सुख-दुख अपने हाथ में (भाग 2) – विभा गुप्ता   : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: जवाब में चौधरी जी मुस्कुराये और बोले ,” जीवन में सुख-दुख,लाभ-हानि तो लगी ही रहती थी।बहू के आने से भला इसका क्या संबंध।

      घर में जब आर्थिक तंगी होने लगी तब सुषमा ने एकस्ट्रा खर्चों में कटौती करनी शुरु कर दी।पति को अपने जेवर देते हुए वह बोली कि किसी का उधार सिर पर रखना उचित नहीं है।इन्हें बेचकर सब चुका दीजिये। बच्चे कुछ माँगते तो वह प्यार-से समझा देती थी।ये सब देखकर गरिमा को लगा कि कहीं मुझसे भी जेवर न माँग ले।बस तभी से उसने सबसे किनारा करना शुरु कर दिया।वह अक्सर मायके में ही रहने लगी।उसकी मम्मी ने उसे समझाया भी कि इस दुख की घड़ी में तो तुम्हें उनके साथ होना चाहिये परन्तु उसने हँसकर टाल दिया।मायके पर आई विपत्ति को सुनकर सुगंधा भी आई, गरिमा उसके साथ भी ठीक से पेश नहीं आई।गरिमा का नकारात्मक रवैया देखकर गौरव ने उसे समझाने का प्रयास किया कि हम सब एक परिवार हैं और दुख की घड़ी में हमें एक-दूसरे का संबल बनना चाहिए।तुम्हारे ऐसे व्यवहार से भाई-भाभी को कितना दुख पहुँचता होगा,सोचा भी है।परन्तु गरिमा ने उसकी बात को भी अनसुना कर दिया। 

      दुख की इस घड़ी का सामना नारायण चौधरी के परिवार ने एक साथ मिलकर किया और छह महीने बीतते-बीतते फिर से उनके दुकान पर रौनक होने लगी, ग्राहकों की भीड़ होने लगी और व्यापारियों का कर्ज़ा भी चुक गया।उनके परिवार के सदस्यों के चेहरे फिर से खिल उठे।

     अब गरिमा भी सभी के साथ मेल-मिलाप करने लगी लेकिन रूही और अंश उससे किनारा करने लगें।वह किचन में जाती तो सुषमा मुस्कुरा कर कहती,” रहने दे छोटी…, तू आराम कर..।” गौरव भी उससे खिंचे-खिंचे से रहने लगे थे।उसने गौरव से पूछना भी चाहा लेकिन वह कतराकर ऑफ़िस चला जाता।

      एक दिन जब गरिमा मायके गई तो बेटी का उदास चेहरा देखकर उसकी मम्मी पूछ बैठी।तब उसने रोते-रोते बताया कि घर में कोई उससे बात नहीं करता और…।तब उसकी मम्मी ने उसे समझाया कि खुशियों का पैसे से कोई संबंध नहीं होता है।अपनों का साथ और प्यार मिले तो हर दुख सुख में बदल जाता है।वो देख कमली को..,कैसे अपनी ननद को दिलासा दे रही है और तूने क्या किया…।अपने ससुराल वालों को विपत्ति की घड़ी में अकेला छोड़ दिया।भौतिक वस्तुएँ तो क्षण भर का सुख देकर फिर दुख का कारण बन जाती है।देख बेटी…, सच्चा सुख तो अपनों का साथ निभाने से ही मिलता है।

      गरिमा ने देखा कि कमली फ़ोन पर बोल रही थी,” जीजी…, आप चिंता तो नाक्को करो.. मुनिया अपने मामा की इकलौती भांजी…।तमे भाई ने सब इनतजाम कर लिये हो…और हम भी मैडम जी…।” उससे अब सुना नहीं गया।अपनी माँ के गले लगकर फूट-फूटकर रोते हुए कहने लगी,” मैंने खुद अपनी खुशियों में आग लगाई है।”

    बेटी की आँखों से आँसू पोंछते हुए माँ बोली,” सुख-दुख तो अपने हाथ में होता है बेटी।एक बार तू उनके जैसा उदार बनके तो देख…,अपनों की तरफ़ अपनी बाँहें तो फैला…तुझे सुख की अनुभूति होने लगेगी।”

         अपनी माँ की बातों को गाँठ बाँधकर गरिमा जब अपने ससुराल आई तो जेठानी का हाथ बँटाना चाहा और उनसे अपना दुख साझा किया।जवाब ने सुषमा ने उससे कहा कि पहल तो तुम्हें ही करनी…।

      अब वह सोचने लगी कि पहल मुझे….., मम्मी कहती हैं ‘ अपने हाथ में…लेकिन कैसे….? तभी उसे कुछ याद आया तो उसके ओंठों पर मुस्कुराहट खेल गई।फिर तो वह अपने अभियान में जुट गई।उसने अपने पर्स से दो डेयरी मिल्क निकाले और बच्चों के कमरे में गई।चाची को देखकर दोनों मुस्कुराये, फिर कुछ याद आते ही नजरें झुका ली और अपने-अपने पाठ याद करने लगे।अंश एक कविता याद कर रहा था.., गरिमा उसके साथ-साथ बोलने लगी।बच्चे हैं ना…,कब तक अपनी चाची से रूठे रहते।चाॅकलेट देखकर अपनी चाची से लिपट गयें तब उसे लगा जैसे धरती पर ही उसे स्वर्ग-सा सुख मिल गया हो।

      अगले दिन से तो रूही कहने लगी- चाची, मेरे लिए रिबन सैंडविच बनाइये और अंश कहता- मेरे लिये पनीर-पोहा…।गरिमा किचन में नाश्ता तैयार करती और सुषमा उसे प्यार-से निहारती।घर का खुशनुमा माहौल देखकर नारायण बाबू तो खुशी-से फूले नहीं समा रहें थें जैसे एक लम्बी-काली गहन दुखों वाली रात के बाद उनके घर में सुख के सवेरे का आगमन हुआ हो।

       एक दिन सुगंधा आई हुई थी।उसने गरिमा से कहा कि भाभी.., पालक-कढ़ी बनाइये ना…पापा को बहुत पसंद है।वह बेसन घोल रही थी कि तभी उसके मायके से फ़ोन आ गया।उसके हाथ तो बेसन से सने हुए थें, उसने सुगंधा से कहा कि विडियो काॅल ऑन कर दे।स्क्रीन पर मम्मी को देखते ही वह चहक उठी,” मम्मी…, देखिये..अभी मैं कढ़ी बना रही हूँ .., आपसे बाद में…।” उसने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया और बेटी का हँसता हुआ चेहरा देखकर उसकी माँ की आँखें खुशी-से छलछला उठी।बेटी मायके से अधिक अपने ससुराल के सुख-दुख और उसके महत्व को समझे..,यही तो हर माँ-बाप चाहते हैं।

                                  विभा गुप्ता 

#सुख-दुख                   स्वरचित 

             यह सच है कि अपनों का साथ हो तो इंसान हर दुख का सामना हँसते-हँसते कर लेता है।और यह भी सच है कि अपने रूठे हों तो हर सुख फ़ीका लगता है।गरिमा ने अपने प्यार व समर्पण से रूठों को मनाकर अपने दुख को सुख में तब्दील कर लिया क्योंकि सुख- दुख तो मनुष्य के अपने हाथ में होता है।

सुख-दुख अपने हाथ में (भाग 1 ) – विभा गुप्ता   : Moral stories in hindi

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