ,मेमसाब जब अंश बाबा को बुलाने आती तो काकू को कुछ खाने को दे देती थी ,इसी तरह काकू का लालन पालन साहब के गैरेज मैं हो गया था और अब वो बीस साल का सुंदर गोरा चिट्ठा नौजवान हो गया था । बंसी काका से गाड़ी चलाने का हुनर शायद उसे विरासत मैं ही मिल गया था ,साहब की आज्ञा से यदाकदा बंसी उसे गाड़ी चलाने देता था ।


धीरे धीरे काकू भी एक्सपर्ट हो गया था तो साहब ने उसे अंश बाबा की गाड़ी चलाने का काम दे दिया था साथ ही हिदायत भी की अंश बाबा का उनकी गाड़ी का पूरा ध्यान रखे वो ।

अंश और उसके दोस्तों की पार्टी चल रही थी सभी ने बहुत पी रखी थी ,वापसी के समय अंश बाबा और उनके दोस्तों ने कार रेस की शर्त लगा ली ,काकू के बहुत मना करने के बाद भी अंश नही माना और खुद गाड़ी चलाने को ड्राइविंग सीट पकड़ ली और काकू को बगल वाली सीट पर बैठा दिया ।

शराब के नशे मैं कुछ पलों मैं ही सारा नजारा बदल गया , एक मोड़ के वक्त जाने कहां से एक ट्रक आया और गाड़ी को साइड से चीरता हुआ निकल गया , सभी का नशा काफूर हो चुका था कोई भी अपने होशो हवास मैं नही था । 

घटनास्थल पर साहब जब पहुंचे तो अंश बोलने की स्तिथि मैं भी नही था उसको बहुत शॉक लगा था और काकू उसका तो अंग अंग उधड़ा पढ़ा था , साहब को समझ नही आ रहा था की अंश के बचने की खुशी मैं खुश होएं या अंश की वजह से किसी और के बच्चे की ऐसी हालत पर दुखी , बंसी काका तो जैसे पत्थर हो गए थे उनका जीने का सहारा ही अब नही रहा था और ऐसी हालत तो दुश्मनों की भी न हो , ट्रक साइड से गाड़ी को रौंदता हुआ निकल गया था ।

 बंसी साहब के यहां गैरेज मैं ही रहता था तबसे , बंसी के खाने पीने और सेहत का ख्याल रखने के लिए या किसी और जरूरत के लिए भी सारी जिम्मेदारी साहब ने ले रखी थी , साहब भरसक प्रयास करते बंसी को कोई तकलीफ न हो ।

साहब ऑफिस का काम से फुर्सत होकर गाड़ी मैं बैठे तो बंसी से कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर उन्होंने बंसी को कंधे पर हाथ रख कर जगाया तो बंसी काका वही सीट पर लुढ़क गए ।

आज तेरह दिन से साहब ऑफिस नही गए है , बंसी को जानने वाले सभी लोगो को और अन्य लोगो को सभी को आमतिंत्र किया गया है ,बकायदा पंडितों द्वारा सारे क्रियाकर्म निभाए गए है ,और बंसी काका को श्रद्धांजलि दी गई है । अब इसे आत्मग्लानी कहे या ऋण पर साहब ने पूरी कोशिश की है उनकी आत्मा को शांति मिले ।

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