हाय मैं शर्म से लाल हुई – प्रीती सक्सेना

ये कहानी मेरी पाठिका द्वारा भेजी गई है, वो चाहती हैं, मैं अपने स्टाइल में उसे लिखूं, मैं पूरी कोशिश करुंगी नीलम जी

उस दिन सुबह सुबह मैं अपने बगीचे में पौधों को पानी दे रही थी, अचानक एक साइकिल रिक्शा मेरे घर के सामने रूका, मैंने ताज्जुब से देखा, एक ग्रामीण परिवेश में अधेड़, अवस्था के सज्जन खड़े हुए, मेरे पति का जोर जोर से नाम ले रहे थे, रमेश रमेश, पति का नाम सुनकर मैंने उन्हें देखा, तो उन्होंने मेरे ससुराल के गांव का नाम बताया, मैं बुरी तरह चौंक गईं, कारण मेरी ससुराल ठेठ बुंदेलखंडी, जबरदस्त पर्दा प्रथा थी, बैल गाड़ी में गांव जाना पड़ता था

वो भी हाथ भर का घुंघट लेकर,

इधर मैं, नाईट सूट में, शॉर्ट हेयर्स, बिल्कुल आधुनिक, परिवेश में उनके सामने खड़ी, मेरा दिमाग घूम गया, मेरी ससुराल में सास ससुर को पता चलेगा कि बहुरानी इस रूप में मिली, तो इतने सालों का मेरा किया दिया सब बरबाद हो जाएगा।

जैसे ही वो गेट के अंदर आए , मैंने उन्हें गार्डन चेयर पर  बैठने का इशारा किया और तुरंत अंदर भागी, मैने फटाफट साड़ी लपेटी, बाल बांधने लायक थे नहीं, बेटी के वार्षिकोत्सव में डांस के लिए नकली बाल की चोटी खरीदी थी जो ड्रेसिंग टेबल पर टंगी थी, उसे हेयर पिंस की सहायता से बालों में फंसा ली, सिर ढककर पानी का ग्लास लेकर उन्हें दे आई, और चरण स्पर्श भी कर आई।


   पतिदेव को बताया तो वो काका से मिले, कुछ काम से आये थे, मैने नाश्ता चाय करवाया उन्हें, काका पतिदेव के साथ ही निकल गए।

रात को भी मैं उसी रूप में घूमती रही, मेरी बेटी बार बार अपनी चोटी मांगती रही, मैं बार बार आंखे दिखाती रही, और आदर्श बहू का रोल विधिवत निभाती रही।

प्रीती सक्सेना मौलिक

 सुबह हुई, काका को गांव के लिए निकलना था, मैं फुर्ती से नाश्ता चाय, निपटा रही थी, भारी चोटी लटकाए मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा था, बस भगवान से मना रही थी की अच्छे से काका चले जाएं, और गांव में किसी को कुछ पता न चले,

नाश्ता करके काका जाने को उठे, मैं जैसे ही उनके चरण छूने झुकी, चोटी ने धोखा दे दिया, वो जाकर काका के चरणों में समर्पित होकर धराशाही हो गई,


काका ने झुककर चोटी को उठाया, और बोले, लगा लो बिटिया, खुश रहो।

इसके आगे क्या लिखूं, आप समझ ही गए होंगे

प्रीती सक्सेना

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