सुधा – नीलिमा सिंघल

सुधा बहुत बौखलाए हुए घूमे जा रही थी इधर से उधर, उधर से इधर

राजन ने चश्मा ठीक करते हुए कहा “सुधा बैठ जाओ कब तक चक्कर काटती रहोगी तुम्हें देखकर अब तो मुझे खुद चक्कर आने लगे हैं।

“तुम तो चुप ही रहो”, सुधा बैचेन होते हुए बोली ,तुम्हें क्या पता मैंने शांति के साथ कितनी मेहनत की थी 7 सालों से उसको पढ़ाना लिखाना, स्कूल भेजना ,कपड़े दिलवाना, छुट्टियों मे घुमाने ले जाना “

“अरे सुधा, शांति हमारी बिटिया नहीं है “

“हमारी बिटिया नहीं है, जानती हूं,  पर क्या 7 साल की मेहनत प्यार अपनापन कुछ मायने नहीं रखता “

राजन ने अपनी आंखों मे आयी नमी को छुपाते हुए कहा ” अगर शांति चाहती तो हम कुछ कर सकते थे पर शांति ने खुद ही कहा था कि……..”

बाकी शब्द कहीं खो गए राजन पलते और कमरे मे अंदर चले गए।

सुधा गुस्से और दुख से पागल हुए जा रही थी,


आज उसको अपने विवाह का दिन याद आया जब सम्पन्न होते हुए भी शादी सम्मेलन मे अपना विवाह किया था, फोटो भी ज्यादा नहीं खिंचवाये थे क्यूंकि उसको नए नए अनुभव करने होते थे पर हर तरह की पब्लिसिटी से दूर रहकर,

राजन एक सुलझे हुए और शांत रहने वाले इंसान थे जो जल्दी ही सुधा को समझने लगे थे ,जो दिखावे से दूर रहती पर कुछ भी नया करने को पागल रहती।

विवाह के 2 महीने बाद ही उसने देखा कि उनके घर के सामने एक बंजारे की टोली रहने आयी थी, उसमे एक खूबसूरत जोड़ा भी था जिसके साथ एक बच्ची भी अक्सर दिखती थी जो ज्यादातर धूल मिट्टी से खेलती रहती थी,

देखते देखते उसको 5 महीने बीत गए एक दिन ऐसे ही बैठे बैठे उसको ख्याल आया कि वो खुद इस बच्ची की परवरिश करने लगे उसका ध्यान रखे, इसके लिए वो राजन से बात किए हुए बिना ही घर से निकली और बंजारे की टोली के पास जा पहुंची,

सब उसको देखकर खुश थे और समान बेचने लगे पर सुधा ने उन्हें चुप रहने के लिए बोला और उस बच्ची के पास पहुंची,

ये देखकर बच्ची के माँ बाप सुधा के पास पहुंचे और बोले “आप यहां?क्यूँ?”

सुधा ने कहा “आपकी बिटिया बहुत अच्छी है पर यहां ऐसे उसका कौन ध्यान रखेगा जैसे और लोग रखते हैं

बाप ने कहा “अरे ओ मैडमवा या म्हारी छोरी है और इंहा सभी के बालक एक जैसे ही पले हैँ”

सुधा ने कहा “अगर तुम लोग मेरे साथ चलकर रहो तो मैं इसका सारा खर्चा उठाऊंगी “

कुछ कहने के लिए बाप ने मुहँ खोला ही था कि माँ बोल पड़ी “कैसा खर्चा मैडमवा”


“इसको पढ़ाने का कपड़े दिलवाने का, और भी जरूरत पूरी करने का “

माँ ने कहा ” देखो बीबी जी ई सांति बहुत नटखट है हम तो जा नहीं पाएंगे आपके साथ पर आप इसको अपने साथ रख सकती हो पर……”

ई का बोल रही सांति की अम्मा हमारी जान ऐसे कैसे किसी को….”

