बचपन से ही सुनंदा को किताबें पढ़ने का बहुत शौक रहा। जब सुनंदा नन्ही सी थी तब पिताजी अच्छी अच्छी कहानियों के ढेर लगा दिया करते थे।
उनको पढ़ कर सहेज कर रखना उसकी आदतों में शुमार था।
फिर धीरे धीरे उम्र के साथ किताबों का स्तर भी बढ़ता गया और उन किताबों से मिलने वाली प्रेरणा का भी।
घर में इतनी किताबों को देख मम्मी अक्सर कहा करती थी “सुनंदा इन किताबों का अब क्या करोगी फालतू अटाला इकट्ठा हो रहा है। बेच दो अब तुम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लग रही हो कौन संभलेगा इनको।”
ओह हो मम्मी प्लीज इन किताबों को बेचने की बात मत किया करो। मैं देख लूंगी।
एक दिन पड़ोस में रह रही सुनंदा की मित्र शालिनी मिलने आई।
बातों ही बातों में बताया उसकी भाभी घर पर बोर हो रही है अच्छी पढ़ी लिखी है पर मम्मी, पापा की जिद्द की नौकरी नहीं करवानी है।
“अब तुम बताओ सुनंदा हम पढ़ी लिखी लड़कियों के मम्मी, पापा समय आने पर अपनी सोच बदल लेते है।
क्या ये उनके साथ अन्याय नहीं है?
आखिर हम नारी होकर नारी की तरक्की में रुकावट कैसे बन सकते है?
इस कहानी को भी पढ़ें:
मिस्सल ताई – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा” : Moral Stories in Hindi
अचानक सुनंदा चहक उठी “अरे तो बाहर ही तो नहीं भेजना चाहते है” पता मेरी समस्या का भी निदान हो जाएगा और भाभी का भी।”
“इसे कहते है एक तीर से दो शिकार।”
अच्छा बता भी दो?
देखो मेरी मम्मी की समस्या है मेरी पुरानी किताबें और तुम्हारी भाभी की समस्या कि वो अपने समय का उचित सदुपयोग नहीं कर पा रही क्यों है ना?
हां पर ।।।।। शालिनी ने पूछा।
देखो तुम्हारा घर बहुत बड़ा है वहां एक हॉल तो भाभी को मिल ही सकता है में अपनी किताबों की अलमीरा तुम्हारे घर रखवा देती हूं। और कुछ पोस्टर छपवा देते है।
यहां शादीशुदा महिलाएं जो प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही है उनके लिए सुबह 6:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक लाइब्रेरी की सविधा उपलब्ध है।
अगर परीक्षा के लिए कोई किताब नहीं है तो मेरी किताबें पढ़ भी सकती है।
शालिनी खुश होकर सुनंदा के गले लग जाती है “क्या आईडिया दिया है यार मजा आ गया।”
शालिनी अपने मम्मी, पापा व भैया भाभी के सामने लाइब्रेरी का विचार रखती है।
भैया, भाभी को आइडिया पसंद आया।
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर शालिनी की मम्मी ने शालिनी को अपने कमरे मैं बुला कर कहा “देखो तुम जो करना चाहती हो उचित नहीं है। अरे दो पैसे कमाने लग जाएगी तो हमे कौन पूछेगा?”
शालिनी ने अपनी मम्मी की गोद में सिर रखा और बोली मम्मी “आजकल सभी महिलाएं पढ़ लिख कर सर्विस करती है, भाभी कितनी अच्छी है जिद्द कर के भी सर्विस कर सकती है। पर आपकी जिद्द के आगे अपनी अच्छी खासी सर्विस छोड़ दी। अब मुझे ही देखो मैं भी जॉब करती हूं। घर भी संभालती हूं। मेरे ससुराल से आज तक शिकायत आई नहीं ना? और जब मेरे रिश्ते की बात हुई थी तो आप बड़ा इतरा कर मेरी सास को कहती थी “पढ़ी लिखी कमाऊ लड़की है मेरी” फिर भाभी भी तो पढ़ी लिखी कमाऊ लड़की थी अब बैचारी बस पढ़ी लिखी रह गई। अपनी पढ़ाई का सदुपयोग कहाँ कर पा रही है? खैर अपनी अपनी किस्मत है! किसी के हाथ सोने का पिंजरा लगता है और किसी के हाथ आजादी!”
“अच्छा अच्छा ज्यादा ताने कसने की जरूरत नहीं है। कह दे अपनी भाभी से बाहर वाला हॉल खाली कर देती हूं। शुभ काम में देरी कैसी? अब से उस पर कोई बंदिश नहीं होगी।” मम्मी ने गाल पर चपत लगाते हुए कहा।
शालिनी ने मम्मी को बाहों में जकड़ते हुए जवाब दिया “माइ स्वीट मोम।”
अब सुनंदा, शालिनी ने भाभी के नए काम को अंजाम देने की तैयारी शुरू कर दी।
सुनंदा भाभी से बोली क्यों ले आई ना मेरी किताबें आपको सोने के पिंजरे से बाहर।
सब खिल खिला दिए।
“हा भाभी अब तो आप चाहे तो घर के बाहर जाकर सर्विस करना चाहे तो भी कर सकती है।”शालिनी ने अपनी भाभी का हाथ पकड़ कर कहा।
बिल्कुल दीदी पर पहले जो काम हमारी प्यारी ननद ने हमें सौंपा है वो तो पूरा करले।
फिर इसको आगे बढ़ाने के लिए बाहर तो निकलना ही पड़ेगा ना।
भाभी ने खुश होकर जवाब दिया।
#अन्याय
दीपा माथुर