“पाले पोसे मैने -राज करेंगी ये” – कुमुद मोहन

दरवाज़े पर घंटी बजने के साथ ही रीमा की सास जोर से चिल्लाई , बहू जी!कान में तेल डाले बैठी हो, घंटी ना सुनी क्या?आटे से सने हाथ जल्दी से धोकर दरवाज़ा खोला तो देखा माता जी की दूर के रिश्ते की बहन खड़ी थी, पैर छूकर उनका घटिया सा थैला उठा कर रीमा ने उन्हें मां जी के पास पहुंचा दिया।

पसीने में लथ-पथ जाकर माँ जी से ऐसे मिलीं जैसे मेले में बिछड़ गई हो।” ढंग से पैर भी छुए के ना,जे मेरठ बाली मौसी की जेठानी हैं मौसी समझियो ” माँ जी ने बताया।

मौसी आंखें नचा कर बोली “पैर छू लिए जेई का कम है, हमारे जमाने में तो दाब दाब के पैर छुवें थे तब तक जब तक कोई अपने आप ना हटे था। “

सुनते ही माँ जी का चेहरा खिल उठा, बड़े दिनों बाद उनके बुराई पुराण सुनने के लिए इतना अच्छा श्रोता बिन बुलाये पधार गया था। “खूब जमेगी जब मिल बैठेंगी दो सासें “

“कहो बहना कैसे आईं “माँ जी ने पूछा?

सुनते ही बस मौसी एक सांस में शुरू हो गईं “का बताऊँ जिज्जी! बहुरिया ने नाक में दम कर रखौ है,मेरी तो छोड़ो छोरे को भी कुछ ना समझती,  दिन भर मोबैल में  घुसी रहवे,ना टैम पे उठना, ना खाना बनाना,ना सोना ,घर के कामों में तो दीदा ही ना लगता,छोरे ने पहले दिन ते ढील क्या दे दी, सिर पै नाचै है। फटी सी पैंट और छोटी सी बनियान पहनै सहेलियों के साथ सारे में घूमती फिरै,संझा को छोरे को ले के निकल लै। सरम लिहाज तो ताक पै धर रक्खी, मै बिचारी दिन भर काम निपटाऊं, रात तक टांगें चूर चूर हो जावैं,मजाल है जो बंदी 10मिनट को पैर दाब दै।

जो मरजी खावै, जहाँ मरजी जावै, कदी पूछ लूं तो दोनों के दो मेरे पीच्छे पड़ जावैं, बहुरिया तो दिन भर अपनी अम्मा ते क्या खाया,क्या पिया,सारी कमेंटरी करै है।आये दिन इसके  मैके का कोई ना कोई रिस्तेदार धरा ही रहवै।जो आवै खाल्ली हाथ चला आवै, याकी अम्मा ते इतना भी ना होवै के किलो दो किलो मठाई भेज दै।

हर महीने मैके भागै, म्हारी छोरी राखी पै आणो चाहै पर म्हारा छोरा वो जोरू का गुलाम वा नटनिया कै साथ सुसराल जावेगा।बहना की राखी बंधै ना बंधै।



केल्ला छोरा है छोड़ कै जाऊँ तो कहाँ, संझा को दोन्नों नै जो कलेस करा, ते सोच्चा धारे कन्ने चलूँ ।

अब  ज़रा माँ जी का हाल सुने!

माँ जी अपने हर मिलने जुलने वालों से अपनी बहुओं का बुराई पुराण लेकर बैठ जातीं, उनके हिसाब से कोई भी बहू उनके मन की नहीं आईं। उनके मन की बहू के मायने थे,बहू बेटे में 36का आंकड़ा रहे,माता जी बहू को कुछ माने गाली गलौज तक भी करें तो वो मुँह ना खोले,बहू मायके जाने का कभी नाम न ले,बहू के मायके से कोई न आऐ।छुट्टियों में कहीं बाहर जाने की तो दूर इतवार या छुट्टी के दिन मूवी या थोड़ा घर से निकलने का प्रोग्राम बनाया तो महाभारत तय।

हर रक्षाबंधन और भाई दूज पर माँ जी अपनी बेटी यानी रीमा की ननद को बुला लेती जिससे रीमा के ये दोनों त्यौहार सूने चले जाते मन मार कर रह जाती पर कुछ न कह पाती क्यूँ कि पति देव दूसरे श्रवण कुमार थे, माँ के खिलाफ़ जाने की हिम्मत जुटा नहीं पाते थे।

दरअसल जब रीमा के पति 10साल के थे उनके पिता चल बसे थे, घर की हालत बहुत अच्छी नहीं थी,माँ जी ने तीनों बच्चों को बड़ी मुश्किल से पढ़ाया,दोनों भाई पढ़ने में बहुत होशियार निकले, बड़े भाई डाक्टर बन गये, छोटा रीमा के पति मल्टी नेशनल कंपनी में नियुक्त हो गए।दोनों बेटों की शादी खूब अच्छे घरों में हुईँ।

 

