सरप्राइस – विजया डालमिया

कृति सज धज कर बड़ी बेकरारी से कृष का इंतजार कर रही थी।साल भर पहले ही तो दोनों मिले थे ।अपनी पहली मुलाकात को जब कभी भी वह याद करती तो उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती ।झगड़े से शुरू हुई मुलाकात आज गहरे प्यार में तब्दील हो चुकी थी। कृति थोड़ी अक्खड़ और जिद्दी थी और कृष एकदम शालीन व सौम्य। तभी तो वह उसकी दीवानी हो गई थी। वह कहता …..”तुम इतनी जिद्दी क्यूँ  हो”? और वह कहती….” तुम इतने प्यारे क्यों हो”? दोनों की नजदीकियां इस कदर मशहूर हुई जिस कदर उनके झगड़े मशहूर हो गए थे। बड़ी तेजी से झगड़े मिट कर प्यार और प्यार शादी का रूप लेने जा रहा था। कुछ दिन पहले सगाई पर बेहद  खूबसूरत अंदाज में कृष ने उसे प्रपोज किया  तो वह रो पड़ी थी और एक ही बात …..”तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे”? और  कृष ने फिर अपने प्यारे अंदाज में कहा ….”मेरा प्यार वो है जो मर कर भी तुमको जुदा अपनी बाँहों से होने ना देगा” और कृति उसकी बाँहों में समा गई ।दोनों की धड़कन एक हो गई।

आज कृष के साथ उसे इस्कॉन टेंपल जाना था। राधा -कृष्ण के सामने कृष पता नहीं उसे क्या सरप्राइस देना चाहता था। इसीलिए वह बेसब्री से उसका इंतजार कर रही थी। तभी मोबाइल बजा और दौड़ कर उसने फोन उठाया, पर उसके हैलो कहते ही फोन डिस्कनेक्ट हो गया। उसने फिर  मिलाया तो फोन बार-बार नो रिप्लाई आ रहा था ।उसे झुंझलाहट होने लगी। कुछ देर में ही कॉल बेल बजी। उसने दरवाजा खोला तो सामने कृष  को देखकर वह कहने लगी ……”तुम हमेशा ऐसे ही करते हो ।कभी जान निकाल दोगे मेरी”। कृष ने कुछ नहीं कहा। हमेशा की तरह आँखों में प्यार और होठों पर हल्की मुस्कुराहट के साथ उसे देखा और बोला ….”तुम मेरी जान हो और अपनी जान को मैं बहुत संभाल कर रखता हूँ तुम्हारे लिए”।…..” मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ”…. कृति  के कहने पर उसने कहा…..” हाँ यार तभी तो आया हूँ “और हाँ कभी भी खुद को इतना परेशान मत किया करो ना मेरे लिए। मैं तो हमेशा तुम्हारे आस-पास ही हूँ”। ….”अच्छा मैं चाय बना कर लाती हूँ ।मौसम भी ठंडा हो गया है”। कहकर कृति चाय बनाने चली गई ।लौट कर आई तो कृष नहीं  था। कहाँ गया? कृष …कृष … उसने  आवाज भी लगाई। फिर फोन किया तो वह भी फिर से नो रिप्लाई। तभी  उसे याद आया कि कृष ने कहा था ….”मेरा फोन खराब हो गया है”…. पर वह चला क्यों गया? हम तो मंदिर जाने वाले थे। खैर… वह पूरी शाम इंतजार करती रही ।रात आई तो वह और बेचैन हो गई। पर उसे पता था कृष गैर जिम्मेदार तो था नहीं। ना जाने क्यों आज पहली बार उसने इतनी लापरवाही दिखाई थी। सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई ।सुबह-सुबह  वह जल्दी ही उठ गई और उसको फिर से फोन लगाया ।कॉल रिसीव होते से ही वह कहने लगी….” तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो कृष”? तभी दूसरी तरफ से आवाज आई ….यह जिनका फोन है कल शाम उनकी एक्सीडेंट में ऑन द स्पॉट डेथ हो गई है”। सुनते ही वह बुत बन गई ।दूसरी ओर से हैलो…. हैलो की आवाज आ रही थी, पर उसे सिर्फ एक ही बात सुनाई दे रही थी कि….

मेरा प्यार वो है जो मर कर भी तुमको जुदा अपनी बाँहों से होने ना देगा….

विजया डालमिया

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