आज गीता वृद्धाश्रम के तरफ कदम बढ़ा रही थी और दिमाग था कि अतीत की तरफ दौड़े जा रहा था। बड़े आराम से अपने बेटे नवीन, प्रीति और पोते टोनु के साथ दिन बीत रहे थे। पूरा समय दो वर्ष के टोनु की तोतली भाषा और नए नए खेल में बीत जाता था। सुबह से लेकर रात तक वो उसके साथ फिर से बचपन को जी रही थी। नवीन और प्रीति भी खुश थे, उनके आफिस का काम बढ़िया चल रहा था। आश्वस्त रहते थे कि मम्मी सब संभाल लेंगी।
एक दिन अक्कड़ बक्कड़ खेलते हुए टोनु ने दादी का हाथ देखा और बोल पड़ा,” जे का है।”
उसका भी ध्यान गया। धीरे धीरे ये बढ़ने लगा शरीर के कई भागों में दिखने लगा, घर मे सब परेशान रहने लगे, डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने चरख के बारे में बताया और कुछ दवाइयां लिख दी पर उससे कुछ असर नही हुआ । एक दिन बेटे ने उनका हाथ देखा कुछ अजीब लगा, उसे लगने लगा इन्हें तो कुष्ठ रोग भी हो रहा है ।
अब नवीन घबरा गया कि ये बीमारी पता नही ठीक होगी या नही, टोनु दिनभर इनके पास रहता है, कहीं उसे कुछ न हो जाये। टोनु से अलग करने की योजनाओं पर सोचता रहा। बच्चे को ऐसी बाते समझना बहुत कठिन होता है।
अब रिश्तेदार, पड़ोसियों से भी छुपाने के बहाने सोचने लगा। एक ही युक्ति सूझी, ये ज्यादा बढ़े इससे पहले, इन्हें कुष्ठ आश्रम छोड़ आना चाहिए। और एक दिन गीता को आश्रम पहुचा दिया और छोड़ कर आ गए।
कुछ दिन बाद समाज, मोहल्ले और रिश्तेदारों को खबर कर दी कि बनारस गयी थी, गंगा में बह गई। और पेपर में उनका नाम और फ़ोटो छपवा कर सबने श्रद्धांजली दे दी,
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अधिकतर लोग भूल भी गए।
आश्रम में बेटे का पता तो था ही, करीबन दो साल बाद एक दिन घर मे पत्र आया। खोलकर पढ़ने लगा,”आपकी माँ एकदम स्वस्थ है सिर्फ चरख है आप उन्हें घर ले जा सकते हैं । अब नवीन सकते में थे क्या करूँ, सबको तो मैंने कह दिया, माँ का स्वर्गवास हो गया । फिर किसी तरह घर मे एक अंदर का कमरा उनके लिए तैयार किया कि उनको लाना तो पड़ेगा, आश्रम में क्या कहूंगा । टोनु को होस्टल भेजना पड़ा। गीता बहुत खुश थी कि चलो टोनु के साथ रहने का सपना पूरा होगा, पर नही मनुष्य के कुछ सपने अधूरे भी रहते है ।
एक हफ्ते बाद जाकर माँ को घर लाया गया और उन्हें उस कमरे से निकलने मना कर दिया । कुछ दिन बीते , आधी रात को गीता को घर मे नींद नही आने के कारण घूमने लगी, कुछ पत्रिका पलटना चाही तो उसमे से उन्हें एक पेपर की कटिंग मिली, जिसमे उनकी फोटो थी मृत्यु की खबर थी, और उनको श्रद्धांजलि दी गयी थी । और उनके होठो पर एक गाना आपने आप आ गया…वक़्त ने किया क्या हसीन सितम……..वो सकते में थी ये क्या हो गया……..यही कारण है कि मुझे कमरे से निकलने की मनाही है ।
दिल धिक्कार उठा जब मै सबके लिए मर चुकी हूं, तो मै यहां किसके लिए बैठी हूँ । बस आज फिर वही स्वाभिमानी माँ गीता किसी को बिना बताए वृद्धाश्रम की ओर चल पड़ी , वहीं कुछ काम करूँगी सबकी सेवा करूँगी…….बची जिंदगी कट ही जाएगी ।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़