माँ जी ने शुरू से ही बच्चों के दिलों में कूट कूट कर भर रखा था कि मैंने तुम्हें बड़ी मुश्किल से पढ़ाया लिखाया है, जो कुछ हूँ मैं हूँ।



 

अब जब दोनों बेटों की शादियां बड़े घरों में हुईँ तो माँ जी “इन्सिक्योर” फ़ील करने लगीं कहीं ऐसा ना हो कि लड़के मेरे हाथ से निकल जाऐं, माँ जी ने पहले दिन से ही बेटों को पट्टी पढ़ानी शुरू कर दी,”बड़े घर से आई है जूते की नोक पे रखियो नही तो सिर पर चढ़ कर के नाचेंगी ” जब भी वो देखतीं बेटे-बहू में थोड़ा ठीक-ठाक चल रहा है, वो बेटे पर “जोरू का गुलाम ” और “अभी से गुलम्मा हो गये ” जैसे तानों के बाण जब तब चलाती रहतीं।बेटों की नकेल को छोड़ना तो दूर माँ जी उसे ढीला करना भी नहीं चाहतीं।उनका तो बस नारा था “पाल पोस के मैंने बड़े करे, राज करने को ये आ गईं ” 

कभी भूले से भी अगर  बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया तो माँ जी ताना देना नहीं चूकतीं “अभी कार में ले के घूमो फिर सिर पै ले के घूमना”बेटे बहू का घूमने का मजा जाने से पहले ही किरकिरा हो जाता।

रीमा की ननद को रोजाना फोन करके रीमा और उसके माँ बाप की बुराइयाँ करना उनका फ़ेवरेट पास टाइम  था, रीमा के कानों में माँ बेटी का वार्तालाप पड़ता पर वो बेचारी मन मसोसकर रह जाती। कभी-कभी रीमा की ननद  रीमा के पक्ष में कुछ कहने की कोशिश करती तो माँ जी उसे चुप करा देती यह कहकर कि उस चुड़ैल का जादू भइया की तरह तेरे ऊपर भी चलने लगा।

कभी कभी रीमा का मन करता माँ जी को खरी खोटी सुनाने का, पर अपनी माँ के द्वारा पढ़ाया सब्र,बर्दाश्त और जिम्मेदारी पाठ और उसके संस्कार आड़े आ जाते।अपने बूढ़े माँ-बाप का ख्याल करके चुप रह जाती।

माँ जी अपने खाने पीने और अपनी हेल्थ को लेकर चौकस थी, रीमा अगर बेवक्त एक कप चाय भी अपने लिए बना ले तो  माँ जी उसे वहीँ चार बातें सुना देतीं ,रात को जब तक वो रीमा से तब तक पैर ना दबवा लेतीं जब तक गहरी नींद में ना हो जाऐं,बुढापे की नींद को तो हम जानते ही हैं।



सुबह पांच बजे से रात के दस बजे तक माँ जी रीमा को कोल्हू के बैल की तरह जोते रखतीं ।मजाल है कि वो थोड़ी देर के लिए चैन की सांस ले ले।

मौसी और मां जी का सास बहू पुराण आपने देखा।

मौसी की बहू के किस्से सुन कर माँ जी धक् से रह गई वो बहुत डर गई,उन्हें रीमा की सारी अच्छाइयाँ एक एक करके याद आने लगीं,उन्हें लगा अगर मौसी की बहू जैसी बहू उनके घर में आ जाती तो  आज शायद उन्हें भी घर छोडना पड़ता।

 मांजी को एक एक करके रीमा पर किये अन्याय याद आने लगे!

जल्दी से माँ जी ने रीमा के पास किचिन में जाकर उसे गले से लगा लिया उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा, रीमा हक्की-बक्की सी माँ जी के एकाएक आए बदलाव को देखती रह गई,”मुझे माफ़ कर दे बेटा” माँ जी ने  आवाज़ में मिश्री घोल कर कहा, तभी दरवाज़े पर खड़े रीमा के पति ने इत्मीनान की सांस ली,माँ जी के रोज़ रोज़ के नाटक-नौटंकी से जान जो छूटी थी।

बेटे को देखते ही माँ जी बोली “आज मेरी बहू को बाहर घुमा के ला, बेचारी  हर बखत घर के कामों में ही लगी रहै,और सुन खाना भी बाहर खा कर आइयो,इसै इसके मनपसंद की एक साड़ी भी दिला दीजो,बड़े दिन तै बिचारी ने नया कपड़ा ना पहना।

रीमा और उसके पति ने सोचा चलो मौसी के आने से ये फ़ायदा तो हुआ।

रिश्तों के भी रंग बदलते हैं

नये नये सांचे में ढलते हैं।

दोस्तों!

आप में से कुछ सासें होंगी तो कुछ बहुऐं, कैसा है आप लोगों का रिश्ता?

अपने कमेन्ट अवश्य दें। मेरी नयी पोस्ट के लिए मुझे फौलो करें। बहुत धन्यवाद।

#अन्याय 

कुमुद मोहन

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