जानकी जी कानपुर के एक छोटे से गांव में अपने दो बेटों के साथ रहती थीं , बड़ा अनुज और छोटा मयंक । उनके बड़े बेटे की उम्र करीब छब्बीस वर्ष थी ,,,वह उसके लिए एक पढ़ी लिखी व सुघड़ लड़की की तलाश में थी ,,, वैसे तो जानकी जी के घर में किसी बात की कमी न था परंतु उनके स्वभाव में कंजूसी की बुरी आदत थी , यह बात आसपास के गांव में सभी को पता थी इसलिए उनके यहां कोई भी अपनी बेटी देने को तैयार ना था ।
एक दिन जानकी जी अपने बड़े बेटे के साथ मंदिर में पूजा करने के लिए गई तो उनकी एक सहेली को उनका बेटा अनुज अपनी बेटी मीरा के लिए पसंद आ गया । जानकी जी भी मीरा की सादगी पर मुग्ध हो गई और दोनो परिवारों ने आपसी रजामंदी से दोनो बच्चो की सगाई तय कर दी ।
शादी के तैयारियों के चलते जानकी जी सुनार की दुकान पर सोने का भाव पता करने गई । सुनार से सोने का भाव सुनकर जानकी जी हक्की – बक्की रह गई । शादी के लिए जेवर बनवाने के नाम से उन्हें चक्कर आने लगे थे ,,,,उनके चालक दिमाग में कुछ खुराफात दौड़ने लगी ।
कंजूसी की आदत से मजबूर जानकी जी ने अपनी पुरानी अंगूठी पर पॉलिश करवा कर बेटे की सगाई के लिए तैयार करवा ली और विवाह के लिए कुछ नकली जेवरात असली जेवर के डिब्बे में रख लिए । जो रुपए अनुज ने जेवर बनवाने के लिए मां को दिए थे वह सब रुपए उन्होंने अपनी तिजोरी में संभाल कर रख लिए ।
जल्दी दिन बीतते गए शादी का दिन आ गया कर जब मीरा घर आई तो जानकी जी उससे बोली ,” बहु घर के कामकाज में इन जेवरात की पॉलिश उतर जाएगी तुम इन्हें उतार कर मुझे दे दो,,,मैं तुम्हारी सब चीजें संभाल कर रख देती हूं ,,,जब कभी पहनने को मन हो तो मुझसे ले लेना ।”
अब जब भी कभी मीरा मां जी से अपने जेवर मांगती तो जानकी जी कुछ ना कुछ बहाना बनाकर उसे टाल देती । मीरा को अपनी सास की यह आदत बहुत बुरी लगती , परंतु बहु होने के नाते वह जानकी जी को कुछ ना कह पाती थी।
अगले साल जानकी जी के दूसरे बेटे की मयंक की सगाई तय हुई । जानकी जी ने मयंक की सगाई के लिए भी वही अंगूठी निकालकर बेटे के हाथों में दे दी ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
यह सब देख कर मीरा कुछ बोलती इससे पहले ही जानकी जी ने मीरा को अपना मुंह बंद रखने का इशारा कर दिया था ।
अगले हफ्ते मयंक और ऋतू की सगाई थी मयंक ने वह अंगूठी उसकी होने वाली दुल्हन ऋतु की उंगली में पहना दी । बड़े भाई अनुज की तरह मयंक भी अपनी मां की चालाकी के बारे में कुछ ना जान पाया था । इस प्रकार जानकी ने पैसे बचाने के लिए चालाकी से बड़ी बहू का सारा नकली जेवर छोटी बहू को चढ़ा दिया और बेटे से मिले रुपयों को फिर अपनी तिजोरी में रख लिया । इन सब की भनक उन्होंने किसी को न लगने दी ।
कुछ ही दिनों में मयंक और ऋतु की शादी हो गई और ऋतु भी ससुराल आ गई । ऋतु समझदार व तेज तर्रार लड़की थी । वैसे तो उसे मूर्ख बनाना आसान नहीं था परंतु फिर भी जानकी जी ने सभी जेवर संभाल कर रखने के बहाने ऋतू से भी वापस ले लिए ।
