सूर्य की किरण – बालेश्वर गुप्ता: Moral stories in hindi

moral stories in hindi : बेटा, कब तक पुरानी यादों को लिपटा कर रखेगा।घर आंगन में किलकारी गूँजेगी तो बेटा बुरी यादें सब खत्म हो जायेंगी।

    माँ, ये तू कह रह रही है?जिसे तू इतने प्यार से लायी थी,चली गयी न यूँ ही छोड़कर,बता कैसे भूलूँ?

         कुल दो वर्ष पहले ही की तो बात है,रंजना ने अपनी सहेली से उसकी बहुत ही खूबसूरत बेटी रीना को अपने बेटे रवि के लिये खुद मांग लिया था।रीना वास्तव में जितनी खूबसूरत थी उतना ही उसका स्वभाव भी सौम्य था।परिवार में ऐसे घुलमिल गयी थी,मानो उसका जन्म भी यही हुआ हो।रंजना से तो इतनी आत्मीयता रखती कि जैसे वह सास न होकर कोई सहेली हो।रवि को इतना प्यार करती कि उसके साथ ही खाना तक खाती।घर आंगन एक खुशबू से महक सा गया था।पूरे घर की रौनक बन गयी थी रीना।

       पता नही किसकी नजर लगी कि घर मे विश्वव्यापी बीमारी कोरोना ने प्रवेश कर लिया और घेर लिया रीना को।फूल सी रीना, हरदम चहकने वाली रीना, घर मे सबका ध्यान रखने वाली रीना को एक कमरे में नितांत अकेले बंद हो रहना पड़ा।हॉस्पिटल में जगह ही नही मिल पा रही थी।इधर रीना की हालत और खराब हुई तो अपनी परवाह किये बिना रवि खुद रीना को कार में लिटा कर हॉस्पिटल लेकर चल गया, रीना की हालत देख हॉस्पिटल वालो ने अग्रिम दो लाख रुपये जमा कराके रीना को आईसीयू में दाखिल कर लिया और रवि को वापस भेज दिया।

     कैसी विडम्बना थी घर भर का ध्यान रखने वाली रीना लावारिस सी हॉस्पिटल में पड़ी थी,अकेली।चार दिनों बाद ही हॉस्पिटल से हृदयविदारक समाचार भी आ गया,रीना इस संसार को,अपने घर को,अपने रवि को छोड़ दूसरी दुनिया मे विचरण करने चली गयी थी।निर्दयी कही की।

        घर मे कुहराम मच गया था।रीना का अंतिम संस्कार भी कोरोना प्रोटोकॉल के अनुरूप ही हुआ।रवि अपनी रीना को बस दूर से ही देख सका।रवि को ऐसा आघात लगा कि उसका स्वाभाविक जीवन ही समाप्त सा हो गया।हर समय गुमसुम रहने लगा।रवि की आंखों के सामने हर समय रीना की बोलती आँखे रहती,मानो कह रही हो बोलो कैसे रहोगे मेरे बिना।पलको से छलकते आँसुओ को पोछते पोछते रवि फिर से रो पड़ता।सबसे बड़ा मलाल तो ये था कि रीना मौत से झूझती रही और खुद वह उसके पास बैठ तक नही पाया।वो तो पूरे घर की प्राण वायु थी,कैसे हम उसे यूँ ही मरने को छोड पाये,बस अपने प्राण बचाने को ना?

     उसे याद आ रहा था कि ऑफिस से आते ही वो निढ़ाल हो बिस्तर पर पसर गया था,उसे ऐसे देख रीना तो बावली सी हो गयी।मेरे मना करते करते हुए भी उसने डॉक्टर को घर पर ही बुला लिया।डॉक्टर के यह कहने पर भी कि थकान के कारण थोड़ा बुखार हो गया है, आराम करेंगे तो जल्द ही ठीक हो जायेंगे, रीना ने दो दिन तक अपना खाना पीना भूल मेरे पास ही जमी रही। और हम रीना को ऐसे ही अकेली छोड़ आये हॉस्पिटल में।विचार रवि के मन से जाते ही नही थे।

      धीरे धीरे समय बीतता जा रहा था,रवि के दिलोदिमाग से रीना हट ही नही रही थी।बेटे की हालत को देख और समझ कर ही  माँ चाह रही थी कि रवि की दूसरी शादी हो जाये जिससे वह पुराने आवरण से बाहर आ सके,पर रवि तो मान ही नही रहा था।माँ को चिन्ता थी बहू तो असमय चली ही गयी,वो बूढ़ी हो गयी है, उसका कोई भरोसा नही तब उसके बेटे का क्या होगा?सोचते सोचते माँ की आंख लग गयी,सुबह शरीर दुख रहा था,उठा ही नही जा रहा था।रवि एकदम परेशान सा हो डॉक्टर को फोन करने लगा।तभी माँ बोली बेटा मैं ठीक हूँ, बस मेरी आखिरी बात मान ले बेटा, मुझे बहू ला दे।जितनी जिंदगी बाकी है, कट जायेगी।बेटा मैं जानती हूं रीना जैसी कोई नही,पर वो कैसे आयेगी?मान जा बेटा मान जा।

      माँ की आवाज उसके अंतर्मन से आ रही थी,रवि की आंखों से आंसू बह रहे थे,पर आज उसने माँ की बात को काटा नही।मौन ही स्वीकृति थी।तीन माह के अंदर ही उसके जीवन मे किरण ने पदापर्ण किया।पहली ही रात में किरण ने रवि का हाथ पकड़ कर कहा कि मैं जानती हूं मैं कभी भी रीना दीदी का स्थान प्राप्त नही कर सकती पर मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि मैं कभी भी रीना दीदी के समकक्ष हो जाने का प्रयत्न भी नही करूंगी।रीना सूर्य थी मुझे किरण ही बन अपने मे स्थान दे देना,मुझे और कुछ भी नही चाहिये।

     रवि क्या उत्तर देता,चुपचाप किरण का मुख देखता रह गया।कितना बड़ा दिल दिखाया था किरण ने।एक वर्ष बाद ही उनके जीवन मे एक प्यारी सी गुड़िया भी आ गयी।हॉस्पिटल से घर आयी किरण ने गुड़िया को रवि की गोद मे डाल कर कहा लो रवि मैं आज तुम्हे अर्पण कर रही हूं तुम्हारी रीना।हाँ, ये रीना ही है, हम इसका नाम रीना ही रखेगे।

    अवाक से रवि ने गोदी में रीना को लिये लिये किरण को अपनी बाहों में भर लिया ,माँ दूर खड़ी इस अद्भुत दृश्य को देख मंदिर की ओर दौड़ पड़ी।

       बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

स्वरचित, अप्रकाशित।

#घर-आँगन

 

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