सांति की अम्मा अपने पति का हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गयी और बोली “सांति के बापू सांति की जिंदगी बनेगी साथ ही हमारी भी “

सांति की अम्मा सुधा के पास आयी और बोली “ठीक है बीबी जी सांति को आप ले जाओ पर हमे भी कछु तो देना पहले “

सुधा खुशी खुशी घर आयी और राजन के रखे 10 लाख रुपये लाकर शांति के अम्मा बापू को दे दिए और 5 साल की शांति को घर ले आयी,

शाम को जब राजन घर आया और उसको सारी बात पता चली तो उसने सुधा को कहा ऐसे किसी बच्चे को अपने घर मे नहीं रख सकते कल को कुछ भी परेशानी हो सकती है,

पर सुधा समझने को राजी ही नहीं हुई तो राजन ने कहा “ठीक है,  कल जाकर उनसे मिलकर पेपर लिखवा लेकर नोटरी करवा देंगे फिर कुछ गड़बड़ नहीं होगी, पैसे गए कोई नहीं “

अगले दिन वंहा कोई नहीं था सब रात ही रात मे चले गए थे,

शांति को प्यार से दुलार से सुधा पालने लगी अच्छे कपड़े खेल खिलौने अच्छे स्कूल मे एडमिशन,

कब 7 साल गुजर गए पता ही नहीं चला,

कल शांति का जन्मदिन मनाया था क्यूंकि कल के ही दिन शांति सुधा की जिंदगी मे आयी थी और अब तो सुधा खुद भी माँ बनने वाली थी बहुत खुश थी,

पर कल रात जैसे रेत हाथ से फिसल गयी। ।


कल अचानक शांति के अम्मा बापू आए शांति को लेने, सुधा ने साफ मना कर दिया था और कहा था ” और पैसे चाहिए तो ले लो पर शांति को मत ले जाओ

पर शांति की अम्मा ने घर मे नाटक कर दिया जोर से चिल्लाना माथे पर हाथ मार मार कर कोसना।

शोर सुनकर शांति नीचे आयी बहुत सुन्दर लग रही थी अब वो 12 साल की बच्ची हो गयी थी शांति ने जैसे ही देखा आयी और अपने अम्मा बापू से लिपट गयी

अम्मा बापू अम्मा बापू

सुधा हैरत से ये तमाशा देख रही थी फिर जैसे चेतना आयी उसने शांति को पकड़ा और अम्मा से अलग करते हुए जोर से हिलाया, शांति डरते हुए चिल्ला पड़ी, “अम्मा बापू हमसे दूर मत जाना ये आंटी अच्छी हैं पर हमको तुम्हारे साथ जाना है

बापू ने कहा ” बिटिया अच्छी है तो कैसे लेकर जाएं “

अम्मा ने एक बार फिर बापू को पकडा और बोला “ई हमार बिटिया हमरे साथ ही जायेगी मुखिया के बेटे से ब्याह तय है हम उनके समधी हो जाएंगे और हमें जमीन मिलेगी “

बापू ने कहा “तू सही कह रही से”

शांति की अम्माँ ने अपने दोनों हाथ फैला दिए शांति सुधा का हाथ झटक कर अपनी अम्माँ के गले लग गयी,

राजन ने प्यार से शांति के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा “शांति क्या चाहती हो बोलो”, 

शांति ने गुस्से से राजन का हाथ झटका और बोला “अम्माँ बापू आपके साथ जाना है ये हमे मारते हैं डांटते हैं हमे यहां नहीं रहना “

और शांति चली जाती है गुमनामी की दुनिया मे एक अच्छे सुधरे भविष्य से “

राजन सोचता है और उसको ध्यान आता है “शांति पढ़ने के नाम पर गलत वीडियो देखने लगी थी उसकी दोस्त उसको बहकाते रहते और दो साल से बहुत गंदा व्यवहार हो गया था उसका तब राजन ने शांति को बहुत समझाने की कोशिश की जब वो बदतमीजी किए जा रही थी तब सुधा ने सुधारने की नियत से 3-4 थप्पड़ लगा दिए थे इस बात को उसने ऐसे बोला। । अब सारी धुन्ध खत्म हो गयी।

राजन बाहर आए और सुधा का हाथ पकड़ कर बोले “सुधा कोई कोई अपनी जड़ों को अपने खून को नहीं बदल पाता, तुमने दिल से कोशिश की पर उसको नहीं रचना बसना इन खुशियाँ में, भूल जाओ उसको और हमारी आने वाली परी की प्रतीक्षा करो।

शायद सुधा को भी समझ आ गया था जल्दबाज़ी के फैसले अक्सर गलत होते हैं राजन ने समझाया ही था ऐसे किसी बच्चे की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए आधे अधूरे तरीके से,

सुधा सुकून से साँस लेती हुई राजन के गले लग गयी आने वाली परी की प्रतीक्षा मे। ।

इतिश्री

शुभांगी

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