जल्दी ही ससुराल में मीरा और ऋतु दोनो अच्छी दोस्त बन गई । कुछ दिन बाद ऋतु को अपनी दोस्त की शादी में जाना था ,,,, उसने जानकी जी से पहनने के लिए जेवर मांगे । ऋतु थोड़े तेज स्वभाव की थी तो जानकी जी उसे मना न कर पाई ,,, इसलिए उन्होंने सारे जेवर निकाल कर ऋतु के हाथ में दे दिए ।
जब यह सब मीरा ने देखा तो उसे बहुत दुख पहुंचा और उसने सारी बात ऋतु से कह सुनाई । मां जी की सारी कहानी सुन कर ऋतु का माथा ठनक गया उसे अपनी सासू मां पर बहुत गुस्सा आया । सासू मां ने चालाकी वश दोनो बेटों और दोनो बहुओं को ठग लिया था । अब उसने मीरा भाभी के साथ हुए अन्याय पर आवाज उठाने का फैसला ले लिया था ।
ऋतु अपनी दोस्त की शादी से वापस आ गई , वहां उसे जेवर के नकली होने की भनक लग गई,,, सासु मां ने सभी जेवर चांदी के बनवा कर उन पर सोने की पॉलिश करा ली थी । वापस आने के बाद भी उसने सासु मां को जेवर वापस न किए । जानकी जी भी कई बार ऋतु से सामान वापसी की बात कहती परंतु वह हर बार टाल जाती । अब तो जानकी जी को अपनी चोरी पकड़े जाने का डर सताने लगा था , आखिरकार उन्होंने ऋतु को बुलाकर कहा ,” ऋतु तुम सारा जेवर लाकर मुझे वापस दे दो मैं उसे संभाल रख लूंगी। ”
इस कहानी को भी पढ़ें:
ऋतु तो कब से इसी दिन का इंतजार कर रही थी ,,,इतना सुनते ही वह निर्भीक स्वर में जानकी जी से बोली ,”कौन सा जेवर मां,,,?? ” आपका पुराना जेवर , मीरा भाभी को शादी में दिया गया नकली जेवर “?? ,,,,आप ही बताइए वह जेवर किसका है ,,,मैं उसे ही लौटा दूंगी,,,।
जानकी जी को ऋतु से ऐसे प्रत्युत्तर की उम्मीद न थी,,,उसकी बात कड़वी भले ही थी परंतु सत्य थी ,,,उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी । उन्हें अपने किए पर शर्म आ रही थी ।
ऋतु ने कहा ,” मां जी मैं आज ही l अनुज भैया और मयंक दोनो से इस बारे में सब कुछ कह दूंगी ।
जानकी जी जानती थी कि बेटों ने तो उसे जेवर बनवाने के लिए पूरे पैसे दिए थे ,,,अगर नकली जेवर की यह बात बेटों तक पहुंची तो उनकी पोल खुल जाएगी और उनकी बनी बनाई इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी । जानकी जी ने तुरंत तिजोरी की चाबियां निकाली और तिजोरी में रखे कुछ पुराने जेवर और रुपए जोअनुज ने जेवर बनवाने के लिए दिए थे , वह दोनों बहुओं के हवाले कर दिया । और भविष्य में ऐसा लालच कभी ना करने की कसम खाई ।
सब कुछ ठीक हो गया तो मीरा ने जेवर का बटवारा करने की बात ऋतु से कही । इस पर ऋतु ने सारे जेवर मीरा भाभी के हाथ में थमा दिए और कहा ,” भाभी , यह जेवर मेरा नहीं है इस पर तो सिर्फ आपका ही हक है,,,, । “और भाभी कुछ गलती तो आपकी भी है ,,,यदि अन्याय करने वाला गलत है तो सहने वाला भी उसका पूर्ण रूप से भागीदार है । अगर आप मां की गलतियों के विरुद्ध उसी समय आवाज उठा कर उस समय उनका विरोध करती तो इस परेशानी का अंत पहले ही हो जाता ।
मीरा अपने सीधे व सरल व्यवहार के कारण जानकी जी को न बदल सकी परंतु वहीं ऋतु ने समझदारी से जानकी जी को अच्छा सबक सिखा दिया था ।
#अन्याय
स्वरचित मौलिक
पूजा मनोज अग्रवाल
दिल्ली